खाना चाचा: सफर गौशला से खाना-ए-काबा तक

Story by  अशफाक कायमखानी | Published by  [email protected] | Date 07-09-2022
खाना चाचा: सफर गौशला से खाना-ए-काबा का
खाना चाचा: सफर गौशला से खाना-ए-काबा का

 

अफाक कामख्यानी/ जयपुर

न हिंदू बुरा है न मुसलमान बुरा है,
बुराई पर जो उतर आए, वह इंसान बुरा है...

इस शेर को बखूबी समझना है तो जैसलमेर के थार क्षेत्र के खान चाचा से मिल आइए. उनसे मिलकर आपको अंदाजा हो जाएगा कि भले ही कुछ लोग हिंदू-मुसलमान के नाम पर उलटी-सीधी हरकतें कर हमें, आपको लड़ाने की कोशिशें कर लें, पर जिस समाज और संस्कृति के धागे से भारत के रिश्तों की चादर बुनी गई, वह इतनी आसानी से नहीं छिजने वाली. खान चाचा जैसे लोग अपने कर्मों से इस चादर को और मजबूत बना रहे हैं.

इसे कुछ यूं समझिए. सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में गाय पालना किसी पुण्य से कम नहीं. यहां तक कहा जाता है कि गौ सेवा करली तो स्वर्ग प्राप्त होना तय है. मगर खान चाचा वह शख्स हैं, उन्हांेने गौ सेवा से खाना-ए-काबा जाकर हज का रास्ता निकाल लिया.
 
यह किस्ता बहुत दिलचस्प है और इसे उजागर किया है ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर. खान चाचा की कहानी पढ़कर आपको एहसास होगा कि इंसानियत से बढ़कर जाति-धर्म नही. खान चाचा गो सेवा में ऐसे रम गए हैं कि उन्होंने बीफ तक खाना छोड़ दिया है.
 
चलिए बढ़ते हैं राजस्थान के थार की उस कहानी की ओर, जिसको पढ़कर न केवल आपके दिलों से हिंदू-मुस्लिम की दीवार गिरेगी. अगर आप किसी के लिए कुछ करना या अपनी कृतज्ञता दिखाना चाहते हैं तो उसके लिए भी एक नई सीख मिलेगी.
 
खान चाचा ने खुद नहीं सोचा था कि उनकी जिंदगी की डगमगाती नाव को बेतहाशा खुशियों का सहारा मिलेगा.
 
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खान चाचा यूं पहुंचे गौशाला

जिंदगी के मुसीबत भरे दिनों को याद करते हुए खान चाचा बताते हैं कि साल 2000 की बात है. दिन बुरे थे. कोई नौकरी नहीं थी. नौकरी की तलाश में जैसलमेर गए.
 
वहां भी नौकरी नहीं मिली. एक साल तक भटकते रहे. अचानक एक दिन एक प्रचार देखा. एक गौशाला को सहायक की तलाश थी. मैंने आवेदन कर दिया. मेरा  आवेदन स्वीकार कर लिया गया.
 
मेरी नौकरी पक्की हो गई. तब मुझे मवेशियों के साथ काम करने का कोई खास अनुभव नहीं था. इसके बावजूद उन जैसे अनुभवहीन को काम पर रख लिया गया. उसके बाद मैं गौशाला में काम करने वाला पहला मुसलमान बन गया.
 
खान चाचा का परिवार

खान चाचा कहते हैं कि गौशाला में काम करते-करते 3-4 साल गुजर गए. मैंने कभी नहीं महसूस किया कि मैं वहां का हिस्सा नहीं हूं. हम सभी भाइयों की तरह साथ काम करते हैं.
 
रोज सुबह उठकर गायों को रोटी खिलाना, उनको दुहना, यह मेरी दिनचर्या में शुमार है. शुरुआती दौर में सारा काम केवल कमाई के तौर पर करता था. मेरी सैलरी 1500 थी. मुझे 11 लोगों का पेट पालना होता था.जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, गौशाला की गाएं मेरा परिवार बन गईं. रोज उनके साथ वक्त बिता.
 
हज की ख्वाहिश हुई पूरी

खान चाचा ने गायों की सेवा करके अपने बच्चों को पढ़ाया. अभी सब अच्छी पोस्ट पर नौकरी कर रहे हैं.  चाचा ने बच्चों की शादी भी कर दी है. 51 साल की उम्र का पड़ाव गुजर चुका है.
 
चाचा बताते हैं कि इस बीच मुझे लगा कि हज यात्रा के लिए बचत करनी चाहिए. यात्रा हज का जिक्र करके हुए खान चाचा कहते हैं कि मरने से पहले एक बार हज करना चाहिए.
 
चाचा घिर गए मुसीबतों में

समय परिवर्तनशील है. मतलब अगर समय अच्छा चल रहा है तो आगे चलकर बुरा समय भी आता है. अगर आपके बुरे दिन चल रहे हैं तो अच्छे दिन भी आते हैं. ऐसा ही कुछ हुआ खान चाचा के साथ.
 
साल 2019 में खान चाचा ने अपने छोटे बेटे को एक हादसे में खो दिया. उसके दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी खान चाचा पर आ गई. इसके बाद चाचा ने सारी बचत दोनों की पढ़ाई में लगा दी. चाचा बताते हैं कि मैं जानता था कि मैं सही काम कर रहा हूं. मैं यह भी जानता था कि अपने बढ़ते खर्चों के साथ, मैं कभी हज पर नहीं जा सकूंगा.
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गौशाला के भाई आए आगे

खान चाचा ने बताया कि उन्होंने अपना दुखड़ा अपने गौशाला के भाइयों को सुनाया. कहते हैं कि  ऊपरवाला जब दुख देता है तो उससे उबरने के रास्ते भी सुझा देता है.
 
अगले दिन गौशाला में खाना चाचा को ऐसा तोहफा मिला, जिसकी वो कल्पना भी नहीं कर सकते थे. उनके गौशाला के हिंदू भाइयों ने उनकी हज यात्रा के लिए तीस हजार रुपये दिए. कहा कि खान चाचा, ये हमारी तरफ से आपके लिए. यह सुनकर खान चाचा रो पड़े.
 
चाचा ने छोड़ दिया बीफ खाना

खान चाचा बताते हैं कि एक महीने बाद हज जाने की ख्वाहिश पूरी हुई. मक्का में जब नमाज पढ़ रहा था तो मेरे अंदर एक अजीब सी आवाज उठी. उसके बाद से मैंने गोमांस खाना बंद कर दिया. यह हिंदू भाइयों के लिए श्रद्धा अर्पित करने जैसा था. उन्हांेने मुझे हज पर भेजकर मेरे विश्वास का सम्मान किया था.
 
धर्म के तर्क से निकलें बाहर 

खान चाचा बताते हैं कि उस दिन से मैंने बीफ नहीं खाया है. कई साल बीत गए हैं, पर तब से मैं आज भी अपना काम शुरू करने से पहले गायों के लिए प्रार्थना करता हूं.
 
कभी-कभी लोग पूछते हैं कि आपको दूसरों के लिए अपने भोजन की आदतों को क्यों बदलना पड़ा? तो मैं उनसे बस एक बात कहता हूं कि इतने सालों में इन लोगों ने मुझे वैसे ही स्वीकार किया, जैसा मैं हूं.
 
उन्होंने अपनी खुशी से मुझे हज भेजा और उनके लिए कुछ करना, अब मेरा सौभाग्य है. खान चाचा ने कहा कि यह मेरा आभार दिखाने का तरीका है. जब आप धर्म के तर्क से बाहर निकलते हैं, सब कुछ आपके समझ में आने लगता है.