शाइस्ता फातिमा / नई दिल्ली
प्रसिद्ध थिएटर नाटककार-अभिनेता-निर्देशक डॉ.एम. सईद आलम याद करते हैं, ‘‘हबीब तनवीर साहब एक निष्पक्ष, लंबे, सौम्य व्यक्ति थे, जिनके पास एक महान आधार आवाज थी, जो शुद्ध मार्क्सवादी शैली में एक पाइप रखते थे.’’ डॉ. आलम का मानना है कि तनवीर का जाना उर्दू रंगमंच के लिए एक बड़ी क्षति है.
हबीब तनवीर एक पद्मश्री थिएटर नाटककार, अभिनेता, निर्देशक और कवि थे. उनका जन्म रायपुर में हुआ था और उन्हें ‘न्यू थिएटर’ में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों के साथ उनके काम के लिए याद किया जाता है. रंगमंच की पृष्ठभूमि से जुड़े लोग तनवीर को भारतीय रंगमंच के अग्रणी के रूप में संदर्भित करते हैं. उन्होंने 85 वर्षों का लंबा जीवन व्यतीत किया, जिसके दौरान वे न केवल कई लोगों के लिए एक घरेलू नाम बन गए, बल्कि आगरा बाजार और चरणदास चोर (मूल रूप से विजय नाथ द्वारा लिखित) जैसे उनके नाटकों को अभी भी राष्ट्रव्यापी समूहों द्वारा अधिनियमित किया जाता है.
यादों को पीछे छोड़ते हुए 8 जून 2009 को उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन 21वीं सदी की तिमाही में बैठे हुए एक आम आदमी पूछता, ‘‘हबीब तनवीर कौन थे? वास्तव में उसका आला क्या था?, क्या वह आज भी प्रासंगिक हैं? क्या वह एक भूला हुआ नायक है, क्या उसने कोई विरासत छोड़ी है या शायद वह अभी भी प्रासंगिक हैं?’’
हबीब तनवीर अपने आदिवासी समूह के साथ नया थिएटर में अपने आदिवासी कलाकारों के साथ, सौजन्यः अंजुम कातिल की किताब ‘हबीब तनवीर-एक समावेशी थिएटर की ओर’
एक अनुभवी थिएटर समीक्षक और एक पत्रकार राजेश चंद्रा ने आवाज-द वॉयस को बताया, ‘‘वह अपनी तरह के थे, जिन्होंने भारतीय कला रूपों को यूरोप और पश्चिम में समान रूप से लिया, प्रशंसा प्राप्त की और एक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति बन गए ....’’ वे कहते हैं, ‘‘उनके मुद्दे बहुत बुनियादी थे, आम आदमी के संघर्ष से लेकर उनकी रोजमर्रा की जरूरतों, लालच और उन्हें एक दृढ़ विश्वास के साथ चित्रित करना’’ हबीब तनवीर के विचारों के बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं, ‘‘उनके अनुयायियों की एक श्रृंखला थी, कई ने उनके साथ काम किया. उनके समूह में और कई उनके समकालीन थे, लेकिन उनमें से बहुत से उनके कैलिबर या उनकी कमर के नहीं थे ...’’
वह आगे कहते हैं, ‘‘मैं मानता हूं, उनके बाद, कोई भी उनकी विरासत को आगे नहीं बढ़ा सका, हमारे पास अभी भी कोई नहीं है, जो इसे आगे बढ़ा सके, लेकिन फिर भी, मुझे लगता है कि कुछ ऐसे हैं, जो उनकी विरासत को ले जा रहे हैं, जैसे अरविंद गौर, उनके नुक्कड़ ( नुक्कड़ नाटक) और नाटक सभी बहुत उत्तेजक हैं और वे जीवन को चित्रित करते हैं.” लोग चंद्रा से असहमत हो सकते हैं, क्योंकि तनवीर के नाटक न तो उत्तेजक थे और न ही उन्होंने इसे प्रमाणित किया था. तनवीर एक विद्रोही, एक रियासतवादी थे, जिन्होंने आदिवासी कलाकारों के साथ काम किया था.
वयोवृद्ध रंगमंच समीक्षक और लेखक अंजुम कात्याल ने अपनी पुस्तक ‘‘हबीब तनवीर-टूवर्ड्स एन इनक्लूसिव थिएटर’’ में हबीब तनवीर को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘शिक्षितों में संस्कृति की कमी होती है ... हमारी संस्कृति की समृद्ध मौखिक परंपरा रही है और इसलिए अधिक सुसंस्कृत कौन हैं ... ग्रामीण परिष्कार शहरी लोगों द्वारा नहीं समझा जाता है और इसके विपरीत है. लेकिन मुझे लगता है कि गांव वाले ज्यादा परिष्कृत हैं... कई मामलों में. कला में वे बहुत अधिक परिष्कृत हैं.’’
हबीब तनवीर अपने समूह के साथ, तस्वीर साभारः अंजुम कात्याल की ‘हबीब तनवीर-एक समावेशी थिएटर की ओर’
दुनिया के कई हिस्सों के विपरीत जहां रंगमंच एक पेशा है और इसे गंभीरता से लिया जाता है. भारत में यह अभी भी एक शौक है और कलाकार के निपटान में बहुत कुछ नहीं है. राजेश कहते हैं, ‘‘बेशक, हमारे पास थिएटर लॉबी के लिए कोई धन नहीं है. रंगमंच समाज के उत्थान के लिए कभी बहुत कुछ नहीं किया गया है... लेकिन रंगमंच का इतिहास हमेशा से यही रहा है कि बदलाव लाने के बारे में, शासन के बारे में एक क्रांति...’’
नसीरुद्दीन शाह ने एक बार उनके बारे में लिखा था, ‘‘वह एक अजीबोगरीब आदमी थे, जो एक कमरे में बैठने के लिए एक कोना ढूढते थे और नीचे देखते हुए उन्हें अंतरिक्ष के पूरे माहौल का ठीक-ठीक पता चल जाता था ... एक नजर और उसे पता चल जाता था कि वह कहाँ है. कमरे में सब...’’
पश्चिम के सिनेमाघरों में तनवीर के समकालीन पीटर ब्रुक, जिनका पिछले महीने निधन हो गया, तनवीर के आधुनिक कला रूपों के साथ लोक रंगमंच को समन्वयित करने और जीवन से बड़ा कैनवास बनाने के कौशल से चकित थे. टाइम्स, लंदन के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘‘तन्वीर का काम गांव के दृष्टिकोण से आता है. यह हास्यपूर्ण है और यह बड़ी सामाजिक समस्याओं पर हमला नहीं करता है. यह लालच, पाखंड और शोषण के दिन-प्रतिदिन के सवालों पर चिपक जाता है ... नया थिएटर की स्थिति सत्यजीत रे की फिल्मों के समाजवाद के करीब हैः अन्याय के सरल तथ्यों पर आधारित एक स्पष्ट राजनीतिक रेखा.’’ ब्रुक स्पष्ट रूप से उनके प्रतिष्ठित नाटक ‘चरणदास चोर’ का उल्लेख कर रहा थे, जिसमें नायक, एक चोर, अपने शब्दों का आदमी है.
चंद्रा कहते हैं कि हालांकि हबीब तनवीर और सफदर हाशमी ने थिएटर के माध्यम से एक बदलाव किया, लेकिन उनके अनुसार थिएटरों का कभी व्यवसायीकरण नहीं किया जा सकता है, ‘‘हां इसे आत्मनिर्भर और स्वतंत्र होना चाहिए, यहां तक कि हबीब तनवीर ने भी कहा कि रंगमंच पर समाज निर्भर होना चाहिए, न कि समाज पर. नहीं तो सरकार तबाही मचा सकती है.. अगर रंगमंच जमीनी समस्याओं का हिस्सा नहीं है, तो यह पूरी तरह से रेखांकित क्रूरता को कैसे प्रदर्शित कर सकता है...थिएटर संघों को एक शक्तिशाली मोर्चा बनाने के लिए एक साथ आना चाहिए.’’
डॉ आलम के अनुसार, हबीब तनवीर अंग्रेजी, उर्दू और हिंदी में अच्छी तरह से वाकिफ थे, वे कहते हैं, ‘‘उन्होंने दुनिया देखी थी, राडा (रॉयल एकेडमी फॉर ड्रामा एंड आर्ट) के साथ थे, ब्रेख्त से भी मिले थे...उनका मोहभंग हो गया था आधुनिक कला के साथ, पश्चिमी दुनिया की सतहीपन और यही उनकी महानता भी थी...
तनवीर के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए, डॉ आलम कहते हैं, ‘‘मुझे याद है कि श्री राम सेंटर फॉर आर्ट्स में अपना पहला स्क्रिप्टेड नाटक कर रहा था, तनवीर साब भी मौजूद थे, मैं वहां गया और विनम्रतापूर्वक उन्हें आमंत्रित किया ..’’ वह आगे कहते हैं, ‘‘वह आए थे अपने 17 अन्य षिष्यों के साथ और प्रदर्शन के बीच में बाहर चले गए ... मैं नाराज और आहत था ... उसके बाद मैंने उन्हें कभी भी आमंत्रित नहीं किया ...’’
‘‘तनवीर साब पूरे सम्मान के साथ प्रशिक्षित षिष्यों के साथ, वह वास्तव में अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए किसी को भी तैयार नहीं कर सके ... आज भी जो कलाकार खुद को उनके ‘चेला’ (शिष्य) कहते हैं, वे केवल कुशन और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट हैं, जो शायद ही जानते हों, उन्हें एक व्यक्ति के रूप में...’’
हबीब तनवीर, तस्वीर साभारः अंजुम कात्याल की ‘हबीब तनवीर-एक समावेशी थिएटर की ओर’
‘‘लेकिन...’’ डॉ आलम आगे कहते हैं, ‘‘शून्य से सोना बनाने की उनकी सर्वोत्कृष्ट भावना अपार थी, उदाहरण के लिए - वह गालिब, मीर, जौक जैसे लोकप्रिय कवियों के जीवन पर आसानी से एक नाटक लिख सकते थे, लेकिन वह नजीर अकबराबादी के साथ गए, जिन्हें उनके जीवन में शायर नहीं माना जाता था, लेकिन तनवीर साब ने आगरा बाजार नामक एक उत्कृष्ट कृति बनाई.’’
आम आदमी के शायर ‘नजीर अकबराबादी’ के जीवन पर आधारित अपने अमर नाटक आगरा बाजार को लिखने की तनवीर की याद को कात्याल की पुस्तक में देखा जा सकता है तनवीर कहते हैं, ‘‘मैं जामिया में परवेज (उनके एक लेखक मित्र) के साथ रहता था. और वहाँ भोजन और एक हुक्का और चाय के गैलन होंगे और मैं नजीर के सभी छंदों को लिखना, पढ़ना, वह सब जो उनके बारे में लिखा गया था, बहुत कम कठोर तथ्यों के रूप में प्रलेखित. एक बात जो सामने आई वह यह थी कि नजीर की शायरी को उस समय के आलोचकों ने ठुकरा दिया था, जो शायद ही उन्हें शायर मानते थे, क्योंकि वे लोगों की भाषा को पसंद नहीं करते थे, जिसका उन्होंने इस्तेमाल किया था, उन्होंने इसे अश्लील भाषा समझा, क्योंकि यह बोलचाल की भाषा थी...’’
पुस्तक के अनुसार, तनवीर को सरल भाषा दिलचस्प लगी, उन्होंने नजीर की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘वह बहुत विनम्रता के व्यक्ति थे और उन्होंने कभी भी अपनी चीजों को प्रकाशित या एकत्र करने की जहमत नहीं उठाई. वह कुछ लिखे जाने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को जवाब देने के लिए जाने जाते थे, हो सकता है कि एक विक्रेता कह रहा हो तरबूज पे कुछ लिख दीजिये. तो वह करेगा, और वे इसे गाएंगे और अपना फल बेचेंगे. और यह सब सुंदर कविता है.’’
नजीर ने तैराकी और पतंगबाजी टूर्नामेंटों के बारे में लिखा, उन्होंने भारत के सभी स्वदेशी वनस्पतियों और जीवों के बारे में लिखा. आप चाहें तो संस्कृत साहित्य से या नजीर की शायरी से उनका पता लगा सकते हैं. अधिकांश उर्दू शायरी ईरानी वनस्पतियों और जीवों को दोहराती है, जो कि कश्मीर में पाए जाने वाले सबसे अच्छे पेड़ों पर हैं. नजीर के पास मोतिया, चमेली, गेंदा, सभी भारतीय फूल हैं, तोता, मैना, बया, गिलहरी - ये सभी जानवर और पक्षीय सभी धर्मों के संदर्भ-गुरु नानक, हजरत मोहम्मद, अली, बलदेवजी का मेला, राम-एक बहुत ही उदार, खुले विचारों वाले व्यक्ति. सच्चा शायर. कुछ अमुद्रणीय शब्दों के साथ बहुत कामुक, बहुत ही कामुक शायरी, लेकिन सुंदर, कुदाल को कुदाल कहना - उस तरह की कविता ...’’
हबीब की कृतियों का कद विशाल है फिर भी वर्तमान समय में ‘नया थियेटर’ बीते जमाने की बात है, डॉ. आलम कहते हैं, ‘‘दुर्भाग्य से, मैं उनके पतन का गवाह रहा हूं जिसके लिए वह जिम्मेदार हैं, वह इसके लिए बहुत कुछ कर सकते थे. रंगमंच उद्योग, इसे लोकप्रिय बना सकता था, लेकिन...देखिए यदि कोई बोलचाल के कलाकार को उसकी अपनी भाषा में प्रशिक्षण दे रहा है, तो उनकी प्रतिभा में कुछ भी नहीं जोड़ा जाता है...उनकी योग्यता एक विरासत हो सकती थी लेकिन...वह एक विद्रोही थे...’’
डॉ. आलम ने कहा, ‘‘वह आधुनिक रंगमंच, यूरोपीय रंगमंच, आधुनिक मंच, ओरिएंटल रंगमंच के उस्ताद थे. वह एक स्वतंत्र कलाकार थे जिन्होंने मूल होने का फैसला किया ... भले ही इसका मतलब कोई विरासत न छोड़ना हो ...’’