पितृ पक्ष 2025: पूर्वजों की कृपा पाने का पावन अवसर, जानें तिथियां और महत्व

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 07-09-2025
What is to be done in Pitru Paksha? (IMG: AI)
What is to be done in Pitru Paksha? (IMG: AI)

 

अनीता
 
भारत की धार्मिक परंपराओं में अनेक पर्व और उत्सव ऐसे हैं, जो केवल देवताओं की उपासना के लिए नहीं बल्कि ’’पूर्वजों की स्मृति’’ और उनके प्रति ’’श्रद्धा व्यक्त करने’’ के लिए भी मनाए जाते हैं. इन्हीं में से सबसे प्रमुख है ’’पितृ पक्ष’’ जिसे ’’श्राद्ध पक्ष’’ भी कहा जाता है. इस पखवाड़े में हिन्दू धर्मावलंबी अपने पितरों को तर्पण, पिंडदान और दान अर्पित करते हैं. पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर स्वर्ग लोक से धरती लोक में विचरण करने आते हैं और अपने परिवार जनों की देखभाल करते हैं और आशीर्वाद देते हैं.
 

इस बार पितृ पक्ष का प्रारंभ 7 सितंबर से होगा. कुल 15 दिन तक चलने वाले इस पक्ष में प्रत्येक तिथि को किसी न किसी विशेष श्राद्ध का महत्व है. जैसेः प्रतिपदा श्राद्ध, द्वितीया श्राद्ध, सप्तमी श्राद्ध, एकादशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध और अंत में सर्वपितृ अमावस्या. पितृपक्ष की सभी प्रमुख तिथियां इस प्रकार हैं:
 
- पूर्णिमा तिथि श्राद्ध - रविवार 7 सितंबर 2025 को होगा
- प्रतिपदा तिथि श्राद्ध - सोमवार 8 सितंबर 2025 को होगा
- द्वितीया तिथि श्राद्ध - मंगलवार 9 सितंबर 2025 को होगा
- तृतीया तिथि श्राद्ध ? चतुर्थी तिथि श्राद्ध - बुधवार 10 सितंबर को होगा
- भरणी तिथि और पंचमी तिथि श्राद्ध - गुरुवार 11 सितंबर को होगा
- षष्ठी तिथि श्राद्ध - शुक्रवार 12 सितंबर 2025 को होगा
- सप्तमी तिथि श्राद्ध - शनिवार 13 सितंबर 2025 को होगा
- अष्टमी तिथि श्राद्ध - रविवार 14 सितंबर 2025 को होगा
- नवमी तिथि श्राद्ध - सोमवार 15 सितंबर 2025 को होगा
- दशमी तिथि श्राद्ध - मंगलवार 16 सितंबर 2025 को होगा
- एकादशी तिथि श्राद्ध - बुधवार 17 सितंबर 2025 को होगा
- द्वादशी तिथि श्राद्ध - गुरुवार 18 सितंबर 2025 को होगा
- त्रयोदशी तिथि?मघा श्राद्ध - शुक्रवार 19 सितंबर 2025 को होगा
- चतुर्दशी तिथि श्राद्ध - शनिवार 20 सितंबर 2025 को होगा
- सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध - रविवार 21 सितंबर 2025 को होगा
 
पितृ पक्ष का महत्व

भारतीय संस्कृति में यह माना गया है कि हम अपने जीवन में जो कुछ भी हैं, उसमें पूर्वजों का योगदान सर्वोपरि है. इस काल में उनका स्मरण कर आभार प्रकट किया जाता है. श्राद्ध व तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है. धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि पितर प्रसन्न होकर वंशजों को धन-धान्य, संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिनकी कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके लिए इस समय किया गया श्राद्ध और पूजा अत्यंत लाभकारी होती है. गीता और पुराणों में कहा गया है कि संतान का पहला कर्तव्य अपने पूर्वजों के प्रति श्राद्ध करना है.
 
धार्मिक उद्धरण

’’महाभारत ’’ के अनुसार, जब भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध का महत्व बताया, तब यह स्पष्ट हुआ कि पितरों की तृप्ति से देवताओं और मनुष्यों का कल्याण होता है. ’’गरुड़ पुराण’’ में कहा गया है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध न करने पर पितर नाराज होकर वंशजों की उन्नति रोक सकते हैं. ’’मनुस्मृति’’ में श्राद्ध को संतान का परम कर्तव्य बताया गया है.
 
 
पितृ पक्ष में पूजा विधि

- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. संकल्प लें कि आप अमुक तिथि पर अमुक पूर्वज का श्राद्ध कर रहे हैं.
- जल में तिल, कुश और पुष्प मिलाकर सूर्य की ओर मुख करके “ॐ पितृभ्यः स्वधा” का उच्चारण करते हुए तर्पण करें.
- पके हुए चावल, जौ, तिल और शहद से बने पिंड को धरती पर रखकर पितरों को अर्पित करें.
- ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना अत्यंत शुभ माना गया है.
- कौवे, गाय और कुत्ते को भोजन करवाया जाता है. यह माना जाता है कि इनके माध्यम से पितर भोजन ग्रहण करते हैं.
- “ॐ पितृभ्यः स्वधा” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्रों का जप करना श्रेष्ठ है.
 
तर्पण

पितरों को जल श्राद्ध पक्ष में सुबह 11.30 बजे से दोपहर 12.30 बजे के बीच कुतप काल में देना सबसे शुभ माना जाता है. जल देते समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कांसे या तांबे के लोटे से सीधे हाथ के अंगूठे से जल अर्पित करें. जल में काले तिल और कुश डालकर “ॐ पितृभ्यः स्वधा” और ‘ॐ पितृभ्यो नमः’ जैसे मंत्रों का जाप करें.
 
 
दान का महत्व और प्रकार
 
पितृ पक्ष में दान को विशेष महत्व दिया गया है. चावल, आटा, दाल और तिल का अन्न दान करना श्रेष्ठ है. गरीबों और ब्राह्मणों को वस्त्र दान करने से पुण्य मिलता है. ’’गौ सेवा’’ में गौ-दान या गाय को चारा खिलाना शुभ माना गया है. प्यासे और भूखे लोगों को अन्न और जल पिलाना सबसे बड़ा पुण्य है. सर्वपितृ अमावस्या पर किया गया दान सर्वोपरि होता है.
 
पितृ पक्ष में क्या न करें

- शुभ कार्य जैसे विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश आदि न करें.
- मांस, शराब और तामसिक भोजन का सेवन वर्जित है.
- कटु वचन बोलने से बचें.
- काले कपड़े पहनना अशुभ माना गया है.
- किसी का अपमान या शोषण करने से पितर अप्रसन्न होते हैं.
 
समाज और परंपरा

भारत के गाँवों और कस्बों में पितृ पक्ष को सामूहिक रूप से भी मनाया जाता है. गंगा, नर्मदा, यमुना, सरयू जैसी नदियों के किनारे लोग स्नान और पिंडदान करते हैं. गया (बिहार), उज्जैन, प्रयागराज और हरिद्वार में तो विशेष मेले लगते हैं. यह परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है और यह सिखाती है कि नई पीढ़ी अपने अतीत को न भूले.
 
पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह ’’पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता’’ और ’’परिवार में एकता’’ का प्रतीक है. इस पखवाड़े में श्रद्धा और भाव से किया गया श्राद्ध, तर्पण और दान न केवल पितरों को तृप्त करता है बल्कि परिवार को भी सुख-समृद्धि प्रदान करता है.