नई दिल्ली
गर्मी और बरसात के मौसम के बाद भले ही पतझड़ शुरू हो गया हो, लेकिन धूप की तीव्रता कम नहीं हुई है। आसमान साफ़ होने की वजह से रोज़ तेज़ धूप निकल रही है, जिसका असर बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी की त्वचा पर पड़ रहा है। मध्यम मात्रा में धूप जहाँ सेहत और त्वचा के लिए लाभकारी होती है, वहीं लंबे समय तक धूप में रहने से त्वचा पर लालिमा, जलन, चकत्ते और खुजली जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इनसे बचाव के लिए सनस्क्रीन का नियमित इस्तेमाल बेहद ज़रूरी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हमारी त्वचा को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाने वाली दो पराबैंगनी किरणें हैं – यूवी-ए और यूवी-बी।
यूवी-ए त्वचा की गहराई तक पहुँचकर झुर्रियाँ, समय से पहले बुढ़ापा और डीएनए क्षति जैसी समस्याएँ पैदा करती है।
यूवी-बी त्वचा की ऊपरी परत पर असर डालती है, जिससे सनबर्न और यहाँ तक कि त्वचा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
सनस्क्रीन त्वचा पर एक सुरक्षात्मक परत बनाकर इन किरणों से बचाव करता है। बाजार में मुख्य रूप से दो प्रकार के सनस्क्रीन उपलब्ध हैं:
भौतिक सनस्क्रीन – इनमें जिंक ऑक्साइड और टाइटेनियम ऑक्साइड जैसे तत्व होते हैं, जो सूर्य की किरणों को परावर्तित करके त्वचा में घुसने से रोकते हैं।
रासायनिक सनस्क्रीन – इनमें ऑक्सीबेनज़ोन या ऑक्टोक्राइन जैसे तत्व होते हैं, जो यूवी किरणों को अवशोषित कर उन्हें गर्मी में बदल देते हैं।
उष्णकटिबंधीय देशों जैसे बांग्लादेश में सूर्य का प्रकाश साल भर सीधा पड़ता है, जिससे पराबैंगनी किरणों की मात्रा अधिक होती है। दिनभर 10–12 घंटे तक धूप रहती है। नतीजतन, जो लोग बाहर काम करते हैं, वे त्वचा संबंधी कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। वहाँ की नमी और उमस की वजह से फंगल इन्फेक्शन, रोमछिद्र बंद होना, अत्यधिक पसीना और डिहाइड्रेशन जैसी समस्याएँ भी बढ़ जाती हैं।
अध्ययन बताते हैं कि बिना किसी सुरक्षा उपाय के लंबे समय तक धूप में रहने वालों में त्वचा कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। बांग्लादेश और भारत जैसे देशों में लोगों की त्वचा में स्वाभाविक रूप से मेलेनिन की मात्रा अधिक होती है। पराबैंगनी किरणें जब त्वचा में ज़्यादा प्रवेश करती हैं तो मेलेनिन उत्पादन भी बढ़ जाता है, जिससे काले धब्बे, असमान त्वचा रंग और मेलास्मा जैसी समस्याएँ होने लगती हैं।
सही मात्रा में सनस्क्रीन लगाएँ। चेहरे और गर्दन के लिए कम से कम एक चम्मच सनस्क्रीन पर्याप्त माना जाता है।
हर दो घंटे बाद दोबारा लगाएँ, ख़ासतौर पर पसीना आने या पानी के संपर्क में आने के बाद।
हमेशा ब्रॉड स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन चुनें, जो दोनों तरह की यूवी किरणों से बचाए।
केमिकल सनस्क्रीन लगाने के बाद इसका असर शुरू होने में लगभग 15 मिनट लगते हैं, इसलिए बाहर जाने से पहले समय का ध्यान रखें।
SPF पर ध्यान दें। SPF 30 वाला सनस्क्रीन लगभग 97% और SPF 50 वाला 99% तक हानिकारक किरणों को रोकता है।
धूप के हानिकारक प्रभाव तुरंत नहीं दिखते, बल्कि वे धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि रोज़मर्रा की देखभाल में सनस्क्रीन को शामिल किया जाए। गुणवत्तापूर्ण सनस्क्रीन का नियमित उपयोग न केवल त्वचा को झुलसने से बचाता है बल्कि उसे दीर्घकालिक नुकसान से भी सुरक्षित रखता है।