दूधिया मालदाः इस आम की दीवानी थीं महारानी विक्टोरिया

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] • 2 Years ago
दूधिया मालदा आम
दूधिया मालदा आम

 

सेराज अनवर / पटना

आम की कई किस्में हैं. अलफान्सो, सिंधूरा, लंगड़ा, दशहरी, चौसा, बादामी, तोतापुरी, केसर, हिमसागर, सफेदा, नीलम, जर्दालु आदि. इन आमों में एक आम बहुत खास हैं.नाम है दूधिया मालदा. कहते हैं सौ साल पहले पाकिस्तान से लायी  गयी  आम की इस अनोखी प्रजाति को दूध से सींचा गया था, इसलिए नाम पड़ा दूधिया मालदा. यदि लखनऊ का दशहरी रानी है, तो दीघा का मालदा राजा है. बिहार में इसे किंग ऑफ  मैंगो भी कहा जाता है.

दूधिया मालदा आम की चाहत सिर्फ बिहार और देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी उतनी ही है. देश-दुनिया में आम की चर्चा बिहार के बगैर पूरी नहीं हो सकती है. यहां से आमों को अमेरिका, यूरोप, दुबई, स्वीडन, इंग्लैंड और कई अन्य देशों में निर्यात किया जाता है.

इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया मालदा आम की मुरीद रही हैं. साल 1952 में मशहूर फिल्म अभिनेता राजकपूर और गायिका सुरैया भी दीघा के बगीचे में आए थे और टोकरी भर कर दूधिया मालदा मुंबई लेकर गए थे.

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, इंदिरा गांधी सहित कई बड़ी शख्सियतों को दूधिया मालदा का स्वाद दीवाना बना चुका है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद को दीघा का मालदा बहुत पसंद था. जब राजेंद्र बाबू दिल्ली में थे, तो वे अक्सर दीघा का मालदा को याद किया करते थे. जिस साल 1962 में वे पटना लौटे उस साल मालदा की बहुत अच्छी फसल हुई थी. हर साल देश के प्रमुख हस्तियों, नेताओं, उद्योगपतियों व सेलिब्रेटी को यहां से आम की खेप भेजी जाती है.

नवाब फिदा हुसैन ने लगाए थे पेड़

लखनऊ के नवाब थे फिदा हुसैन. कहते हैं कि उन्होंने ही पाकिस्तान के इस्लामाबाद के शाह फैसल मस्जिद के इलाके से आम की इस खास प्रजाति का पौधा लाया था. पटना में रहने के दौरान फिदा हुसैन ने दीघा रेलवे क्रॉसिंग एवं उसके आसपास के इलाके में मालदा आम के 50 से ज्यादा पेड़ लगाए थे.

कहा जाता है कि नवाब साहब के पास बहुत सी गायें थीं. जब इनका दूध बच जाता था, तो उन्हें आम की जड़ों में डाल दिया जाता था. कुछ दिन बाद आम के पेड़ में फल आए, तो उसमें से दूध जैसा पदार्थ निकला. इसके कारण आम का नाम दूधिया मालदा  पड़ गया.

नवाब साहब के बाद मो. इरफान ने इन पेड़ों की खूब सेवा की. एक समय पूरा इलाका इरफान के बगीचे के नाम से जाना जाता था. मोहम्मद इरफान की देखरेख में दूधिया मालदा ने राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब ख्याति अर्जित की. बगीचे के आमों ने अखिल भारतीय आम प्रदर्शनी में लगातार प्रथम स्थान प्राप्त किया था. वर्ष 1997 में सिंगापुर में हुई आम प्रदर्शनी में पटना के दीघा आम की खुशबू ने पहला स्थान प्राप्त किया था.

इंदिरा को हर साल भेजे जाते थे

इंदिरा गांधी जब तक जिंदा रहीं, हर साल इरफान साहब के आम उन तक पहुंच जाते थे. हालांकि इरफान साहब के गुजरते ही बगीचे भी उजड़ने लगे. कुछ जमीन पर मकान बन गए, तो कई जगह जलजमाव के कारण पेड़ बर्बाद हो गए. उनके बेटे अपने पूर्वजों की अमानत को बचा नहीं सके.

मो. इरफान के बगीचे अब संत जेवियर कॉलेज परिसर का हिस्सा हैं. कॉलेज को 2009 में ग्रीन एरिया घोषित कर दिया गया है. इस परिसर को तीन भागों में बांटा गया है, जिसमें आत्मदर्शन, तरुमित्र एवं टीचर ट्रेंनिग कॉलेज आते हैं. चर्च मिशन सहायता कर दीघा की पहचान को बरकरार रखने में मदद कर रही है.

दूधिया मालदा की खासियत

दीघा स्थित दूधिया मालदा आम के ये बाग आज भी हैं, मगर तेजी से सिमटते जा रहे हैं. सौ साल पहले लगाए गए पेड़ अब बूढ़े हो गए हैं. कुछ सुखने लगे हैं. नए पेड़ उस अनुपात में लगाए नहीं गए. अभी भी लगभग 100 बिगहे में फिलहाल दूधिया मालदह आम का बाग बचा है. बगीचे में दूर-दूर से लोग मई और जून के महीने में आम खरीदने पहुंचते हैं. कई दिन पहले ही आम का ऑर्डर दे दिया जाता है. 30 मई से लेकर 30 जून तक मालदा आम का अच्छा सीजन है. इस दौरान बाजार में भरपूर मात्रा में मालदा आम की आवक रहती है. इस समय के आम का स्वाद भी बेहतरीन होता है.

दीघा में होने वाले मालदा आम की खासियत यहां की मिट्टी की वजह से और ज्यादा बढ़ जाती है. यहां की सोंधी और उपजाऊ मिट्टी मालदा आम की मिठास और खुशबू में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

मंजरी आने से पहले दवाओं का छिड़काव एवं देखभाल करनी पड़ती है. वैसे तो बिहार में दूसरे राज्यों के आम भी आते हैं, मगर मालदा आम की मांग सबसे ज्यादा होती है. दूसरे राज्यों में भी इसकी सप्लाई की जाती है. बिहार के भागलपुर और कुछ अन्य जिलों में भी मालदा आम की पैदावार होती है, लेकिन दीघा घाट के दूधिया मालदा का स्वाद इससे काफी अलग होता है.

यह वेराइटी अपनी मिठास, खास रंग, गंध, ज्यादा गूदा और पतली गुठली और छिलके के कारण मशहूर है. पटना का मालदा जिसने नहीं चखा, यकीन मानिये उनका जीवन अधूरा है. अपनी पतली त्वचा, छोटे बीज, कम रेशे, दूधिया पीली लुगदी और एक अनोखी मीठी सुगंध के साथ, दूधिया मालदा को आम के शौकीन सबसे अच्छा मानते हैं.

बागों को बचाने की जरूरत

दीघा ठीक गंगा नदी के किनारे पर बसा इलाका है. दीघा निवासी हसरत हुसैन आवाज द वॉयस को बताते हैं कि आज से पहले जिस लजीज आम की खुशबू बाजार में फैल जाती थी, वो खुशबू धीरे-धीरे गायब हो रही है. कभी पटना के दीघा और राजीव नगर के इलाके में दूधिया मालदा आम के बागों का साम्राज्य था. बीघा का बीघा खेत केवल इस आम के ही बगानों से भरा पड़ा था. आज बगानों की जगह बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों ने ले ली है. दीघा और आशियाना रोड पर कुछ बगीचे बचे हैं, जो पुरानी परंपरा को सहेजने का काम कर रहे हैं.

हसरत बताते हैं कि साठ के दशक में आम किलो के भाव नहीं, गिनती से बेचे जाते थे. तब एक रुपए में बारह से चौदह आम तक मिल जाते थे. हसरत दूधिया मालदा के पेड़ों को सूबे के दूसरे हिस्सों में भी बड़े पैमाने पर लगाने की जरूरत पर जोर देते हैं। साथ ही कहते हैं कि सरकार को आम की इस प्रजाति के संरक्षण पर गंभीरता से विचार करना चाहिये.