मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
पटना के मशहूर और चर्चित शिक्षाविद् खान सर की शादी इन दिनों सोशल मीडिया पर खासा चर्चा में है.हर दिन उनसे जुड़ी नई-नई बातें सामने आ रही हैं.शादी की भव्यता, मेहमानों की शानोशौकत, और रिसेप्शन में कव्वाली जैसी रंगारंग प्रस्तुतियों के बीच एक सवाल सबसे ज़्यादा चर्चा में है – "आखिर खान सर ने दहेज में क्या लिया?"
हालांकि अब तक किसी ने भी उनकी पत्नी की तस्वीर या पहचान सार्वजनिक नहीं की है.रिसेप्शन में भी उनकी पत्नी पूरे घूंघट में थीं.इसीलिए लोगों की जिज्ञासा और भी बढ़ गई – "वो कौन हैं? क्या करती हैं?" लेकिन इस सबके बीच, खान सर ने खुद एक ऐसा खुलासा किया है जिसने सबको चौंका दिया.
वायरल हो रहे एक वीडियो में खान सर क्लास के दौरान कहते सुने जा सकते हैं –"हम दहेज के सख्त खिलाफ हैं.कोई हमसे दहेज की बात करने की हिम्मत नहीं कर सकता."
इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने अपनी शादी इस्लामी तरीके से की है, जिसमें फिजूलखर्ची की सख्त मनाही है.उन्होंने स्पष्ट किया कि शादी भले ही सादगी से हो, लेकिन रिसेप्शन समाज को बताने के लिए आयोजित किया जा सकता है – और उन्होंने वही किया.
जब दहेज को लेकर सवाल किया गया तो खान सर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया –"दहेज में हमें मिला है – मिट्टी की सुराही, एक मटका, हाथ से झलने वाला पंखा, एक जानेमाज़ और कुरान शरीफ."
लोग ये सुनकर हैरान रह गए कि जिसने हज़ारों लोगों के जीवन को शिक्षा से बदला, जिसने अपनी क्लास से पूरे देश में पहचान बनाई, वह व्यक्ति दहेज के नाम पर सिर्फ मिट्टी के बर्तन और एक पंखा लेकर खुश है.
इस्लाम में दहेज नहीं, "मेहर" है जरूरी
इस्लामी निकाह एक कानूनी और धार्मिक अनुबंध होता है, जिसमें पति-पत्नी की आपसी सहमति ज़रूरी होती है। इसमें दो गवाहों की मौजूदगी और एक निकाहनामा (लिखित अनुबंध) जरूरी होता है.इसके अंतर्गत:
मेहर (या महर): यह वह उपहार या धनराशि होती है, जो पति द्वारा पत्नी को दी जाती है.
सादगी: शादी में दिखावा और फिजूलखर्ची से बचने की सिफारिश की जाती है.
सहमति: दोनों पक्षों की स्वतंत्र सहमति आवश्यक है.
ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि इस्लाम में दहेज (जोकि आज के समाज में ससुराल वालों को दी जाने वाली सामग्री के रूप में देखा जाता है) का कोई अस्तित्व नहीं है.
पैगंबर मोहम्मद साहब की मिसाल
इस्लामी परंपरा में सबसे बड़ा उदाहरण पैगंबर मुहम्मद साहब की बेटी हज़रत फातिमा की शादी का है.उन्होंने अपनी बेटी की शादी में इमाम अली को केवल 500दिरहम का सामान दिया, जो उस समय बहुत सामान्य और साधारण माना जाता था.कुछ रिवायतों में 174ग्राम सोने की बात भी कही गई है.इससे यह साफ होता है कि इस्लाम शादी को एक पवित्र बंधन मानता है, न कि कोई लेन-देन का सौदा.
दहेज बनाम मेहर – एक कानूनी नजरिया
बैरिस्टर ताहिर खान बताते हैं कि दहेज इस्लाम में मान्यता प्राप्त प्रथा नहीं है.यह परंपरा भारत और पाकिस्तान में हिंदू परंपरा से प्रभावित होकर मुस्लिम समाज में घुस आई है, जबकि कुरान और हदीस में सिर्फ मेहर का उल्लेख मिलता है, जिसे पत्नी का वैध और कानूनी अधिकार माना गया है.
खान सर ने एक बार फिर समाज के सामने एक प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है – जहां उन्होंने दिखाया कि सादगी, नैतिकता और सिद्धांतों से बढ़कर कुछ नहीं होता.उन्होंने साबित कर दिया कि एक शिक्षक सिर्फ किताबों से नहीं, अपने आचरण से भी लोगों को सीख दे सकता है.
आपको क्या लगता है – क्या आज के युवाओं को भी खान सर की तरह शादी को सादगी से नहीं करना चाहिए?