भारत की उभरती हुई हॉकी स्टार मुमताज़ ख़ान की कहानी किसी बॉलीवुड बायोपिक की स्क्रिप्ट जैसी लगती है—संघर्ष, बलिदान और प्रतिभा से भरी एक सच्ची ‘चक दे!’ कहानी.लखनऊ की तंग गलियों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैदानों तक का उनका सफर जुनून और कड़ी मेहनत का जीता-जागता उदाहरण है.
2018 में ब्यूनस आयर्स यूथ ओलंपिक में 10शानदार गोल दागकर मुमताज़ ने देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा था, और भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई.उनकी फुर्ती, सटीकता और खेल की सहज समझ ने उन्हें भारतीय महिला हॉकी की सबसे होनहार फॉरवर्ड खिलाड़ियों में शामिल कर दिया है.
आठ भाई-बहनों वाले परिवार में जन्मी मुमताज़ ने लखनऊ के कैंट इलाके की एक छोटे से कमरे में बचपन बिताया.उनके पिता हफीज़ ख़ान कभी साइकिल रिक्शा चलाते थे, बाद में परिवार चलाने के लिए एक सब्ज़ी की छोटी-सी दुकान शुरू की.
मुमताज़ और उनके भाई-बहन नियमित रूप से दुकान में हाथ बंटाते थे, साथ ही पढ़ाई और घर के काम भी संभालते थे.ज़िंदगी कठिन थी, लेकिन उम्मीद कभी नहीं टूटी.
2011में एक स्कूल रेस के दौरान कोच नीलम सिद्दीकी की नजर मुमताज़ पर पड़ी. मुमताज़ याद करती हैं,“वो मेरे अब्बू से मिलीं और कहा कि मुझे हॉकी खेलने देना चाहिए.”“उस वक्त मुझे ठीक से पता भी नहीं था कि हॉकी होती क्या है.लेकिन जैसे ही मैंने स्टिक पकड़ी, समझ गई कि यही मेरा रास्ता है.”
आज 21 साल की मुमताज़ भारतीय जूनियर महिला हॉकी टीम में फॉरवर्ड की भूमिका निभा रही हैं और दक्षिण अफ्रीका के पोटचेफस्ट्रूम में जूनियर वर्ल्ड कप में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
“ये अब्बू का सपना था कि मैं भारत के लिए खेलूं। इस टूर्नामेंट में अपना सब कुछ देना चाहती हूं, ताकि उन्हें मुझ पर गर्व हो,” वो कहती हैं। अक्सर लखनऊ हॉकी हॉस्टल में प्रैक्टिस करती नजर आने वाली मुमताज़ की सफलता की कहानी अनुशासन और वर्षों की कड़ी मेहनत की मिसाल है.
उनकी उपलब्धियाँ भी कम नहीं हैं: 2016 अंडर-18 एशिया कप में कांस्य पदक, 2018 सिक्स-नेशन इनविटेशनल टूर्नामेंट में रजत, कैन्टर फिट्ज़गेराल्ड U-21 इंटरनेशनल फोर नेशन्स टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक, और 2022 में हॉकी इंडिया का 'असुनता लकड़ा अवार्ड फॉर अपकमिंग प्लेयर ऑफ द ईयर' से सम्मानित किया गया.
लेकिन इन तमाम उपलब्धियों के पीछे एक ऐसा परिवार है जो आज भी ज़मीन से जुड़ा हुआ है.उनकी बड़ी बहन फ़राह कहती हैं,“हमने पूरी ज़िंदगी संघर्ष किया, लेकिन जब मुमताज़ को इंडिया की जर्सी में देखते हैं तो लगता है कि सब कुछ सार्थक हो गया.
”दूसरी बहन रोही जोड़ती हैं, “बचपन से ही उसमें जुनून था.लेकिन आज जब उसे विदेश में देश के लिए खेलते देखते हैं तो यकीन नहीं होता.”
उनकी मां, क़ैसर जहां, जो अक्सर उनके पिता की अनुपस्थिति में सब्ज़ी की दुकान संभालती हैं, गर्व से कहती हैं, “हमने तो बस मेहनत की और बच्चों का साथ दिया.कभी नहीं सोचा था कि हमारी बेटी इतना ऊंचा उड़ान भरेगी.”
आज मुमताज़ न सिर्फ़ अपने परिवार के संघर्ष की प्रतीक हैं, बल्कि उस बदलते भारत की भी तस्वीर हैं, जहाँ प्रतिभा अब सीमाओं की मोहताज नहीं रही.हालाँकि फिलहाल उनका ध्यान जूनियर वर्ल्ड कप पर है, मुमताज़ की निगाहें पहले से ही अगले मुकाम पर हैं.
वो मुस्कुराकर कहती हैं,“एक-एक कदम करके चलना है. “मेरा सपना है कि सीनियर लेवल पर भारत के लिए पदक जीतूं.वही मेरे मां-बाप और उन सबके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया.”
जब पोटचेफस्ट्रूम की हवा में तिरंगा लहराता है, तो मुमताज़ ख़ान की कहानी हमें याद दिलाती है कि जब जुनून, अनुशासन और सही मार्गदर्शन साथ हो, तो सपनों की कोई सीमा नहीं होती.
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प्रस्तुति: विदूषी गौड़