साक़िब सलीम
“जब मैं संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत का राजदूत बनकर गया और मेरी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुझसे पूछा गया कि क्या मैं मुसलमान हूं, तो मैंने जवाब दिया — ‘इससे आपको क्या मतलब कि मेरा धर्म क्या है? यह मेरा निजी मामला है.आपको केवल इतना जानने का अधिकार है कि मैं एक भारतीय हूं और भारतीय होने पर गर्व करता हूं.
जब मैं किसी अमेरिकी से मिलता हूं, तो मैं उससे यह नहीं पूछता कि वह प्रोटेस्टेंट है, कैथोलिक है या यहूदी.मेरे लिए वह एक अमेरिकी नागरिक है.मैं उसे अमेरिकी के रूप में ही देखता हूं.तो भारत के लोगों के साथ ऐसा रवैया क्यों अपनाते हो?’”
यह शब्द थे महमूद अली करीम छागला (एम. सी. छागला) के — बॉम्बे हाईकोर्ट के पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाकिस्तान के विरुद्ध भारत का पक्ष रख चुके थे और जो भारत के शिक्षा मंत्री सहित कई उच्च पदों पर आसीन रहे.
वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े के अनुसार, 1950 में जब भारत का सर्वोच्च न्यायालय बना, तो छागला को पहला मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने का प्रस्ताव मिला था.
उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और इसके बाद यह पद न्यायमूर्ति एच. जे. कानिया को दिया गया.यह तथ्य दर्शाता है कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी, जब देश धार्मिक विभाजन की पीड़ा से गुज़रा था, तब भी शीर्ष नेतृत्व की सोच कितनी उदार और समावेशी थी.
1900 में बॉम्बे (अब मुंबई) में जन्मे छागला पर लोकमान्य तिलक का बचपन से गहरा प्रभाव था.1908में जब तिलक पर देशद्रोह का मुकदमा चला और उन्हें 6साल की सजा हुई, तो पूरे शहर में हिंसा भड़क उठी.
केवल 8वर्ष की उम्र में छागला ने भारतीय परिधान पहनकर ब्रिटिश विरोध में प्रदर्शन किया, जबकि उनके अभिभावकों ने उन्हें यूरोपीय कपड़े पहनने का आदेश दिया था.
यह राष्ट्रप्रेम आगे भी कायम रहा.कॉलेज में राष्ट्रीय राजनीति पर बहस आयोजित करने पर प्राचार्य ने उन्हें चेतावनी दी.ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उन्हें ‘क्रांतिकारी सोच’ रखने वालों में गिना गया.बंबई हाईकोर्ट में वकील बनने के बाद, उन्हें सिमोन कमीशन के विरोध में भाग लेने के कारण प्रोफेसर पद से हटा दिया गया.
छागला कभी जिन्ना के निकटतम सहयोगियों में से एक थे.उन्होंने लिखा, “एक समय ऐसा था जब जिन्ना से कोई मुझसे अधिक निकट नहीं था — अगर जिन्ना जैसे व्यक्ति से कोई निकट हो सकता था.जब उन्होंने दो-राष्ट्र सिद्धांत की वकालत शुरू की, तो मैंने उनसे नाता तोड़ लिया.यह निर्णय अंतिम और स्थायी था। फिर कभी मुलाकात नहीं हुई.”
छागला के अनुसार, “मैं हमेशा मानता रहा हूं कि भारत को एक देश और एक राष्ट्र बने रहना है.हिमालय उत्तर में है, चारों ओर समुद्र हैं, भारत एक विशिष्ट और स्वतंत्र भू-भाग है.देवताओं ने भी चाहा कि भारत अखंड और एक रहे.”
छागला न्यायिक नियुक्तियों में धर्म के आधार पर भेदभाव के सख्त खिलाफ थे.एक अवसर पर जब उन्होंने एक मुस्लिम सिविल जज की जगह एक गैर-मुस्लिम को तरक्की दी, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने आपत्ति जताई.छागला ने उत्तर दिया:“न्यायिक नियुक्तियों में मैं कभी सांप्रदायिक विचारों को स्थान नहीं देता.मेरे लिए केवल योग्यता मायने रखती है.यह मेरा धर्मनिरपेक्षता का दृष्टिकोण नहीं कि अल्पसंख्यक समुदाय से कोई व्यक्ति अयोग्य हो, फिर भी उसे नियुक्त किया जाए.
हाँ, यदि सभी योग्य जज मुस्लिम हों, तो मैं निःसंकोच सभी को नियुक्त करूंगा.परंतु न्यायपालिका में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की अवधारणा को स्वीकार करना इस संस्था की नींव को ही कमजोर कर देगा.”
पार्टी से बाहर के व्यक्ति को मंत्री बनाना राजनीतिक दृष्टि से असामान्य होता है, पर पंडित नेहरू ने छागला को 1963में केंद्रीय शिक्षा मंत्री नियुक्त किया.छागला के कार्यकाल में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की स्थापना की गई.
इसके अतिरिक्त अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर उनकी स्पष्ट और विवादास्पद राय थी:“AMU संविधान की परिभाषा के अनुसार अल्पसंख्यक संस्था नहीं है.
यह मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित या संचालित नहीं की गई है.यह एक राष्ट्रीय संस्था है, और इसमें समस्त राष्ट्र की रुचि है.अरबी और इस्लामी अध्ययन की विशेषता इसके चरित्र को नहीं बदलती, क्योंकि गैर-मुस्लिमों की भी इन विषयों में रुचि हो सकती है.”
1964-65 में जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया, तो छागला को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भेजा गया.पाकिस्तान के विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने दावा किया कि कश्मीर के मुसलमान भारत के खिलाफ हथियार उठाए हुए हैं.
“यह युद्ध दो विचारधाराओं के बीच है — एक तरफ धार्मिक राज्य है, और दूसरी ओर धर्मनिरपेक्ष राज्य.कश्मीर समस्या नहीं है, यह तो केवल लक्षण है; असली बीमारी यह है कि पाकिस्तान धर्म को नागरिकों के बीच संबंध का आधार मानता है, जबकि हम धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं.”
उन्होंने कहा, “पाकिस्तान के लिए सब कुछ सांप्रदायिक है.वह समझ ही नहीं सकता कि हिन्दू और मुसलमान कश्मीर में शांतिपूर्वक और मित्रवत कैसे रह सकते हैं.उसकी सोच यही है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच घृणा स्वाभाविक है.”
छागला के इन तर्कों से भारत को कई देशों का समर्थन मिला और पाकिस्तान का यह दावा खंडित हुआ कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है.छागला केवल सत्ता के साथ नहीं थे, बल्कि सत्य और न्याय के पक्षधर थे.
1975 के आपातकाल के दौरान जब विपक्ष के नेता गिरफ्तार किए गए, तो छागला बेंगलुरु गए और अटल बिहारी वाजपेयी, एल. के. आडवाणी, मधु दंडवते, और श्यामनंदन मिश्रा की रिहाई के लिए मुकदमा लड़ा.
29 दिसंबर 1980 को जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने, तब एम. सी. छागला उस ऐतिहासिक समारोह के मुख्य अतिथि थे.
एम. सी. छागला एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारशील राष्ट्र निर्माता थे.वह उन आदर्शों का प्रतीक थे जिन पर भारत की नींव रखी गई — धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता.उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्ची धर्मनिरपेक्षता किसी भी राजनीतिक नारे से कहीं अधिक गहरी, वैचारिक और नैतिक प्रतिबद्धता है.