सैयद तालिफ़ हैदर
भारत एक बहुभाषी देश है. इस देश की ख़ूबसूरती यह है कि इसमें कई भाषाएँ बोली और समझी जाती हैं.सभी भाषाएँ भारतीय होने के नाते हमारी अपनी भाषाएँ हैं.यही कारण है कि जब बंगाली, मराठी, तमिल, तेलुगु, गुजराती या किसी अन्य भारतीय भाषा का जिक्र होता है तो हम सभी भावुक हो जाते हैं.लेकिन हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसका जिक्र आते ही एकता का भाव जाग उठता है.
ऐसा इसलिए ,क्योंकि इसमें बंगाली की बुद्धिमत्ता और असमिया का मिठास, मराठी की निर्भीकता और तमिल की रोशनी, गुजराती का रंग और उर्दू का सांस्कृतिक छाप है.कश्मीर से कन्याकुमारी तक यह भाषा हर भारतीय के दिल में बसती है, एक ऐसी भाषा जो पूरे देश को एक सूत्र में पिरोती है.
यह संभव है कि एक गुजराती और एक मराठी या एक तेलुगु और एक असमिया भारत की अन्य भाषाओं से अनभिज्ञ हों, जिनमें हमारी सभी प्राचीन और आधुनिक भाषाएँ आती हैं.परंतु मैंने यह नहीं देखा कि भारत के किसी प्रांत में हिंदी भाषा को अज्ञात भाषा के रूप में देखा जाता हो.
हर भाषा का अपना आनंद है.वह आनंद ही उसकी पहचान है.यदि हम हिन्दी भाषा पर विचार करें तो हमें लगता है कि इस भाषा का आनंद इसकी अनुकूलता में निहित है.उदाहरण के लिए, यदि आप हिंदी बोल रहे हैं, तो आपको तुरंत एक भारतीय के रूप में पहचाना जाएगा.शायद यही कारण है कि हिंदी को भारतीय भाषाओं में सबसे बड़ा दर्जा प्राप्त है
.महान इसलिए नहीं कि इस भाषा के लेखक दूसरों से महान हैं, बल्कि इसलिए कि यह भाषा एक छोटे से भारतीय गाँव के चौराहे और दिल्ली और बम्बई जैसे शहरों की विशाल इमारतों में भी बोली जाती है. उर्दू और हिंदी इन दोनों भाषाओं के बारे में एक बात कही जाती है कि इन दोनों को दो अलग-अलग भाषाएं माना जाना चाहिए, तो इसे हम इतिहास की नजर से देखकर सही कर सकते हैं.
हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का ऐतिहासिक नाम हिंदुस्तानी है. अंग्रेजों ने कई ऐसे शब्दकोष तैयार किये हैं जिनमें उन्होंने हिन्दी के लिये हिंदुस्तानी और हिंदुस्तानी के लिये उर्दू का अर्थ लिया है.
इसका कारण यह है कि ये दोनों भाषाएँ दो लिपियों में लिखी गई एक भाषा हैं.लेकिन साथ ही कई लोग हिंदी के कठिन शब्दों का प्रयोग करते हैं.कहते हैं कि ऐसे शब्द हिंदी नहीं हैं, बल्कि सरल भाषा हिंदी है जो हम सभी समझते हैं, इसलिए हमे यह समझना चाहिए.मैं समझता हूं, दुनिया की किसी भी भाषा में कोई भी शब्द कठिन नहीं है.
यदि कोई शब्द आपको कठिन लगता है तो इसका कारण यह है कि उस शब्द का उपयोग आप कम करते हैं कम है.उदाहरण के लिए, हिंदी के वे सभी शब्द जो हिसाब की शर्तों को समझाते हैं या भौतिकी के सिद्धांतों को समझाते हैं. एक कला छात्र के लिए कठिन हो सकते हैं, जैसे एक कला छात्र की भाषा किसी अन्य विषय के छात्र के लिए कठिन है.
प्रत्येक भाषा के अनेक वृत्त होते हैं.इसमें सहजता और कठिनाई के स्तर हैं.यदि आपको प्रेमचंद, हजारी प्रसाद देवीदी, जया शंकर प्रसाद, कमलेश्वर, कृष्णा सोबती और हरिवंश राय बच्चन की भाषा पसंद है और आप उनका साहित्य पढ़ते हैं, तो यह कैसे संभव है कि आपको उनकी भाषा और आम आदमी की भाषा में अंतर नज़र नहीं आएगा ? या आप एक अखबार के रिपोर्टर की भाषा के बजाय एक लेखक की भाषा में बात नहीं कर रहे होंगे.
लेकिन इस अखबार के रिपोर्टर की दुनिया आम लोगों की समस्याओं से घिरी हुई है, कोई भाषा खराब या हल्की नहीं होती है, बल्कि आप इसे भाषा का एक अलग स्तर कहते हैं.हिंदी की विशेषता यह है कि यह हर स्तर पर अन्य भाषाओं के शब्दों के साथ संबंध स्थापित करती है.
यह भारत के हर प्रांत में लोकप्रिय भी है,क्योंकि यह नए शब्दों के साथ जुड़ती है.यही हाल उर्दू का भी है.यह अलग बात है कि ये दोनों भाषाएं जिन्हें मूल रूप से हिंदी के नाम से जाना जाना चाहिए बल्कि अब भारती भाषा का नाम दिया जाना चाहिए, दो अलग-अलग शरीरों में सांस ले रही हैं.
हिंदी भाषा के साथ अपना रिश्ता मजबूत करने के लिए हम भारतीयों को इसके साहित्य का अध्ययन शुरू करना चाहिए.हर किसी को सुबह की मेज पर इस भाषा का अखबार देखने की आदत डालनी चाहि.इसकी प्रतिष्ठा को मजबूत करने के लिए अपने घर के छोटे बच्चों को इस भाषा का गहन ज्ञान प्राप्त करना सिखाना चाहिए.शायद इस प्रकार हम इस भाषा को वह स्थान दे सकेंगे जिसकी यह वास्तव में हकदार है.जिसके प्रति हर धर्म और हर वर्ग के भारतीयों का समान भावनात्मक होना चाहिए.इसी तरह इस भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल सकता है.