मंसूरुद्दीन फरीदी
बिरयानी-यह केवल एक व्यंजन नहीं है. यह पूरी एक संस्कृति, एक आस्था, एक जुनून, एक पागलपन, एक लत, एक शान और एक कहानी है. बिरयानी पकाते वक्त इसमें जज्बात भी घोले जाते हैं. इसे कई बार पेट भरने से कहीं अधिक उपकार की मंशा से खाया-पकाया जाता है. यह बिरयानी प्रेम ही है कि इसके प्रति आपकी निष्ठा और विरासत बढ़ती जा रही है.
दरअसल, बिरयानी अब समारोहों का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. हद यह कि किसी शादी में यदि बिरयानी न हो तो मेहमाननवाजी भी अधूरी मानी जाती. किसी की मौत के ‘शोक भोज’ में इसे नहीं खिलाया तो समझें मरने वाले की आत्मा खतरे में है.
यहां तक कि त्योहार और घरेलू फंक्शन बिरयानी के बगैर पूरे नहीं माने जाते. राजनीतिक पार्टियां और उर्स भी इसके बिना अधूरे हैं. खाने का मतलब ही बिरयानी हो गया है. इसके स्वाद के असर और खुशबू ने इसे जीवन और मृत्यु का दर्जा दे दिया है.
शादी के मंडप से लेकर समारोह में टेबल की शोभा के कारण बिरयानी की लोकप्रियता और प्रसिद्धि ज्यादा बढ़ी है. हालांकि, अगर जायका और खुशबू से पहले बिरयानी के अस्तित्व की बात करें तो इस संबंध में अलग-अलग दावे और कहानियां हैं.
भारत और पाकिस्तान में इससे जुड़े कई दिलचस्प किस्से है . इन्हीं किस्से-कहानियों की बदौलत बिरयानी की लोकप्रियता लखनऊ के नवाबों से लेकर हैदराबाद के निजामों तक सदियों से कायम है. मगर यह भी एक सच्चाई है कि बिरयानी की उत्पत्ति अब तक रहस्य ही बनी हुई है.
बिरयानी कहां से आई?
बिरयानी कहां से आई और यह टेबल की सजावट कैसे बनी ? यानी बिरयानी की खोज या आविष्कार को लेकर कई कहानियां और सिद्धांत हैं.यह एक तथ्य है कि भारत में बिरयानी की उपस्थिति के बारे में अनगिनत सिद्धांत हैं.
यह व्यंजन भारत तक कैसे पहुंचा और यह देश की मेज तक ? आवाज द वॉइस से बात करते हुए मशहूर खाद्य इतिहासकार सलमा यूसुफ हुसैन ने कहा कि इस तथ्य से इनकार नहीं कि मुगल शासकों ने खाना पकाने की कला को बढ़ावा दिया.
भारत के साधारण व्यंजनों को एक कला की तरह पेश किया गया. बावजूद इसके बिरयानी भारत में मुगलों ने नहीं लाई. बल्कि इसकी अधिक संभावना है कि यह तीर्थयात्रियों, सैन्य परिवारों और कुछ नेताओं के साथ दक्षिण भारत में आई. बाद में, विभिन्न स्थानों पर पहुंचने के अनुसार स्थानीय स्वादों को पकवान में एकीकृत किया गया.
अन्य दावों की बात करें तो पहले दावे में तुर्क-मंगोल विजेता तैमूर का नाम आता है, जो 1398 में भारत की सीमा पर पहुंचा. वह अपने साथ बिरयानी का अनमोल उपहार लेकर आया. उन दिनों इसे बनाने का तरीका चावल बनाने जैसा था.
मसाले और जो भी मांस उपलब्ध होता था उसे मिट्टी के बर्तन में भरकर गर्म गड्ढे में दबा दिया जाता था. फिर एक निश्चित समय के बाद बाहर निकाला जाता था. इस दौरान तैमूर के सैनिकों के खाने के लिए यही गर्म स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता था.
ऐसा ही एक और दावा मुगल सम्राट शाहजहां और उनकी पत्नी रानी मुमताज महल (1593-1631) के बारे में है. इसके अनुसार शाहजहां ने एक बार एक सेना बैरक का दौरा किया. देखा कि उसके सैनिक कुपोषित हैं. शाहजहां की पत्नी ने अपने रसोइयों को एक अनोखा व्यंजन तैयार करने का आदेश दिया.
संतुलित पोषक तत्वों के साथ ताकि सैनिकों को भरपेट भोजन मिले और वे कुपोषण से उबर सकें. इसके परिणामस्वरूप बिरयानी को मांस, सुगंधित मसालों और तले हुए चावल के साथ ‘संपूर्ण भोजन’ के रूप में तैयार किया जाने लगा.एक और दावा यह है कि भारत में दक्षिण मालाबार के तट पर अरब व्यापारी अक्सर आते थे और बिरयानी उनकी देन है.
उस समय के इतिहास में चावल के एक व्यंजन का जिक्र मिलता है, जिसे तमिल साहित्य में ओन सोरो कहा जाता था. ये कहानी है सन 2 ईस्वी की. ओन सोरो नामक व्यंजन घी, चावल, मांस, हल्दी, काली मिर्च और धनिये के मिश्रण से बनाया जाता था. इस व्यंजन का उपयोग लश्कर के भोजन में भी किया जाता था.
इससे एक बात तो साफ है कि बिरयानी का अविष्कार किसी ने भी किया हो, लेकिन इसका मकसद सैनिकों का पेट भरना था, न कि शोक संतप्तों के लिए. कहा जाता है कि यह पोषक तत्वों का मिश्रण होता है, जिसे खाने के बाद सैनिक मजबूत हो जाते हैं और युद्ध में कड़ी मेहनत करने के लिए फिट हो जाते हैं.
हालांकि अब बिरयानी का असर इस हद तक बदल गया है कि लोग मेहनत करने के बजाय इस डिश को खाकर सो जाते हैं. ये वक्त और जरूरत ही है जिसने बिरयानी को बैरक से महफिलों तक पहुंचा दिया.
नाम में क्या रखा है ?
कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है. लेकिन जब बिरयानी की बात आती है तो सब कुछ नाम में ही होता है. अगर डिश के साथ बिरयानी शब्द जुड़ जाए तो हर किसी के मुंह में अपने आप पानी आ जाता है. बिरयानी की बात करें तो सलमा यूसुफ हुसैन के मुताबिक, यह शब्द बिरयानी का धर्म है, जो ईरान की भाषा फारसी का शब्द है.
इसका अर्थ है तला हुआ या भुना हुआ है. इस प्रकार बिरयानी दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व से अमेरिका और यूरोप तक पहुंच गई. इस दौरान इसका नाम तो बढ़ गया लेकिन बिरयानी शब्द वही रहा. भौगोलिक साक्ष्य इस प्रकार हैं- हैदराबादी बिरयानी, सिंधी बिरयानी, मेमन बिरयानी, बॉम्बे बिरयानी, कोलकाता बिरयानी.महत्वपूर्ण बात यह है कि इन भौगोलिक प्रभावों के बावजूद हर कोई बिरयानी पर विश्वास करता है. इसे राजाओं के लिए उपयुक्त भोजन कहा जाता है.
बिरयानी का स्वाद
अगर बिरयानी के नाम और स्वाद की बात करें तो इसकी एक लंबी लिस्ट है. यानी बिरयानी एक है, लेकिन नाम हजार हैं. जैसे अगर हम नवाबों के शहर की बात करें तो लखनऊ चिकन बिरयानी के लिए मशहूर है. कम मसालों के साथ इसकी स्वादिष्टता का कोई मुकाबला नहीं.
इसे ओढ़ी बिरयानी भी कहा जाता है. हैदराबादी बिरयानी का अपना एक अलग स्थान है, जो बेहद स्वादिष्ट और मसालेदार होता है. हैदराबाद डेक्कन प्रणाली को बिरयानी के 49 व्यंजन पेश करने का श्रेय दिया जाता है.
इसके साथ ही मुगलई बिरयानी है, जिसकी जड़ें शाहजहां से जुड़ी है. यह दिल्ली और उसके आसपास लोकप्रिय है. इसी तरह सिंध का नाम भी बिरयानी जोड़ गया है. सिंधी बिरयानी.जबकि बॉम्बे बिरयानी की लोकप्रियता प्याज के भारी उपयोग के कारण है, जो इसे मीठा और उच्च वसा सामग्री प्रदान करता है.
ऐसे में आप कोलकाता की आलू बिरयानी को नहीं भूल सकते, जिसका आलू कोलकाता के लोगों की आस्था की तरह बिरयानी सेक्शन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है. बात करते हैं तमिलनाडु की शान अंबर बिरयानी, कच्ची बिरयानी की, जो चावल को कच्चे मांस के साथ बनाया जाता है.
मालाबार बिरयानी केरल की है जिसमें मांस के बजाय मछली का उपयोग किया जाता है. मसाले बहुत तेज होते हैं. सुगंध हैदराबादी बिरयानी के समान होती है. एक है मुरादाबादी बिरयानी. इसका दायरा अब दिल्ली तक बढ़ गया है. भटकली बिरयानी कर्नाटक की है, जिसमें प्याज का इस्तेमाल ज्यादा होता है. इसके साथ ही राजस्थानी बिरयानी है जिसका स्वाद आप दरगाह अजमेर शरीफ में ले सकते हैं.
मांसाहारी बिरयानी के साथ सबसे बड़ा खिलवाड़ वेज बिरयानी यानी वनस्पति बिरयानी के नाम पर हुआ है, जो बिरयानी की प्रकृति के बिल्कुल विपरीत है. मांसाहारों का कहना है कि बिरयानी का मतलब चावल और मांस का मिश्रण है.
उपमहाद्वीप पहुंची बिरयानी
बिरयानी ने उपमहाद्वीप में भी अपने पैर पसार लिए हैं. श्रीलंकाई बिरयानी उन लोगों का आविष्कार है जो भारत से लंका गए . यह बिरयानी बहुत मसालेदार होती है. अफगानी बिरयानी अफगानिस्तान की शान है. इसमें मांस के साथ सूखे मेवों का भी इस्तेमाल होता है.
वक्त के साथ यह बात भी साफ हो चुकी है कि बिरयानी अब उपमहाद्वीप की संपत्ति नहीं रही. खुशबू के साथ बिरयानी भी दुनिया के कोने-कोने में फैल चुकी है. अब बिरयानी सात समंदर पार तक पहुंच गई है. अमेरिका से लेकर यूरोप तक और मिडिल ईस्ट से लेकर अफ्रीका तक आपको बिरयानी की महक मिल जाएगी.
दरअसल, बिरयानी का सफर सेना के व्यंजनों से शुरू होकर शाही मेज तक पहुंचा है. उसके बाद बिरयानी भारत में हैदराबाद के निजाम और लखनऊ के नवाब की मेज की सजावट बनी. फिर इसे शादियों और दूसरे आयोजनों में परोसा जाने लगा, लेकिन किसी ने नहीं सोचा होगा कि बिरयानी इन महफिलों और होटलों से निकलकर सड़क किनारे ठेलों तक पहुंच जाएगी.