नई दिल्ली
आमतौर पर फेंक दिया जाने वाला केले का छिलका दरअसल पोषण से भरपूर होता है। यह फाइबर, पोटेशियम और कई उपयोगी पादप यौगिकों का अच्छा स्रोत माना जाता है। बंगाली व्यंजनों में केले के छिलके से स्वादिष्ट सब्ज़ी और करी बनाई जाती है, जबकि पारंपरिक घरेलू उपचारों में इसके रस का भी उपयोग होता रहा है। सीमित मात्रा में और सही तरीके से तैयार किया गया केला-छिलका पाचन, गुर्दों की कार्यप्रणाली और शरीर के डिटॉक्स में सहायक हो सकता है। आइए इसके प्रमुख फायदों पर नज़र डालते हैं।
गुर्दे की पथरी से बचाव में सहायक
पारंपरिक चिकित्सा में केले के छिलके के रस का उपयोग गुर्दे की पथरी बनने या बढ़ने से रोकने के लिए किया जाता रहा है। कुछ प्रयोगशाला अध्ययनों के अनुसार, बिना अधिक संसाधित केला-छिलका हल्के मूत्रवर्धक की तरह काम कर सकता है। इससे मूत्र का प्रवाह बढ़ता है, शरीर से अतिरिक्त लवण और अपशिष्ट बाहर निकलते हैं और खनिज कणों के जमाव की संभावना कम हो सकती है।
रक्त शर्करा नियंत्रण में मदद
केले के छिलकों में पाए जाने वाले पेक्टिन, लिग्निन और पॉलीफेनॉल जैसे जैव-सक्रिय यौगिक रक्त शर्करा को संतुलित रखने में सहायक माने जाते हैं। पशु-अध्ययनों में संकेत मिले हैं कि ये यौगिक ग्लूकोज के उपयोग को बेहतर बनाते हैं और रक्त में शर्करा के अचानक बढ़ने को सीमित कर सकते हैं। मधुमेह रोगियों को इसे आहार में शामिल करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए।
पाचन और आंत्र क्रिया में सुधार
केले के छिलके में अघुलनशील आहार फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है, जो मल की मात्रा बढ़ाकर नियमित मलत्याग में मदद करता है। अध्ययन बताते हैं कि इसका उपयोग कब्ज, आंतों की सफाई और एसिडिटी के नियंत्रण में सहायक हो सकता है। फाइबर पेट को लंबे समय तक भरा रखता है, जिससे पाचन स्वास्थ्य बेहतर रहता है।
शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक
केले का छिलका प्राकृतिक रूप से मूत्र उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर सकता है, जिससे शरीर से अतिरिक्त पानी और चयापचय अपशिष्ट बाहर निकलते हैं। यह मूत्र तंत्र को साफ रखने, मूत्र पथ संक्रमण के जोखिम को कम करने और छोटे खनिज कणों को बाहर निकालने में सहायक माना जाता है। कम कैलोरी, पोटेशियम और अन्य इलेक्ट्रोलाइट्स की मौजूदगी के कारण यह तरल संतुलन और रक्तचाप बनाए रखने में भी मदद कर सकता है।
नोट: केले के छिलके का सेवन हमेशा अच्छी तरह साफ करके और पकाकर करें। किसी भी चिकित्सीय स्थिति में इसे नियमित आहार का हिस्सा बनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित है।






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