अनुश्री जरी कारीगरों को बना रहीं आत्मनिर्भर और स्वावलंबी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 3 Years ago
जरी का काम करते हुए कारीगर
जरी का काम करते हुए कारीगर

 

नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल के एक एनजीओ ने जरदोजी कारीगरों को गरीबी और संस्थागत उदासीनता से बचाने के लिए मदद का हाथ बढ़ाया है. ताकि उनकी कला की समृद्ध परंपरा को बनाए रखा जा सके और वे आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बन सकें. 

‘सुचेतना’ 1995 में स्थापित एक गैर-लाभकारी एनजीओ है, जिसने हाल ही में जरी का काम करने वाले मजदूरों को 10,000 साड़ियां, कई सौ किलो चावल और सिलाई मशीनें प्रदान की हैं. इन मजदूरों को तिरपाल भी दिए गए हैं, ताकि वे अपनी झोपड़ियों की छतों को ढंक सकें.

इसके अलावा यह संस्था इस समुदाय को कौशल प्रशिक्षण भी प्रदान कर रही है. इस अकेले कदम से इस समुदाय के बहुत से सदस्यों को राहत मिली है. इस समुदाय की संख्या अकेले हावड़ा जिले में अनुमानित 5 लाख पुरुष और महिलाएं हैं और जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं. 

कोविड-19 के बाद लगे लॉकडाउन, अम्फान चक्रवात और अन्य प्रतिकूलताएं इस समुदाय के लिए एक बड़ी चुनौती रही हैं. भारत शिल्पी कल्याण समिति, बंगाल के सचिव एसके यूनुस ने आवाज-द वॉयस को बताया, “सुचेतना ने हमारी बहुत मदद की है. संगठन ने हमारी स्थिति को समझा है और हमें भोजन, कपड़े, आश्रय और अन्य व्यवहार्य व्यवसायों को शुरू करने में मदद की है. अन्यथा, हम अस्तित्व की लड़ाई हार गए होते.”

इसी तरह, हावड़ा में पंचला के एक जरी कारीगरर इन्नाह मोलिक ने इन भावनाओं को व्यक्त किया, “हम बहुत कठिन समय से गुजरे हैं. सुचेतना के कार्यकर्ता हमसे मिलने आते हैं और हमारी जरूरतों में मदद करते हैं. जरी के कारीगर गरीबी में जी रहे हैं, वे दो वक्त की रोटी जुटाने में भी असमर्थ हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एनजीओ पेशेवर पुनर्वास में हमारी मदद कर रही है, क्योंकि जरी का काम अब घाटे का काम है.”

अनुश्री मुखर्जी द्वारा संचालित ‘सुचेतना’ 2003 में सोसायटी अधिनियम के तहत एक एनजीओ के रूप में पंजीकृत हुई थी. आवाज-द वॉयस से बात करते हुए अनुश्री मुखर्जी ने कहा, “हम महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास, साक्षरता सहित बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए डिजिटल शिक्षा कार्यक्रम सहित विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं. हम दूरदराज के गांवों को गोद ले रहे हैं और वहां के लोगों को सशक्त बनाने की कोशिश कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “राजस्थान में जोधपुर के पास पाबू पुरवा गांव, तमिलनाडु में अवाडी के पास मुथापुधुपेट को अपनाया है और जमीनी स्तर पर बहु-आवश्यक सशक्तीकरण प्राप्त करने के लिए स्व-सहायता समूहों के सहयोग से स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और साक्षरता कार्यक्रमों के साथ मॉडल गांवों के रूप में उनका पोषण किया है. यही उद्देश्य था और सुचेतना ने अपनी स्थापना के साथ स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम किया.”

अपने गृह जिले हावड़ा और पश्चिम बंगाल के कुछ अन्य जिलों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अनुश्री 2015 से जरूरतमंदों की मदद के लिए कई परियोजनाओं पर काम कर रही हैं.

अनुश्री बताती हैं, “स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण, शिक्षा, पर्यावरण आदि पर हमारा मुख्य ध्यान है. इसके साथ फुजेश्वर, उलुबेरिया, हावड़ा में संजीबन सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की मदद से हमारा एनजीओ पश्चिम बंगाल के सुदूर गांवों में गरीब लोगों को चिकित्सा सहायता के साथ मुफ्त स्वास्थ्य जांच शिविर प्रदान कर रहा है, जहां डॉक्टरों की कमी है. हमने हावड़ा की अनथ बंधु समिति में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान के तहत बेरोजगार युवाओं और अन्य लोगों के लिए एक मुफ्त डिजिटल साक्षरता पाठ्यक्रम भी शुरू किया है. यह 100 साल से अधिक पुरानी संस्था है.”

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‘सुचेतना’ की संस्थापक अनुश्री मुखर्जी


हावड़ा में जरी कारीगरों के साथ ‘सुचेतना’ की सक्रियता के बारे में, उन्होंने कहा कि हावड़ा में लगभग 5 लाख और पश्चिम बंगाल में लगभग 15 लाख जरी कामगार हैं. कोविड लॉकडाउन के दौरान और भारत और विदेशों में जरी के काम व शिल्प की घटती मांग के कारण, कई कारीगर बेरोजगार हो गए हैं. अगस्त 2020 में महामारी के बीच, सुचेतना ने प्रतिभाशाली जरी श्रमिकों के लिए एक पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किया था.

अनुश्री बताती हैं, “हम अपनी क्षमता के अनुसार खाद्यान्न, कपड़े, और तिरपाल (अम्फान आपदा के दौरान) से उनकी मदद कर रहे हैं. इसके बाद, हमने कई स्वयं सहायता समूह बनाए हैं और उनकी आजीविका चलाने के लिए आवश्यक संसाधन भी प्रदान किए हैं, जैसे कि सिलाई मशीन, कपड़े, ट्रेनर, सूक्ष्म वित्तपोषण सहित तकनीकें, ताकि वे बुनियादी सिलाई प्रक्रिया सीख सकें और वस्त्र सिलकर उन्हें बाजार में बेच सकें.

अभी ये वस्त्र स्थानीय बाजार (जिसे मंगलाहाट कहा जाता है) में बेचे जा रहे हैं, फिर इनके वॉलमार्ट में बेचे जाने की योजना है. हमने उनके लिए निशुल्क प्रशिक्षण की व्यवस्था की है, जो लगभग 6 महीने तक चली. अब हम इन स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के लिए सूक्ष्म वित्तपोषण कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि सुचेतना का एकमात्र उद्देश्य इन गरीब कारीगरों को आत्मानिर्भर बनाना है, ताकि निकट भविष्य में वे वॉलमार्ट में भी अपने उत्पाद बेच सकें. अनुश्री न केवल जरी के कारीगरों को संसाधन प्रदान कर रही है, बल्कि उन्हें मंच भी प्रदान करने के लिए भी प्रयास कर रही है, जहां वे अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर सकते हैं.