‘ लेखिकाएं इश्क-माशूक तक सीमित नहीं, उर्दू के जुल्फ भी संवार रही हैं ’

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 01-12-2021
‘ लेखिकाएं इश्क-माशूक तक  सीमित नहीं, उर्दू के जुल्फ भी संवार रही हैं ’
‘ लेखिकाएं इश्क-माशूक तक सीमित नहीं, उर्दू के जुल्फ भी संवार रही हैं ’

 

रख्शंदा/ नई दिल्ली

“उर्दू अदब को इज्जत बख्शने में लेखिकाएं बहुत बड़ा काम कर रहीं हैं. इन सभी को बहुत मुबारकबाद देती हूँ.उर्दू एक जबान नहीं, मुकम्मल तहजीब है. इनका कलम केवल इश्क माशूक तक महदूद नहीं बल्कि यह नसर के मैदान में भी उर्दू के गेसू संवारने का काम कर रही हैं. ये बड़ी खुुशी का मौका है. यह कहना है साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता सय्यदा सय्यदैन  हमीद एवं कामना प्रसाद काअवसर था दिल्ली के  इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के कांफ्रेंस हाल नंबर दो में पांच पुस्तकों के विमोचन का.

दिलचस्प बात यह है ये पुस्तकें उर्दू-हिंदी की दिल्ली वासी सुप्रसिद्ध लेखिकाओं की हैं. इन किताबों में शामिल थी. शमा अफरोज जैदी बीसवीं सदी रिसाले की संपादक की पुस्तक “जिन्हें मैंने देखा जिन्हें मैंने जाना “,

नइमा जाफरी पाशा की दो पुस्तकें “कुछ दिल ने कहा “ एवं “यादें और बातें “,अजरा नकवी की पुस्तक “शेर किताबें यादें” रख्शंदा  रूही मेहदी की पुस्तक “मॉनसून स्टोर”  का विमोचन किया गया. रख्शंदा आवाज द वाॅयस की स्तंभकार भी हैं.


इस मौके पर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता  सय्यदा सय्यदैन हमीद एवं जश्न ए बाहर की रूह ए रवां कामना प्रसाद के हाथों इन पुस्तकों के विमोचन की प्रक्रिया संपन्न हुई.कामना प्रसाद ने कहा-“उर्दू अदब को इज्जत बख्शने  में  लेखिकाएं बहुत बड़ा काम कर रहीं हैं.  मैं इन सभी को बहुत मुबारकबाद देती हूँ.

उर्दू एक जबान नहीं, मुकम्मल तहजीब है. इनका कलम केवल इश्क मासूम तक महदूद नहीं बल्कि यह नसर  के मैदान में भी उर्दू के गेसू संवारने का काम कर रही हैं. ये बड़ी खुुशी का मौका है कि आज 4 लेखिकाओं की पांच किताबें  मंजर ए  आम पर आ रही हैं.”
 
हमीद ने कहा,“ मैं हैरान हूँ कितनी खामोशी से इन लेखिकाओं ने कोरोना काल जैसे भयानक वक्त  को भी इतने खूबसूरत तरीके से इस्तेमाल किया है. उर्दू अदब को अपने
कलम के अनमोल तोहफे पेश किए हैं.”

प्रोफेसर अख्तर उल वासे ने कहा -“हम मर्दों पर इल्जाम था कि हम औरतों को घर की चारदीवारी से बाहर नहीं आने देते हैं, लेकिन आज ये बात गलत साबित हुई है. लेखिकाओं ने अपने वजूद को मनवा लिया है. “
डॉक्टर खालिद अलवी के विचार में- “आज पांच पुस्तकें  मुख्तलिफ विषयों पर हैं और चारों लेखिकाओं ने अपने अपने फन पर बेहतरीन काम किया है.“

खुुर्शीद हयात बिलासपुर से इसी प्रोग्राम के लिए दिल्ली आए थे.उन्होंने कहा-“यह ऐतिहासिक कार्यक्रम जहां केवल महिलाएं ही मुख्य अतिथि हैं और लेखक भी हैं. प्रोफेसर  खालिद महमूद के शब्दों में -“नइमा जाफरी पाशा की दोनों पुस्तकें आज के दौर की बेहतरीन रचनाएँ हैं.

सोहेल अंजुम एवं हक्कानी ने शमा अफरोज की पुस्तक “जिन्हें मैंने देखा है जिन्हें मैं मैंने जाना “ पर अपने विचार व्यक्त करते  हुए कहा कि खाकों और मजामीन का एक गुलदस्ता है यह पुस्तक.डॉक्टर शहरयार ने रख्शंदा  रूही मेह्दी की कहानियों की पुस्तक “मॉनसून स्टोर्स” में सभी कहानियों को  औरत की सूझ-बूझ व खुले जेहन की सोच बताया और अपनी स्त्री के जीवन संघर्ष की कहानियों की संज्ञा दी.

देवबंद के प्रसिद्ध पत्रकार व कलमकर कमल देवबंदी ने  रूढ़िवादी समाज में आए परिवर्तन को सभी लेखिकाओंकी तहरीरों का नतीजा बताया. सभागार में कलमकार, पत्रकार व रंगकर्मी काफी संख्या में उपस्थित थे.राजेश अमरोही,सविता शर्मा नागर , जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी की उप कुलपति प्रोफेसर तसनीम फातिमा. गजाला कमर, आसिफ आजमीके अतिरिक्त बहुत से नामचीन फनकारों की मौजूदगी ने इस कार्यक्रम को सफल बनाया.