राजनीति और एक जैसी पहचान का निर्माण विषय पर वेबिनार

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-12-2025
Webinar on the topic
Webinar on the topic "Politics and the Construction of a Shared Identity"

 

नई दिल्ली

इंडियन हिस्ट्री फोरम (IHF) ने बीते दिन “भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व, राजनीति और एक जैसी पहचान का निर्माण” विषय पर एक महत्वपूर्ण वेबिनार आयोजित किया। कार्यक्रम में आलिया यूनिवर्सिटी, कोलकाता के असिस्टेंट प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. इश्तियाक हुसैन ने अपने विचारोत्तेजक और शोध-आधारित व्याख्यान प्रस्तुत किए। सेशन का उद्देश्य था—पहचान के निर्माण, ऐतिहासिक आख्यानों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की जटिलताओं को नए सिरे से समझना।

“भारतीय मुस्लिम” कोई एकरूप पहचान नहीं—डॉ. हुसैन

डॉ. हुसैन ने यह धारणा चुनौती दी कि “भारतीय मुसलमान” एक समान, एकरूप पहचान रखते हैं। उन्होंने बताया कि यह विचार औपनिवेशिक शासन द्वारा गढ़ी गई सोच का परिणाम है, जिसने क्षेत्र, भाषा, जाति, वर्ग और धर्मशास्त्र के आधार पर विविध मुस्लिम समुदाय को एक ढांचे में समेट दिया।
उन्होंने आरंभिक अरब व्यापारियों, तुर्की और मध्य एशियाई शासन, तथा दक्षिण एशिया में मुस्लिम उपस्थिति के विविध रूपों का विश्लेषण करते हुए कहा कि पूर्व-आधुनिक काल में पहचानें धार्मिक एकरूपता से अधिक सांस्कृतिक और भौगोलिक तत्वों पर आधारित थीं

सल्तनत और मुग़ल शासन को “इस्लामी शासन” कहना गलत

उन्होंने स्पष्ट किया कि दिल्ली सल्तनत और मुग़ल शासन को सीधे “इस्लामी शासन” की श्रेणी में रखना ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत है। विद्वानों के अनुसार, मध्यकालीन भारत सह-अस्तित्व, संवाद और साझा सांस्कृतिक जीवन का परिचायक था।

औपनिवेशिक राज्य द्वारा पहचान का राजनीतिक निर्माण

चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि ब्रिटिश शासन ने समाज को धार्मिक आधार पर संगठित किया, जिससे सामुदायिक पहचानें कठोर होती चली गईंबंटवारे के बाद शिक्षित मुस्लिम वर्ग के बड़े हिस्से के पलायन से नेतृत्व का जो खालीपन पैदा हुआ, उसे धार्मिक नेतृत्व ने भरना शुरू किया—जिससे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों की जगह सांस्कृतिक बहसों ने अहमियत ले ली।

मुस्लिम राजनीतिक विचारधारा कभी एकरूप नहीं रही

उन्होंने अलीगढ़, देवबंद और अन्य विचारधारात्मक परंपराओं का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय मुसलमानों के भीतर “कई आवाज़ें” मौजूद हैं—महिलाएं, दलित मुसलमान, क्षेत्रीय समूह, सुधारवादी बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट—जो समुदाय की वास्तविक बहुलता को सामने लाती हैं।

सवाल-जवाब सत्र: जेंडर से लेकर आज की राजनीति तक

सवाल-जवाब में उन्होंने जेंडर न्याय, राजनीतिक सहभागिता, शिक्षा और समकालीन आख्यानों पर बात की। उन्होंने महिलाओं के नेतृत्व वाले संगठनों, लोकतांत्रिक संस्थाओं से संवाद और सामाजिक-आर्थिक उन्नति पर आधारित नेतृत्व की आवश्यकता पर जोर दिया।मुसलमानों को “हमलावर” बताने वाली धारणाओं को उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों से परे प्रचार-नैरेटिव बताया और कहा कि भारत पर आक्रमण करने वाले अधिकांश लोग तुर्क, मध्य एशियाई या अरब थे—भारतीय मुसलमान नहीं\

एकरूप पहचान समाज-विरोधी—डॉ. हुसैन

उन्होंने निष्कर्ष देते हुए कहा कि एक जैसी पहचान थोपने वाले ढांचे बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक समाज के खिलाफ हैं। यह न तो इतिहास के अनुकूल है, न ही क़ुरआन की विविधता-समर्थक व्याख्याओं के।उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व के अभाव में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाओं को केवल प्रवक्ता की तरह देखा जाने लगा है।

कार्यक्रम की शुरुआत

वेबिनार की शुरुआत IHF की रिसर्च असिस्टेंट एवं कोऑर्डिनेटर हुमैरा अफ़रीन के स्वागत संबोधन से हुई। उन्होंने फोरम और वक्ता का परिचय कराया तथा ज्ञानपूर्ण और समावेशी संवाद की IHF की प्रतिबद्धता को दोहराया।
अंत में, डॉ. हुसैन ने भी उपस्थित प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।