2025 रहा ‘टैरिफ़-इड’ साल, 2026 अर्थव्यवस्था के लिए संक्रमण का वर्ष बन सकता है

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-12-2025
2025 was a 'tariff-ridden' year, and 2026 could be a year of transition for the economy.
2025 was a 'tariff-ridden' year, and 2026 could be a year of transition for the economy.

 

नई दिल्ली।

वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिहाज़ से साल 2025 को एक “टैरिफ़-इड” (टैरिफ़ से घिरा) वर्ष के रूप में याद किया जाएगा, जबकि 2026 एक अहम संक्रमणकाल के तौर पर उभर सकता है। यह आकलन HSBC Asset Management की ताज़ा रिपोर्ट में किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में दुनिया ने उच्च शुल्क (टैरिफ़) की ओर निर्णायक मोड़ देखा, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं। भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के चलते देशों को एक नए व्यापारिक माहौल के अनुसार खुद को ढालना पड़ा। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2026 पहला ऐसा पूरा साल हो सकता है, जब देश भारी टैरिफ़ वाले वैश्विक तंत्र की वास्तविकताओं से सीधे जूझते नज़र आएंगे। फिलहाल, दुनिया में औसत प्रभावी टैरिफ़ दर करीब 14 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।

HSBC के अनुसार, इस नए टैरिफ़-प्रधान वातावरण में वैश्विक विकास और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में “भूकंपीय बदलाव” देखने को मिल सकते हैं। 2026 वह साल हो सकता है, जब ऊंचे टैरिफ़ का असर निवेश, आर्थिक वृद्धि, महंगाई, ब्याज दरों और मुद्राओं पर साफ़ तौर पर दिखाई देने लगेगा। रिपोर्ट ने यह भी आगाह किया कि द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की बढ़ती संख्या और प्रत्येक देश के अमेरिका के साथ अलग-अलग संबंध, वैश्विक व्यापार परिदृश्य को और जटिल बना देंगे।

भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में रिपोर्ट ने बताया कि 2025 की दूसरी छमाही अपेक्षाकृत नकारात्मक रही। भारत के लिए आए “नकारात्मक टैरिफ़ सरप्राइज़” के बाद स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो गई। शुरुआत में इसका असर अस्थायी माना गया था, लेकिन पूरे साल इसके दुष्प्रभाव कई व्यापक आर्थिक संकेतकों पर दिखने लगे। इनमें रुपये की कमजोरी, व्यापार और भुगतान संतुलन (बैलेंस ऑफ पेमेंट्स) पर दबाव तथा भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के लिए तरलता प्रबंधन की चुनौतियां शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, 1 जुलाई के बाद से भारतीय रुपया लगभग 4.2 प्रतिशत कमजोर हुआ, जिससे वह उभरते बाजारों की मुद्राओं में सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वालों में शामिल हो गया। इसके बावजूद, HSBC का मानना है कि घरेलू आर्थिक बुनियाद मजबूत बनी हुई है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक संभावित “स्वर्णिम दौर” की ओर इशारा करती है।

हालांकि, रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि बाज़ारों की निगाहें अब भी बाहरी मोर्चे पर टिकी हैं। खास तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ किसी “अच्छे” व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। यह इंतज़ार लंबा और अधिक अनिश्चित होता जा रहा है।

कुल मिलाकर, रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि जैसे-जैसे दुनिया 2026 की ओर बढ़ेगी, वैश्विक और बाहरी घटनाक्रम भारत सहित कई अर्थव्यवस्थाओं की दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।