काठमांडू
नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों और वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि तेज़ आर्थिक विकास के दौर से गुजर रहे दक्षिण एशिया के लिए पर्यावरणीय परिवर्तन के अर्थशास्त्र को समझना और उसके अनुरूप नीतिगत ढांचे तैयार करना सतत भविष्य की कुंजी है।
सम्मेलन में यह बात प्रमुखता से रखी गई कि दक्षिण एशिया, विशेषकर हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति दुनिया के सबसे संवेदनशील इलाकों में गिना जाता है। ऐसे में जैव विविधता संरक्षण, वन पुनर्स्थापन, जलवायु अनुकूलन, कृषि क्षेत्र की मजबूती और टिकाऊ आजीविका को लेकर गंभीर विमर्श आवश्यक है।
कृषि क्षेत्र में केवल ऋण नहीं, राजस्व स्थिरता है वास्तविक समाधान: नेपाल राष्ट्र बैंक
नेपाल राष्ट्र बैंक (NRB) के गवर्नर बिस्वनाथ पौडेल ने अपने मुख्य भाषण में कहा कि कृषि क्षेत्र की समस्याओं का हल केवल बैंक ऋण बढ़ाने में नहीं है।उन्होंने चेताया कि यदि फसल के दाम स्थिर नहीं होंगे तो ऋण किसानों के लिए सहायता से अधिक बोझ बन जाते हैं।
पौडेल ने कहा,“वित्तपोषण समाधान नहीं है; कृषि में राजस्व स्थिरता ही असली समाधान है। कीमतों में स्थिरता के बिना ऋण किसानों को राहत नहीं दे सकता।”उन्होंने बदलते जलवायु जोखिमों के बीच किसानों के लिए कृषि बीमा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और कहा कि कृषि क्षेत्र को दीर्घकालिक रूप से संभालने के लिए व्यवस्थित मूल्य-नीति अनिवार्य है
‘विकास, पर्यावरण और पर्वत’ पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
काठमांडू में आयोजित यह सम्मेलन दक्षिण एशियाई विकास एवं पर्यावरण अर्थशास्त्र नेटवर्क (SANDEE) की 25वीं वर्षगांठ का हिस्सा था।सम्मेलन का आयोजन इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) द्वारा किया गया, जो आठ हिमालयी देशों का प्रतिनिधित्व करने वाला क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है।
ICIMOD के महानिदेशक पेमा ग्यामत्शो ने कहा कि SANDEE ने पिछले ढाई दशकों में दक्षिण एशिया में गरीबी, विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के आपसी संबंधों को समझने और उन पर नीति-आधारित प्रतिक्रिया तैयार करने की प्रक्रिया को नई दिशा दी है।उन्होंने कहा कि बदलती जलवायु चुनौतियों के बीच दक्षिण एशिया को विकास मॉडल में पर्यावरणीय संवेदनशीलता को प्राथमिकता देनी ही होगी।