The court asked the MP to file a petition in the High Court seeking an SIT probe into the irregularities.
नयी दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को दमन और दीव के सांसद की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें मोती दमन स्थित केंद्र शासित प्रदेश सचिवालय भवन के नवीनीकरण, विध्वंस और जीर्णोद्धार में लगभग 33 करोड़ रुपये की कथित वित्तीय अनियमितताओं की अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच का अनुरोध किया गया था।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने सांसद उमेशभाई बाबूभाई पटेल से कहा कि वह अपनी याचिका मुंबई उच्च न्यायालय में दायर करें।
सुनवाई के दौरान पटेल के वकील ने दलील दी कि सांसद के खिलाफ 52 प्राथमिकी दर्ज हैं और वह लोकपाल द्वारा पारित एक आदेश को भी चुनौती दे रहे हैं।
वकील ने दलील दी कि सांसद के खिलाफ कई मामले केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन में भ्रष्टाचार और वित्तीय कुप्रबंधन के खिलाफ आवाज उठाने का परिणाम हैं।
वकील ने सांसद की ओर से कहा कहा, ‘‘मैं एक सांसद हूं। मेरे ख़िलाफ़ 52 प्राथमिकियां दर्ज हैं। मैं यहां लोकपाल के आदेश को भी चुनौती दे रहा हूं। इन सबका एक ही कारण है। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि मैंने आवाज उठाई।’’
प्रधान न्यायाधीश ने प्रश्न किया, ‘‘क्या एक सांसद और एक आम नागरिक के लिए कानून भिन्न हो सकते हैं?’’
जब वकील ने तर्क दिया कि पटेल जनता की ओर से काम करने वाले एक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं, तो प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा, ‘‘ठीक है। आप संबंधित उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं।’’
इसके बाद पीठ ने पटेल को बंबई उच्च न्यायालय जाने का निर्देश दिया और उम्मीद जताई कि मामले पर शीघ्र सुनवाई की जाएगी, संभवत: इसे दायर करने के एक दिन बाद ही।
याचिका में मोती दमन स्थित सचिवालय परियोजना में कथित अनियमितताओं की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी। इसमें दावा किया गया था कि नवीनीकरण और जीर्णोद्धार कार्य की आड़ में 33 करोड़ रुपये की धनराशि का दुरुपयोग किया गया।