न्यायालय ने पूछा: दवा कंपनियों के अनैतिक तौर-तरीकों पर मौजूदा नियमों को सही से लागू किया गया ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-09-2025
The court asked: Are existing regulations properly enforced to curb unethical practices of pharmaceutical companies?
The court asked: Are existing regulations properly enforced to curb unethical practices of pharmaceutical companies?

 

नई दिल्ली

उच्चतम न्यायालय ने दवा कंपनियों द्वारा अपनाए जा रहे कथित अनैतिक विपणन तौर-तरीकों पर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि क्या मौजूदा मानदंडों का सही ढंग से पालन और क्रियान्वयन किया जा रहा है। न्यायालय ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें दवा कंपनियों के विपणन व्यवहार को लेकर एक समान और बाध्यकारी संहिता लागू करने की मांग की गई है।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि समस्या केवल नियमों के अभाव की नहीं है, बल्कि जो नियम पहले से मौजूद हैं, उनका प्रभावी क्रियान्वयन न होना ही असल कठिनाई है।

“व्यवस्था तो है, पर क्या पालन होता है?”

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका में की गई मांग अब अप्रासंगिक हो चुकी है क्योंकि पहले से ही वैधानिक ढांचा मौजूद है और इस विषय पर एक नई संहिता 2024 में लागू की जा चुकी है। इस पर न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, “समस्या यह है कि व्यवस्था तो है, लेकिन यह निश्चित नहीं कि उसका पालन भी हो रहा है।”

न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने भी टिप्पणी की कि अगर यह व्यवस्था सिर्फ एक "दंतहीन बाघ" बनकर रह जाए, तो उसका कोई उद्देश्य नहीं रह जाता। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल ने जवाब में कहा कि यह एक ऐसा बाघ है, "जिसके हाथ में सारी शक्तियां हैं" और यह जरूरी है कि उसके प्रभाव को ठीक से समझाया जाए, जिसके लिए उन्हें कुछ और समय चाहिए।

यूनिफ़ॉर्म कोड फॉर फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस (UCPMP) 2024

सरकार ने पिछले वर्ष फार्मा कंपनियों के विपणन तौर-तरीकों को विनियमित करने के लिए UCPMP 2024 लागू किया था। यह संहिता दवा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच होने वाले लेन-देन, उपहार, प्रायोजन, यात्रा और मौद्रिक लाभ जैसे मुद्दों पर नियंत्रण लगाने के लिए बनाई गई थी। लेकिन याचिकाकर्ता और याचिका का समर्थन कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल का कहना है कि इस संहिता को दवा कंपनियों पर लागू करने में प्रभावशीलता की कमी है।

कोर्ट में दायर याचिका का उद्देश्य

यह याचिका फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने दाखिल की थी। इसमें यह मांग की गई थी कि जब तक कोई प्रभावी कानून नहीं बनाया जाता, तब तक उच्चतम न्यायालय खुद दवा कंपनियों के अनैतिक प्रचार और विपणन व्यवहार पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करे। या फिर पहले से मौजूद संहिता को बाध्यकारी और लागू करने योग्य बनाया जाए।

डॉक्टरों के लिए नियम, लेकिन कंपनियों पर ढील?

याचिका में यह तर्क दिया गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) के पेशेवर आचरण नियम, 2002 के तहत डॉक्टरों को दवा कंपनियों से उपहार, मौद्रिक लाभ, यात्रा या आतिथ्य स्वीकार करने की अनुमति नहीं है। इन नियमों का उल्लंघन करने पर डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द किए जा सकते हैं

हालांकि, याचिका में यह भी कहा गया कि यह संहिता सिर्फ डॉक्टरों पर लागू होती है, जबकि जिन दवा कंपनियों की ओर से इस तरह के अनुचित लाभ दिए जाते हैं, उन्हें कोई दंड नहीं मिलता। इससे एक असमान स्थिति पैदा होती है, जहां केवल डॉक्टरों पर कार्रवाई होती है, जबकि कंपनियां खुद इस कदाचार को बढ़ावा देती हैं, पर उनके खिलाफ कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं होती।

अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि उन्हें इस मुद्दे पर पूरी जानकारी रखने और जवाब देने के लिए कुछ और समय दिया जाए, क्योंकि इस पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है। अदालत ने उनकी बात स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर 2025 को निर्धारित की है।