Student suicides: Continuous loss of lives of youth reflects systemic failure: Supreme Court
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि आत्महत्याओं के कारण युवाओं की लगातार जान जाना ‘व्यवस्थागत विफलता’ को दर्शाता है और इस मुद्दे को ‘अनदेखा नहीं किया जा सकता.
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस मुद्दे से निपटने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर कई दिशानिर्देश पारित किए और कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा 2022 में ‘भारत में आकस्मिक मौतें और आत्महत्याएं’ शीर्षक से प्रकाशित आंकड़े ‘बेहद चिंताजनक तस्वीर’ पेश करते हैं.
पीठ ने कहा, ‘‘युवाओं की लगातार जा रही जान, जो अक्सर अनदेखे मनोवैज्ञानिक संकट, शैक्षिक बोझ, सामाजिक कलंक और संस्थागत असंवेदनशीलता जैसे रोके जा सकने वाले कारणों से होती है, एक प्रणालीगत विफलता को दर्शाती है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.’’
भारत में 2022 में आत्महत्या के 1,70,924 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 7.6 प्रतिशत, यानी लगभग 13,044, विद्यार्थियों द्वारा की गई आत्महत्याएं थीं.
पीठ ने कहा कि उल्लेखनीय रूप से इनमें से 2,248 मौतें सीधे तौर पर परीक्षाओं में असफलता के कारण हुईं.
एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पिछले दो दशकों में विद्यार्थियों में आत्महत्या की संख्या बढ़ी है. वर्ष 2001 में 5,425 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की लेकिन यह आंकड़ा 2022 में बढ़कर 13,044 हो गया.
पीठ ने कहा, ‘‘स्कूलों, कोचिंग संस्थानों, कॉलेजों और प्रशिक्षण केंद्रों सहित शैक्षिक संस्थानों में आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए, हम देश भर के शैक्षिक संस्थानों में छात्रों को प्रभावित कर रहे मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीरता को स्वीकार करने और उसका समाधान करने के लिए बाध्य महसूस करते हैं.’
पीठ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें विशाखापत्तनम में राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी कर रहे 17 वर्षीय अभ्यर्थी की अप्राकृतिक मौत की जांच सीबीआई को सौंपने की याचिका खारिज कर दी गई थी.