SC seeks West Bengal govt's response on plea by poor tribal community alleging encroachment of ancestral crematorium
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वी मेदिनीपुर के खास तौर पर कमजोर आदिवासी ग्रुप (PVTG) से जुड़े गरीब आदिवासी निवासियों के एक ग्रुप की तरफ से फाइल की गई एक पिटीशन पर पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया है। इन लोगों ने एक प्राइवेट कंपनी पर उनके सदियों पुराने श्मशान घाट पर कब्ज़ा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।
एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड डॉ. अलख आलोक श्रीवास्तव ने पिटीशन पर बहस करते हुए आदिवासी समुदाय के पारंपरिक श्मशान घाट की तुरंत सुरक्षा की मांग की है। इसमें कहा गया है कि इस ज़मीन का इस्तेमाल पुराने समय से अंतिम संस्कार के लिए किया जाता रहा है और यह उनके लिए गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने स्पेशल लीव पिटीशन तारक बाग और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य की सुनवाई करते हुए फाइल करने में हुई देरी को माफ कर दिया और राज्य से चार हफ़्ते में जवाब मांगा। कोर्ट ने 17 जुलाई, 2025 के कलकत्ता हाई कोर्ट के विवादित आदेश के असर और लागू होने पर भी रोक लगा दी, जिसमें पिटीशनर्स को राहत देने से मना कर दिया गया था।
बेंच ने निर्देश दिया कि सभी बिना रिप्रेजेंटेशन वाले रेस्पोंडेंट्स को नोटिस जारी किए जाएं और यह रिकॉर्ड किया कि प्राइवेट कंपनी के वकील कैविएट पर पेश हुए और उन्होंने नोटिस स्वीकार कर लिया। राज्य सरकार को अपने स्टैंडिंग काउंसिल के ज़रिए नोटिस देने की छूट दी गई है।
आदिवासी पिटीशनर्स की ओर से पेश डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि कथित गैर-कानूनी कब्ज़े की वजह से कम्युनिटी को अपने वजूद का खतरा है और श्मशान घाट इस्तेमाल करने के उनके अधिकार से इनकार करना सीधे तौर पर उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिसमें जीवन, सम्मान और सांस्कृतिक बचाव का अधिकार शामिल है। अब पश्चिम बंगाल सरकार और प्राइवेट कंपनी के काउंटर-एफिडेविट फाइल करने के बाद इस मामले पर सुनवाई होगी।