बागपत (उत्तर प्रदेश)
जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों में राज्यपाल और देश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभा चुके सत्यपाल मलिक के निधन की खबर मंगलवार सुबह जैसे ही बागपत जिले के उनके पैतृक गांव हिसावदा पहुँची, पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई।
गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था। मलिक की 300 साल पुरानी हवेली के आंगन में अजीब सी खामोशी थी। ग्रामीणों की आंखों में आंसू थे और चेहरों पर गहरी उदासी। हर कोई यही कहता नजर आया— “हमने एक जननेता खो दिया, जो अपने गांव और लोगों से हमेशा जुड़ा रहा।”
79 वर्षीय सत्यपाल मलिक का मंगलवार को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे और अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे।
बचपन की यादें और गांव से जुड़ाव
मलिक की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। रिश्ते के भतीजे अमित मलिक ने बताया कि वे साइकिल से पास के ढिकौली गांव स्थित एमजीएम इंटर कॉलेज जाया करते थे। फिर मेरठ कॉलेज से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
परिवार के एक अन्य सदस्य मनीष मलिक ने बताया,“वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे, बेहद भावुक और परिवार के प्रति समर्पित। इतने ऊंचे पदों पर रहने के बावजूद उन्होंने कभी भी गांव वालों से मिलने में संकोच नहीं किया।”
ग्रामीणों की आंखों में मलिक की छवि
गांव के बुजुर्ग वीरेंद्र सिंह मलिक ने कहा,
“वो हमें भाई से बढ़कर मानते थे। जब भी गांव आते, सबसे मिलने जरूर आते थे। उनके स्वभाव में विनम्रता और आत्मीयता थी।”उन्होंने यह भी बताया कि सत्यपाल मलिक को बचपन में वॉलीबॉल खेलने का बहुत शौक था और वो बेहद शर्मीले स्वभाव के थे।
बुजुर्ग बिजेंद्र सिंह ने कहा,“उनकी सादगी, स्पष्टवादिता और सभी वर्गों से सहज संवाद उनकी पहचान थी। वो एक ऐसे नेता थे, जो सत्ता में होते हुए भी आम लोगों की आवाज बने रहे।”
गांव से कभी नहीं तोड़ा नाता
उनके रिश्ते के भाई ज्ञानेंद्र मलिक ने याद करते हुए बताया कि फरवरी 2023 में जब मलिक राज्यपाल पद से सेवानिवृत्त होकर गांव आए थे, तो एक विशेष चौपाल का आयोजन किया गया था।
उसमें मलिक ने कहा था,
“किसानों और मजदूरों की आवाज हमेशा बुलंद की है और करता रहूंगा।”उन्होंने गांव की गलियों में घूमकर पुराने साथियों से मुलाकात की थी और बचपन की स्मृतियां साझा की थीं।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत और विरासत
सत्यपाल मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1972 में बागपत विधानसभा सीट से की थी, जहां वह लोकदल के उम्मीदवार के रूप में जीतकर विधायक बने।इसके बाद वह राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य भी रहे। साथ ही उन्हें जम्मू-कश्मीर, गोवा, बिहार, मेघालय और ओडिशा जैसे राज्यों में राज्यपाल नियुक्त किया गया।
बागपत नगर में भी शोक
बागपत नगर में भी शोक का माहौल रहा। लोग नगर पालिका परिसर में उनके साथ ली गई तस्वीरों को साझा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते नजर आए।पूर्व एमएलसी जगत सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता देवेन्द्र आर्य समेत कई स्थानीय नेता व आम नागरिक इस खबर से बेहद व्यथित दिखे।
“एक युग का अंत”
ग्रामीणों का कहना है कि सत्यपाल मलिक जैसे नेता विरले होते हैं— जो सत्ता में रहकर भी जनता की बात करते हैं और अपनी मिट्टी, अपने गांव से कभी दूर नहीं होते।उनका जाना सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग का अंत है।