सैयद अकबरुद्दीन
सैयद अकबरुद्दीन एक प्रतिष्ठित भारतीय राजनयिक और 1985 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी हैं, जिन्होंने चार दशकों तक भारत की विदेश नीति को प्रभावशाली ढंग से आकार देने में योगदान दिया. वे जनवरी 2016 से अप्रैल 2020 तक न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे, जहाँ उन्होंने वैश्विक कूटनीति में भारत की भूमिका को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया. आतंकवाद विरोधी प्रयासों में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा—मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकी घोषित कराने में उनकी प्रमुख भूमिका थी. उन्होंने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को मज़बूती दी, जैसे कि 'गांधी सोलर पार्क' की स्थापना.
अकबरुद्दीन इससे पहले भारत के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता (2012–2015) रहे, जहाँ उनके स्पष्ट, संतुलित और प्रभावशाली संवाद कौशल की व्यापक सराहना हुई. वियना में IAEA में भारत के प्रतिनिधि के रूप में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे पश्चिम एशिया मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं और काहिरा, रियाद व जेद्दा में महत्वपूर्ण दूतावास पदों पर कार्य कर चुके हैं. वर्तमान में वे कौटिल्य स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में डीन हैं. उनका करियर उत्कृष्टता, राष्ट्रहित और वैश्विक प्रभावशीलता का प्रेरणादायक उदाहरण है.
डॉ. एस. वाई. क़ुरैशी
भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और प्रशासनिक सेवा के दिग्गज, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को सशक्त और पारदर्शी स्वरूप देने में अहम भूमिका निभाई. वे 1971 बैच के हरियाणा कैडर के IAS अधिकारी हैं और 30 जुलाई 2010 से 10 जून 2012 तक भारत के 17वें मुख्य चुनाव आयुक्त रहे. वे इस पद पर पहुंचने वाले भारत के पहले मुस्लिम अधिकारी थे.
डॉ. क़ुरैशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक और संचार व सामाजिक विपणन में पीएचडी की है. उन्होंने युवा मामलों एवं खेल मंत्रालय के सचिव और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) के महानिदेशक के रूप में भी सेवा दी. उनके नेतृत्व में चलाया गया "Universities Talk AIDS" अभियान भारत का सबसे बड़ा एचआईवी/एड्स जागरूकता कार्यक्रम था.
वे अनेक पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें ‘An Undocumented Wonder: The Making of the Great Indian Election’, ‘The Population Myth’ और ‘Old Delhi – Living Traditions’ प्रमुख हैं. उन्होंने ‘The Great March of Democracy’ का संपादन भी किया है. उनकी पुस्तकें लोकतंत्र, जनसंख्या और सामाजिक मुद्दों पर फैले भ्रमों को दूर करने में सहायक हैं.
डॉ. क़ुरैशी 2012 से 2021 तक अंतर्राष्ट्रीय IDEA बोर्ड के सदस्य रहे और दिल्ली विश्वविद्यालय के क्लस्टर इनोवेशन सेंटर में मानद प्रोफेसर के रूप में शिक्षण और मार्गदर्शन भी करते हैं. 2011 और 2012 में वे 'इंडियन एक्सप्रेस' की 100 सबसे प्रभावशाली भारतीयों की सूची में शामिल रहे.
नजीब जंग
नजीब जंग एक प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी, शिक्षाविद् और नीति विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने प्रशासन, ऊर्जा और शिक्षा के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया है. 18 जनवरी 1951 को दिल्ली में जन्मे जंग ने सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री ली तथा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से 'विकासशील देशों में सामाजिक नीति और नियोजन' में एम.एससी किया.
वे 1973 बैच के IAS अधिकारी हैं और मध्य प्रदेश कैडर से जुड़े रहे. प्रशासनिक सेवा में रहते हुए उन्होंने इस्पात मंत्रालय, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय, और RBI सहित कई अहम पदों पर कार्य किया. 1999 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ऊर्जा विशेषज्ञ के रूप में काम किया, जिसमें एशियाई विकास बैंक और ऑक्सफोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी स्टडीज़ शामिल हैं.
2009 से 2013 तक वे जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति रहे और इसके बाद 2013 से 2016 तक दिल्ली के उपराज्यपाल के पद पर रहे. उन्होंने शिक्षा सुधार, सामाजिक न्याय और ऊर्जा नीति पर कई रिपोर्टें लिखीं और राष्ट्रीय अखबारों में सक्रिय लेखन किया. इस्तीफे के बाद वे पुनः शिक्षा क्षेत्र से जुड़ गए. नजीब जंग आज भी एक विचारशील, संवेदनशील और नीतिगत दृष्टि से समर्पित जनसेवक माने जाते हैं.
जावेद उस्मानी
जावेद उस्मानी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के 1978 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के एक अत्यंत सम्मानित और दूरदर्शी अधिकारी रहे हैं. अपने चार दशकों से अधिक के प्रशासनिक जीवन में उन्होंने न केवल राज्य बल्कि केंद्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उल्लेखनीय योगदान दिया है. उनकी पहचान एक ईमानदार, कुशल और सिद्धांतनिष्ठ नौकरशाह के रूप में होती है, जिनका दृष्टिकोण नीतिगत सुधारों और जनहित के कार्यों पर केंद्रित रहा है.
हावर्ड विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उस्मानी ने भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय, योजना आयोग और विश्व बैंक जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में सेवाएं दीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने विकास नीति और प्रशासन के क्षेत्र में गहरी समझ विकसित की. उत्तर प्रदेश में वे मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव, राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष और अंततः मुख्य सचिव जैसे शीर्ष पदों पर कार्यरत रहे. वर्ष 2012 में अखिलेश यादव सरकार ने उन्हें राज्य का मुख्य सचिव नियुक्त किया.
उनके कार्यकाल के दौरान ई-गवर्नेंस, पारदर्शिता और योजनाओं की प्रभावी निगरानी को नई दिशा मिली. सेवानिवृत्ति के बाद भी वे नीतिगत विमर्श और लेखन के माध्यम से सार्वजनिक जीवन से जुड़े रहे हैं. जावेद उस्मानी आज भी प्रशासनिक उत्कृष्टता और सच्चाई की मिसाल माने जाते हैं.
डॉ. सैयद ज़फ़र महमूद
डॉ. सैयद ज़फ़र महमूद (जन्म: 8 जून 1951, बहराबैच, उत्तर प्रदेश) एक प्रतिष्ठित पूर्व भारतीय सिविल सेवा अधिकारी, सामाजिक सुधारक और दूरदर्शी संस्थापक हैं, जिन्होंने प्रशासनिक सेवा से लेकर सामाजिक न्याय तक अनेक क्षेत्रों में अनुकरणीय योगदान दिया है. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से भौतिकी में बी.एससी (ऑनर्स), राजनीति विज्ञान में एम.ए. (गोल्ड मेडलिस्ट) और लोक प्रशासन में पीएच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं.
वे भारत सरकार द्वारा गठित ऐतिहासिक सच्चर समिति में Officer on Special Duty के रूप में कार्यरत रहे, जिसने देश में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक स्थिति पर महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत की. आयकर विभाग, संयुक्त वक्फ बोर्ड और भारत इस्लामिक कल्चरल सेंटर जैसे संस्थानों में भी वे प्रभावशाली भूमिकाओं में रहे.
ज़कात फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया (ZFI) की स्थापना 1997 में कर उन्होंने अनाथों, विधवाओं और वंचित वर्गों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और पुनर्वास के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए. Interfaith Coalition for Peace और God’s Grace Group of Educational Institutions जैसे मंचों के माध्यम से उन्होंने धर्मों के बीच संवाद और शिक्षा-सशक्तिकरण को नया आयाम दिया.
डॉ. महमूद ने हार्वर्ड, लंदन और अन्य वैश्विक मंचों पर भारत में समावेशिता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की प्रभावशाली पैरवी की है. वे सामाजिक परिवर्तन के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं.
सलमान हैदर
सलमान हैदर एक वरिष्ठ और प्रतिष्ठित पूर्व भारतीय राजनयिक हैं, जिन्होंने अपने लंबे और प्रभावशाली करियर के दौरान भारत की विदेश नीति को वैश्विक मंचों पर मजबूती से प्रस्तुत किया. वे 1 मार्च 1995 से 30 जून 1997 तक भारत के विदेश सचिव के पद पर आसीन रहे, जो भारतीय कूटनीति की सर्वोच्च प्रशासनिक जिम्मेदारी है. इसके पश्चात, जनवरी से जुलाई 1998 तक उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में भारत के उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया.
अपनी राजनयिक सेवा के दौरान वे भारत के राजदूत के रूप में चीन में भी कार्यरत रहे और संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि (1977–1980) के रूप में न्यूयॉर्क में सेवाएं दीं. विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली में उन्होंने सेक्रेटरी ईस्ट, प्रवक्ता, तथा मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी जैसे अहम पदों को सुशोभित किया.
उनकी शिक्षा शेरवुड कॉलेज, नैनीताल, सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली, और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से हुई. उनका विवाह कुसुम हैदर से हुआ है, जो एक प्रसिद्ध रंगमंच कलाकार और फिल्म अभिनेत्री हैं. उनकी बेटी नवीना नजत हैदर, न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट में वरिष्ठ क्यूरेटर हैं, और बेटा नदीम हैदर एक शिक्षाविद् हैं. सलमान हैदर न केवल भारत के विदेश संबंधों के कुशल रणनीतिकार रहे हैं, बल्कि उन्होंने भारतीय राजनय को गरिमा, विवेक और वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान किया.
डॉ. औसाफ सईद
डॉ. औसाफ सईद, 1989 बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS) के वरिष्ठ अधिकारी, तीन दशकों से अधिक के अपने राजनयिक करियर में भारतीय विदेश नीति और सांस्कृतिक कूटनीति को सशक्त रूप से दिशा देने वाले व्यक्तित्व हैं. विदेश मंत्रालय में सचिव (कांसुलर, पासपोर्ट, वीजा एवं प्रवासी भारतीय मामले) के रूप में उन्होंने नीतिगत स्तर पर कई ऐतिहासिक पहल कीं. सऊदी अरब, यमन और सेशेल्स जैसे महत्वपूर्ण देशों में भारत के राजदूत रहते हुए उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.
विशेष रूप से, सऊदी अरब में उनके कार्यकाल के दौरान 2019 में ‘स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप काउंसिल’ की स्थापना हुई, जिससे भारत-सऊदी रणनीतिक सहयोग को नई दिशा मिली. योग को सऊदी अरब में आधिकारिक मान्यता दिलवाना उनके सांस्कृतिक दृष्टिकोण की अनूठी उपलब्धि रही. उन्होंने इंडो-सऊदी बिजनेस नेटवर्क, मेडिकल फोरम और फ्रेंडशिप सोसाइटी जैसे मंचों की स्थापना कर प्रवासी भारतीयों को एकजुट किया. कोविड-19 के दौरान प्रवासियों की सुरक्षित वापसी में उनकी अहम भूमिका रही.
डॉ. सईद एक प्रखर लेखक, उर्दू साहित्य प्रेमी और सांस्कृतिक विचारक भी हैं. उन्होंने अपने पिता 'आवाज़ सईद' की साहित्यिक धरोहर को भी सहेजा. उनकी सेवाएं भारत की विदेश नीति और सांस्कृतिक सoft ताकत की पहचान हैं.
तलमीज़ अहमद
तलमीज़ अहमद, 1974 बैच के भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी, पश्चिम एशिया के मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं. अपने चार दशकों के कूटनीतिक करियर में उन्होंने भारत की विदेश नीति को निर्णायक दिशा दी. कुवैत, इराक और यमन में आरंभिक नियुक्तियों के बाद वे जेद्दा में महावाणिज्यदूत (1987-90) रहे. इसके अतिरिक्त न्यूयॉर्क, लंदन और प्रिटोरिया में भी उन्होंने भारतीय मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उन्होंने सऊदी अरब में दो बार (2000–03 और 2010–11), ओमान (2003–04) और संयुक्त अरब अमीरात (2007–10) में भारत के राजदूत के रूप में कार्य कर भारत-खाड़ी संबंधों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. विदेश मंत्रालय में खाड़ी और हज प्रभाग के प्रमुख (1998–2000), पेट्रोलियम मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव (2004–06) और ICWA के महानिदेशक (2006–07) के रूप में उन्होंने रणनीतिक संवाद को नई दिशा दी. उनके योगदान के लिए सऊदी सरकार ने 2011 में उन्हें प्रतिष्ठित 'किंग अब्दुल अज़ीज़ मेडल प्रथम श्रेणी' से सम्मानित किया.
सेवानिवृत्ति के बाद वे शिक्षाविद बन गए और वर्तमान में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, पुणे में ‘राम साठे चेयर’ पर कार्यरत हैं. उनकी चार प्रसिद्ध पुस्तकें और मीडिया लेखनी उन्हें समकालीन पश्चिम एशिया के अग्रणी विश्लेषक के रूप में प्रतिष्ठित करती हैं.
आमिर सुबहानी
आमिर सुबहानी, 1987 बैच के सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी, बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था के एक प्रतिष्ठित स्तंभ माने जाते हैं. यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 1987 में उन्होंने अखिल भारतीय रैंक 1 हासिल कर न केवल देश भर में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, बल्कि इतिहास रचते हुए बिहार कैडर में शामिल हुए. अपने करियर की शुरुआत सब डिविजनल ऑफिसर के रूप में करने के बाद, उन्होंने भोजपुर और पटना के जिलाधिकारी, गृह विभाग के सचिव और बिहार राज्य दुग्ध संघ के अध्यक्ष जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. 1 जनवरी 2022 को वे बिहार के मुख्य सचिव बने, और इस पद तक पहुंचने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के पहले अधिकारी बने.
वर्तमान में वे बिहार विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष हैं. सीवान के बहुआरा गांव से आने वाले सुबहानी ने सरकारी स्कूलों से शिक्षा प्राप्त कर बचपन में ही आईएएस बनने का संकल्प लिया था. दुर्भाग्यवश, कुछ वर्ष पूर्व एक दुर्घटना में उनकी पहली पत्नी डॉ. सादिका यासमीन का निधन हो गया. समय के साथ जीवन में संतुलन लाते हुए उन्होंने हाल ही में दूसरी शादी की, जिसमें उनके बच्चों और परिवार का पूर्ण समर्थन मिला. उनकी नई जीवनसंगिनी के बारे में जानकारी फिलहाल निजी रखी गई है, किंतु यह नया अध्याय उनके जीवन में पुनः सुकून और स्थिरता का प्रतीक बन गया है.
वजाहत हबीबुल्लाह
वजाहत हबीबुल्लाह भारत के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त और 1968 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी हैं. उन्होंने भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय, वस्त्र मंत्रालय और उपभोक्ता मामले विभाग में सचिव के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1991-93 के दौरान वे कश्मीर संभाग के संभागीय आयुक्त रहे, जहाँ आतंकवाद के उग्र दौर में उन्होंने साहसिक नेतृत्व दिखाया.
सेंट स्टीफंस कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक और परास्नातक की उपाधि प्राप्त हबीबुल्लाह ने विश्व बैंक संस्थान से इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस में सर्टिफिकेट कोर्स भी किया. वे जम्मू-कश्मीर राज्यपाल से विशिष्ट सेवा के लिए स्वर्ण पदक (1996) और धर्मनिरपेक्षता में उत्कृष्टता के लिए राजीव गांधी पुरस्कार (1994) से सम्मानित हैं.
उनके प्रशासनिक दृष्टिकोण में ईमानदारी, पारदर्शिता और सामाजिक समरसता की झलक मिलती है. जुलाई 2010 में उन्हें विश्व बैंक के सूचना अपील बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया. वजाहत हबीबुल्लाह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी रहे और सामाजिक न्याय, कश्मीर संघर्ष एवं गवर्नेंस पर गहन लेखन करते रहे. उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘कश्मीर 1947’, ‘घेराबंदी: हज़रतबल, कश्मीर 1993’ और ‘मेरा कश्मीर-संघर्ष’ शामिल हैं, जो क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति को समझने में मील का पत्थर मानी जाती हैं.