पति से संबंध बनाने से इनकार और विवाहेत्तर संबंधों का संदेह तलाक का आधार: बॉम्बे हाईकोर्ट

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-07-2025
Refusal to have sexual relations with husband and suspicion of extramarital affair are grounds for divorce: Bombay High Court
Refusal to have sexual relations with husband and suspicion of extramarital affair are grounds for divorce: Bombay High Court

 

मुंबई

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने पारिवारिक अदालत के तलाक संबंधी आदेश को चुनौती दी थी। अदालत ने स्पष्ट कहा कि पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना और उस पर विवाहेत्तर संबंधों का संदेह जताना पति के साथ "क्रूरता" की श्रेणी में आता है और यह तलाक के लिए पर्याप्त आधार है।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने गुरुवार को दिए गए अपने निर्णय में कहा कि महिला का आचरण पति के लिए मानसिक पीड़ा का कारण बना, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

यह मामला एक दंपति से जुड़ा है जिनकी शादी वर्ष 2013 में हुई थी, लेकिन मात्र एक वर्ष बाद, दिसंबर 2014 से वे अलग रहने लगे। 2015 में पति ने पुणे की पारिवारिक अदालत में पत्नी की कथित क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था।

महिला ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में गुज़ारा भत्ते के तौर पर एक लाख रुपये प्रति माह की मांग करते हुए दावा किया कि वह अपने पति से अब भी प्रेम करती है और तलाक नहीं चाहती। उसने अपने ससुरालवालों पर प्रताड़ना का आरोप भी लगाया।

हालाँकि, पति ने अदालत के समक्ष यह कहा कि उसकी पत्नी ने न सिर्फ़ उससे शारीरिक संबंध बनाने से इनकार किया, बल्कि लगातार उस पर विवाहेत्तर संबंधों का संदेह करती रही। साथ ही, वह अपने दोस्तों, कर्मचारियों और परिवार के सामने उसे नीचा दिखाती थी, जिससे उसे मानसिक तौर पर काफी पीड़ा होती थी।

पति ने यह भी बताया कि उसकी पत्नी ने उसे तब छोड़ दिया जब वह मायके चली गई और फिर कभी लौटकर नहीं आई।

हाईकोर्ट ने कहा, “पत्नी का कर्मचारियों और दोस्तों के सामने पति को अपमानित करना क्रूरता है। साथ ही, पति की दिव्यांग बहन के प्रति उसका उदासीन रवैया भी पीड़ा देने वाला है।”

इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि दंपति के रिश्ते में अब कोई सुधार की गुंजाइश नहीं है। इसलिए महिला की याचिका खारिज करते हुए पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को बरकरार रखा गया।