प्रो. मुचकुंद दुबे का निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-07-2024
Prof. Muchkund Dubey's death is an irreparable loss for the country: Jamaat-e-Islami Hind
Prof. Muchkund Dubey's death is an irreparable loss for the country: Jamaat-e-Islami Hind

 

नई दिल्ली

 जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने वरिष्ठ राजनयिक और भारत के पूर्व विदेश सचिव प्रोफेसर मुचकुंद दुबे के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है.अपने शोक संदेश में उन्होंने कहा, "प्रो. मुचकुंद दुबे सिर्फ एक असाधारण राजनयिक ही नहीं थे.

उन्होंने भारतीय समाज में न्याय, मानवीय गरिमा, शांति और सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करने के प्रबल समर्थक और योद्धा थे. साथ ही एक प्रतिष्ठित विद्वान, लेखक, स्तंभकार और शांति-कार्यकर्ता भी थे.

 उनके विचारों की स्पष्टता, दृढ़ प्रतिबद्धता, साहस, ज्ञान की गहराई और संतुलित दृष्टिकोण ने मुझे सदैव प्रेरित किया है. फ़ारसी और संस्कृत सहित विभिन्न भाषाओं पर उनकी पकड़ थी. उन्होंने विकासात्मक अर्थशास्त्र और शिक्षा के अधिकार के माध्यम से शिक्षा प्रणाली में सुधार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. अपने अंतिम दिनों में वह समाज में नफरत और विभाजन पर आधारित, मूल्यहीन और अवसरवादी राजनीति से बहुत चिंतित थे."

देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में प्रोफेसर दुबे के योगदान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा, "प्रोफेसर मुचकुंद दुबे ने 1992-93 में बाबरी मस्जिद विध्वंस से उत्पन्न सांप्रदायिक दंगों के तुरंत बाद जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के नेताओं सहित देश के चिंतित नागरिकों के साथ मिलकर लोकतंत्र और सांप्रदायिक सौहार्द मंच (एफडीसीए) की स्थापना और उसे मजबूत करने के लिए गंभीर प्रयास किए.

एफडीसीए की अध्यक्षता शुरू में दिवंगत न्यायमूर्ति वी.एम. तारकुंडे ने की थी. बाद में प्रोफेसर मुचकुंद दुबे ने इसका नेतृत्व किया. प्रो. दुबे ने अटूट समर्थन दिया और एफडीसीए की गतिविधियों में गहरी रुचि बनाए रखी, जिसमें सांप्रदायिकता और फासीवाद के खिलाफ जन जागरूकता बढ़ाना, संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देना, एक लोकतांत्रिक संस्कृति, सहिष्णुता और नागरिकों के बीच सह-अस्तित्व शामिल था.
 

उन्होंने सांप्रदायिक तनाव और अन्य संकटों के दौरान अल्पसंख्यकों और कमजोर समुदायों, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ी. ऐसे महत्वपूर्ण समय में जब साहसी व्यक्तित्वों की आवश्यकता है, उनका निधन एक बहुत बड़ी और अपूरणीय क्षति है."