मणिपुर में हिंसा से उजड़े धान के खेत, दो साल से खेती ठप

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 12-08-2025
Paddy fields destroyed due to violence in Manipur, farming stopped for two years
Paddy fields destroyed due to violence in Manipur, farming stopped for two years

 

चुराचांदपुर (मणिपुर)

मणिपुर की घाटी और पहाड़ियों के बीच फैले बंजर धान के खेत उस जातीय हिंसा के गहरे घावों के मूक गवाह हैं, जो 3 मई 2023 को भड़की थी।

एक समय यह ज़मीन कुकी और मैतेई किसानों की साझी मेहनत से लहलहाती थी, जहां वे साथ-साथ धान की खेती करते थे। लेकिन अब इन खेतों पर सन्नाटा है। हिंसा के बाद बनाई गई मीलों लंबी ‘बफर ज़ोन’ ने उपजाऊ ज़मीन को ‘नो-मैन्स लैंड’ में बदल दिया है, जहां लगातार सुरक्षा खतरों के कारण कोई कदम नहीं रख सकता।

चिंगफेई गांव के किसान नगुलसांग की स्थिति भी इन्हीं में से है। पिछले दो साल से वह अपने खेतों में लौट नहीं पाए हैं। जीविका का एकमात्र स्रोत छिन जाने से उनका जीवन संकट में है। नगुलसांग कहते हैं, “गांव के ज़्यादातर लोग खाने और कमाई के लिए खेती पर निर्भर थे, लेकिन लगातार झगड़ों ने जिंदगी को मुश्किल बना दिया है। हमारी आमदनी का मुख्य ज़रिया, कृषि, बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अब पूरी ज़मीन की खेती संभव नहीं, और व्यक्तिगत रूप से मेरी कमाई बेहद घट गई है। गुज़ारा करना कठिन हो गया है।”

मणिपुर में धान की खेती सिर्फ़ एक कृषि कार्य नहीं, बल्कि जीवनशैली है। राज्य का मुख्य आहार होने के कारण, करीब 2.3 लाख किसान लगभग 1.95 लाख हेक्टेयर में धान उगाते हैं। इनमें अधिकांश छोटे किसान हैं, जिनकी ज़मीन ही उनके परिवार और समुदाय का सहारा है। मगर जातीय हिंसा ने इस कृषि चक्र को तोड़ दिया है। खेती की उत्पादकता बुरी तरह गिरने से राज्य को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है।

सबसे प्रभावित इलाके वे हैं जो कांगपोकपी को इम्फाल पूर्व और पश्चिम से, तथा चुराचांदपुर को बिष्णुपुर से जोड़ते हैं। ये इलाके पहले उपजाऊ धान के खेतों से भरे रहते थे, लेकिन अब डर, विस्थापन और बढ़ती दरारों ने इन्हें बंजर बना दिया है।

चुराचांदपुर के जिला कृषि अधिकारी लल्टिनमांग डुंगेल बताते हैं, “चुराचांदपुर ज़िला एक बड़े क्षेत्र में फैला है और यह बिष्णुपुर और काकचिंग से सटा है। कांगवई ब्लॉक, सामुलमलान और संगाइकोट इसके प्रमुख हिस्से हैं। यहां अधिकांश धान के खेत हैं, लेकिन अब बड़ी ज़मीन खाली पड़ी है, जो किसानों के लिए चुनौती है।”

इन बंजर खेतों में हिंसा की निरर्थकता साफ़ दिखाई देती है। खेत उजड़ने का मतलब सिर्फ़ फसल का खोना नहीं है — यह भोजन, आजीविका और शांति की नाजुक उम्मीद का भी अंत है। मणिपुर के धान किसानों के लिए ज़मीन सिर्फ़ मिट्टी नहीं, बल्कि जीवन, पहचान और सम्मान है। जितनी देर यह खाली पड़ेगी, विभाजन उतना ही गहरा होता जाएगा।

पुनर्निर्माण संघर्ष से नहीं, बल्कि संवाद, सुरक्षा और सहारे से संभव है। तभी किसान अपने खेतों में लौट पाएंगे और अपनी फसल और भविष्य वापस पा सकेंगे।