कांवड़ यात्रा: एक ओर धार्मिक उत्सव, दूसरी ओर कचरे का संकट

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 26-07-2025
Over 7,000 metric tonnes waste dumped in Haridwar during Kanwar Yatra
Over 7,000 metric tonnes waste dumped in Haridwar during Kanwar Yatra

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
 
भगवान शिव के भक्तों की वार्षिक कांवड़ यात्रा, जो हर साल श्रावण माह (जुलाई-अगस्त) में होती है, अब समाप्त हो चुकी है। इस यात्रा के दौरान, लाखों तीर्थयात्री गंगा नदी से पवित्र जल एकत्र करके इसे अपने गृहनगरों के शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं। इस वर्ष, हरिद्वार में कांवड़ यात्रा के दौरान 4.5 करोड़ कांवड़ियों का भारी जमावड़ा देखने को मिला। हालांकि, इस धार्मिक यात्रा का महत्व तो है, लेकिन इसके साथ समाज और पर्यावरण से जुड़ी कई गंभीर समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही हैं।

रिपोर्टों के अनुसार, इस बार हरिद्वार में 15 दिनों में 7,000 मीट्रिक टन से अधिक कचरा जमा हुआ है। यह कचरा सिर्फ प्लास्टिक और ठोस वस्तुओं तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उसमें मल-मूत्र भी शामिल था। इसके कारण, स्थानीय निवासियों और पर्यावरणविदों में गहरी चिंता देखी जा रही है। कई इलाकों में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि स्थानीय लोग अपने घरों से बाहर तक नहीं निकल पा रहे हैं। यह कचरे का ढेर न केवल शहर की साफ-सफाई को प्रभावित कर रहा है, बल्कि वहां की जीवनशैली और स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डाल रहा है।

इस स्थिति को देखते हुए, हरिद्वार नगर निगम ने लगभग 1,000 सफाई कर्मचारियों को तैनात किया और ड्रोन निगरानी का भी सहारा लिया। इसके बावजूद, पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष अधिक कचरा जमा हुआ। अधिकारियों का अनुमान है कि इस 15 दिन के मेले के दौरान उत्पन्न कचरा लगभग 30,000 से 35,000 मीट्रिक टन तक हो सकता है।

यह एक गंभीर सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दा बन चुका है, जिसमें कचरे का सही प्रबंधन न केवल नगर निगम की जिम्मेदारी है, बल्कि कांवड़ यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों की भी सहभागिता आवश्यक है। इस समस्या का हल खोजना समाज और पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसे आयोजन भी सही तरीके से आयोजित किए जा सकें, और इसके दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।