Omar Abdullah सरकार का एक वर्ष : जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की वापसी, संवैधानिक अधिकार बाकी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 16-10-2025
One year of Omar Abdullah government: Democracy returns to Jammu and Kashmir, constitutional rights remain
One year of Omar Abdullah government: Democracy returns to Jammu and Kashmir, constitutional rights remain

 

 

 

आवाज द वाॅयस/ श्रीनगर

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह ने गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025 को अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया . हालांकि, उनकी सरकार के सबसे महत्वपूर्ण चुनावी वादे – राज्य का पुनर्स्थापन – को लेकर अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस को भारी बहुमत मिला था और उसके बाद ओमर अब्दुल्लाह ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. उनकी पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान 'मर्यादा, पहचान और विकास' के नारे के साथ स्वायत्तता और विशेष दर्जे की बहाली को मुख्य मुद्दा बनाया था.

घोषणापत्र में वादा किया गया था कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा वर्ष 2000 में पारित स्वायत्तता प्रस्ताव को पूरी तरह लागू किया जाएगा और अनुच्छेद 370 व 35A की पूर्व स्थिति बहाल कर जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया जाएगा. इसके अलावा, पार्टी ने यह भी कहा था कि वह अगस्त 2019 के बाद लागू किए गए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 और अन्य नियमों को निरस्त या संशोधित करने का प्रयास करेगी.

मगर सरकार के पहले वर्ष में इन वादों पर अमल बहुत सीमित रहा है. हालांकि, कैबिनेट की पहली बैठक में राज्यपुनर्स्थापन की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया था और विधानसभा में भी केंद्र से विशेष दर्जे की बहाली के लिए संवैधानिक समाधान तलाशने की अपील की गई थी, लेकिन इन प्रयासों से कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है.

सरकार को न केवल विपक्ष से, बल्कि खुद पार्टी के भीतर से भी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी के वरिष्ठ सांसद और श्रीनगर से लोकसभा सदस्य रूहुल्लाह मेहदी ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि राजनीतिक मोर्चे पर सरकार विफल रही है.

उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी मंशा स्पष्ट रूप से दिखानी चाहिए थी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है. वहीं, सरकार का तर्क है कि उसकी शक्तियाँ सीमित हैं और केंद्र और उपराज्यपाल के बीच शक्ति के बँटवारे के कारण कई बाधाएं आ रही हैं.

इसके बावजूद, राज्य सरकार ने कुछ जनकल्याणकारी कदम उठाए हैं. इनमें गरीब कन्याओं के लिए विवाह सहायता राशि को ₹50,000 से बढ़ाकर ₹75,000 करना, महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा शुरू करना, स्मार्ट इंटर-डिस्ट्रिक्ट बस सेवा, अकादमिक सत्र को अक्टूबर-नवंबर में वापस लाना, जमीन हस्तांतरण में स्टांप शुल्क में छूट और कमजोर वर्गों को मुफ्त राशन जैसी योजनाएँ शामिल हैं.

इन योजनाओं से आम लोगों को राहत मिली है, लेकिन राज्यपुनर्स्थापन के मुद्दे पर सरकार की निष्क्रियता उसकी लोकप्रियता पर असर डाल रही है.पिछले एक वर्ष में जम्मू-कश्मीर को कई बड़ी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है.

22 अप्रैल को पाहलगाम में हुए आतंकी हमले ने घाटी में पर्यटकों के आगमन पर गहरा असर डाला. मई में भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा पर हुई झड़पों के चलते खासकर सीमावर्ती इलाकों के लोगों को भारी नुकसान झेलना पड़ा। इन घटनाओं ने क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया.

इसके बाद मानसून में भारी बारिश और बाढ़ ने हालात और बिगाड़ दिए, जिससे सरकार के पर्यटन पुनरुद्धार अभियान को झटका लगा.इसके अलावा, सरकार को एक और विवाद का सामना करना पड़ा है.

वह है आरक्षण नीति में बदलाव। वर्तमान नीति के तहत सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मात्र 30 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, जिससे छात्रों में व्यापक असंतोष है. दिसंबर 2024 में छात्र प्रदर्शनों के बाद सरकार ने एक कैबिनेट उप-समिति गठित की थी, जिसने चार महीने पहले रिपोर्ट सौंप दी, लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्लाह ने कई बार कहा है कि उनकी सरकार राज्यपुनर्स्थापन के लिए प्रतिबद्ध है और यह मुद्दा खत्म नहीं हुआ है. उन्होंने केंद्र सरकार को स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया है कि 'हाइब्रिड मॉडल' स्वीकार्य नहीं है और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा चाहिए।.

उन्होंने संकेत भी दिया है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो उनकी पार्टी कानूनी लड़ाई के लिए भी तैयार है. हालांकि, उन्होंने साथ ही यह भी कहा है कि वे राज्यपुनर्स्थापन के लिए सड़कों पर उतरने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि ऐसा करने से सुरक्षा बलों के साथ टकराव की आशंका बढ़ सकती है.

संक्षेप में, ओमर अब्दुल्लाह सरकार ने जनकल्याण की दिशा में कुछ सकारात्मक कदम जरूर उठाए हैं, लेकिन उसके मुख्य वादे – राज्यपुनर्स्थापन और विशेष दर्जे की बहाली – पर अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हो पाई है. जनता और पार्टी के भीतर का दबाव बढ़ रहा है, और अब यह देखना होगा कि आने वाले समय में सरकार इन संवेदनशील और अहम मुद्दों पर क्या ठोस कदम उठाती है.