डॉ. सिद्दीक़ अहमद मेव : जिन्होंने बदला मेवात का इतिहास, समाज और सोच

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 08-12-2025
Pen, Deeds and Duty: Dr. Siddique Ahmed Meo
Pen, Deeds and Duty: Dr. Siddique Ahmed Meo

 

भावों से निकलकर साहित्य, इतिहास और समाजसेवा के शिखर तक पहुँचने वाले डॉ. सिद्दीक़ अहमद मेव मेवात की पहचान, चेतना और संघर्ष का जीवंत प्रतीक हैं। आवाज द वॉयस की सहयोगी डॉ. फ़िरदोस खान ने हरियाणा से द चेंजमेकर सीरीज के लिए सिद्दीक अहमद मेव पर यह विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है।

डॉ. सिद्दीक़ अहमद मेव हरियाणा के जाने-माने लेखक और समाजसेवक हैं। अगर ये कहें कि वे एक व्यक्तित्व ही नहीं, बल्कि एक संस्थान हैं तो ग़लत नहीं होगा।
 
वे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन के बूते फ़र्श से अर्श तक का सफ़र तय किया है। उनकी राह में अनेक मुश्किलें आईं, लेकिन वे हौसले के साथ निरन्तर आगे बढ़ते रहे। 
 
सिद्दीक़ अहमद मेव का जन्म 10 अप्रैल, 1961 को हरियाणा के नूह ज़िले के एक छोटे से गांव बनारसी में हुआ था।
 
उनके पिता अब्दुल अज़ीज़ एक मध्यम दर्जे के पढ़े-लिखे किसान थे। उनकी माँ सुब्हानी घरेलू महिला थीं।
 
उनके व्यक्तित्व पर उनके वालिदैन का गहरा असर है।
आज वे जिस मुक़ाम पर हैं, उसका सारा श्रेय वे अपने वालिदैन को देते हैं।
 
वे बताते हैं- “मेरा बचपन काफ़ी अभावों में बीता, क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मगर पिताजी के शिक्षा के प्रति लगाव ने मुझे इस मुक़ाम तक पहुंचाया।
 
मेरी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई। मैं पढ़ाई में अच्छा था, इसलिए पांचवीं कक्षा में मुझे छात्रवृत्ति मिल गई।
 
फिर आठवीं कक्षा में भी मुझे छात्रवृत्ति मिली। मैंने पांचवीं के बाद गांव से दो मील दूर बाजीदपुर हाई स्कूल में दाख़िला ले लिया। मैं पैदल चलकर ही स्कूल जाता था।
 
नौवीं कक्षा तक यहीं पढ़ाई की। दसवीं में गांव से 26 किलोमीटर दूर नूह के चौधरी मुहम्मद यासीन ख़ां हाई स्कूल में दाख़िला लिया। यहां से दसवीं करने के बाद नूह के यासीन मेव डिग्री कॉलेज में दाख़िला ले लिया।
 
इसके बाद नई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से 1982 में डिप्लोमा इन सिविल एंड रूरल इंजीनियरिंग किया। इसके बाद 1986 में जूनियर इंजीनियर के तौर पर सरकारी नौकरी ज्वाइन की। नौकरी में रहते हुए साल 2010 में जोधपुर की जेआरएन यूनिवर्सिटी से बीटेक की। मैं 2019 में असिस्टेंट सब डिवीज़नल इंजीनियरिंग के पद से सेवानिवृत्त हुआ।“
 
ज़िन्दगी बसर करने के लिए नौकरी ज़रूरी थी, इसलिए अपने दायित्व को पूरी निष्ठा से पूर्ण किया। इसके साथ-साथ लेखन भी चलता रहा। वे बताते हैं- “मुझे बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक़ था। विशेष रूप से ऐतिहासिक किताबें पढ़ने में ज़्यादा दिलचस्पी थी।
 
सरकारी सेवा में आया, तो मेव क़ौम और मेवात के बारे में अनेक तरह की भ्रांतियों के बारे में सुना, जैसे मेव कमज़ोर थे और औरंगज़ेब ने उन्हें जबरन मुसलमान बनाया था। मुझे सच्चाई का पता था, क्योंकि हसन ख़ां मेवाती खानवा के युद्ध में बाबर से लड़ा था। मैंने अपने मन में यह तय किया कि इन भ्रांतियों को दूर करना होगा, मगर कैसे?
 
जवाब एक ही था कि मेवात का सम्पूर्ण इतिहास लिखा जाए। मगर मैं तो विज्ञान का छात्र रहा हूं, तो यह कैसे मुमकिन होगा? बहुत सोच-विचार के बाद मैंने निश्चय किया कि पहले इतिहास पढ़ूंगा और फिर लिखूंगा। साल 1988-89 से मैंने इतिहास पढ़ना शुरू किया। भारत का प्राचीन व मध्यकालीन इतिहास, जाट इतिहास, राजपूताना इतिहास और मेवात के इतिहास पर सैकड़ों किताबें पढ़ीं। पढ़ाई का यह सिलसिला 1996 तक चलता रहा।
 
मेवात के इतिहास पर मेरा पहला लेख 1991 में हरियाणा के सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग की पत्रिका 'हरियाणा संवाद' में प्रकाशित हुआ। इसके बाद कई और लेख प्रकाशित हुए। साल 1997 में मेरी पहली किताब 'मेवात एक खोज’ प्रकाशित हुई। फिर 1999 में मेरी दूसरी किताब 'मेवाती संस्कृति’ प्रकाशित हुई।
 
उसके बाद तो किताबों के प्रकाशन का सिलसिला शुरू हो गया और 2025 तक मेवात के इतिहास, संस्कृति और लोक साहित्य पर मेरी 12 किताबें प्रकाशित हो गईं। मेरे तीन कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं, जबकि दो कविता संग्रह प्रकाशनाधीन हैं। इसके अलावा 10 सांझा काव्य संग्रहों में मेरी लगभग 200 कविताएं प्रकाशित हुई हैं।“
 
प्रकाशित पुस्तकें 
 
डॉ. सिद्दीक़ अहमद मेव की प्रकाशित पुस्तकों में मेवात एक खोज (1997), मेवाती संस्कृति (1999), संग्राम 1857- मेवातियों का योगदान (2007), ज़रा याद करें क़ुर्बानी (2007), अमर शहीद राजा हसन ख़ां मेवाती (2010), महान स्वतंत्रता सेनानी चौधरी अब्दुल हई (2011), मेवाती लोक साहित्य में दोहा परम्परा (2011), गुल-ए- शहीदां और भरमारू (2012), विश्व सभ्यता को इस्लाम की देन (2016), भारत-पाकिस्तान विभाजन और मेवात (2022), पन्डून का कड़ा (2025), शहीद राजा हसन ख़ां की कथा-कविता (2022), रब का घर (कविता संग्रह-2025), मेवात महिमा (कविता संग्रह-2025) और चाँदनी में भीगी रात (कविता संग्रह-2025) शामिल हैं। 
 
सम्मान 
 
उत्कृष्ट लेखन और जनसेवा के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें चिराग़-ए-मेवात (1996), ज़िला प्रशासन गुड़गांव का अवार्ड (1997), हरियाणा साहित्य अकादमी का प्रथम पुस्तक पुरस्कार (1999-2000), हरियाणा दलित साहित्य अकादमी का हरियाणा गौरव पुरस्कार (2004), महाकवि साप्ताहिक अवार्ड (2005), राजस्थान साहित्य एवं भाषा अकादमी का सरस्वती सम्मान (2006), ज़िला प्रशासन नूह का अवार्ड (2008), हरियाणा ग्रन्थ अकादमी का दीनदयाल उपाध्याय ग्रन्थ सम्मान (2016), मेवात रत्न अवार्ड (2018) और ग्लोबल प्राइड अवार्ड (2018) शामिल हैं। इसके अलावा ग्लोबल ह्यूमन पीस यूनिवर्सिटी ने उन्हें साहित्य के लिए डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया है।
 
जनसेवा 
 
डॉ. सिद्दीक़ अहमद मेव समाज सेवा से भी जुड़े हुए हैं। वे बताते हैं- “सरकारी नौकरी के दौरान ही मैं समाज सेवा से जुड़ गया था। मैंने 1991 और 1996 में मेवात में साक्षरता अभियान चलाया और पहली बार मेव मुस्लिम लड़कियों का स्कूलों में दाख़िला करवाया। जन सम्पर्क के माध्यम से घर-घर जाकर लोगों को समझाया कि वे अपने बच्चों ख़ासकर लड़कियों को शिक्षा दिलाएं।
 
शुरुआत में इस काम में बहुत परेशानियां आईं। लोग शिक्षा के महत्व को समझते ही नहीं थे। वे सोचते थे कि लड़कियों को पढ़ाने से कोई फ़ायदा नहीं है, क्योंकि उन्हें ससुराल में जाकर घर का काम-काज ही करना है, लेकिन कुछ लोग आगे आए। फिर उनकी देखादेखी लोग अपनी बेटियों को स्कूल भेजने लगे।  
 
साल 1996 में मेवात एजुकेशनल एंड सोशल ऑर्गेनाइज़ेशन बनाया और मेवात को अलग ज़िला बनाने की मांग उठाई। साल 2000 में इस ऑर्गेनाइज़ेशन का मेवात विकास सभा में विलय हो गया। उस समय हमने नारा दिया था- “रेल, ज़िला और पानी दो, हक़ हमें इंसानी दो।“ हमने इस पर योजनाबद्ध तरीक़े से काम शुरू किया। अप्रैल, 2005 में मेवात को अलग ज़िला बना दिया। उसके बाद असल संघर्ष शुरू हुआ।
 
सरकार ने कहा कि जवाहर नवोदय विद्यालय, गुड़गांव के नाम से आया है, इसलिए इसे मेवात से हटाकर गुड़गांव में स्थापित किया जाएगा। हमने विरोध किया और नवोदय विद्यालय को गांव बाई में स्थापित करवाया। उसके बाद मेडिकल कॉलेज के लिए 43 दिन तक धरना-प्रदर्शन किया। तब कहीं जाकर 'शहीद हसन ख़ां मेवाती मेडिकल कॉलेज, गांव नल्हड़ में स्थापित हुआ।
 
साल 2012-13 में रेल लाइन की भी घोषणा हो गई और साल 2017 में मेवात कैनाल का शिलान्यास भी हो गया। ये दोनों परियोजनाएं अभी शुरू नहीं हुई हैं। इनके लिए संघर्ष जारी है।
 
इसके अलावा किसान आन्दोलन, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के आन्दोलन और बूचड़ख़ानों के आन्दोलनों में मेवात विकास सभा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साल 2001 से मैं मेवात विकास सभा का संरक्षक हूं। हम जनजागृति, महिला शिक्षा व मेवात के संवैधानिक अधिकारों आदि पर काम कर रहे हैं और शासन-प्रशासन के समक्ष मेवात क्षेत्र की आवाज़ उठाते रहते हैं। हमने साल 1999 में हमने क्रिकेट का ‘मेवात कप’ शुरू किया था।“
 
वे एक अच्छे खिलाड़ी और चित्रकार भी हैं। अपनी ज़िन्दगी के मक़सद के बारे में उनका कहना है-  
 
मेरी ज़िन्दगी यही कि हर एक को फ़ैज़ पहुंचे,
मैं चराग़-ए-रहगुज़र हूं, कोई शौक़ से जलाए