नई दिल्ली. राष्ट्रीय पिछड़ी जाति आयोग ने राज्य में पूरे मुस्लिम समुदाय को ओबीसी श्रेणी के तहत वर्गीकृत करने के कर्नाटक सरकार के फैसले की आलोचना की है और कहा है कि इससे ओबीसी समुदाय के साथ ‘अन्याय’ हो रहा है.
एनसीबीसी के अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि राज्य में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया हैः श्रेणी प्रथम, श्रेणी प्रथम (बी), श्रेणी द्वितीय (बी), श्रेणी तृतीय (ए) और श्रेणी तृतीय (बी).
विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘कर्नाटक सरकार के पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग ने एनसीबीसी को सूचित किया है कि मुस्लिम और ईसाई जैसे समुदाय न तो जाति हैं और न ही धर्म. कर्नाटक में 12.92 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है. कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक माना जाता है.’’
एनसीबीसी अध्यक्ष ने आगे कहा कि राज्य में मुस्लिम समुदाय की कुल 36 जातियों को ओबीसी की दो श्रेणियों के तहत आरक्षण मिल रहा है, लेकिन इसके बावजूद राज्य में मुसलमानों को अलग से 4 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है.
‘‘जहां एक ओर राज्य में सभी मुसलमानों को ओबीसी मानते हुए श्रेणी द्वितीय-बी के तहत 4 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, वहीं दूसरी ओर, मुसलमानों को श्रेणी प्रथम और श्रेणी द्वितीय (ए) के तहत भी आरक्षण दिया जा रहा है. साथ ही, मुसलमानों को राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी के लिए आरक्षित 32 प्रतिशत सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए भी स्वतंत्र हैं.’
‘‘कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या 12.92 प्रतिशत है. राज्य के सभी मुसलमानों को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिल रहा है. यह आश्चर्य की बात है कि 30 मार्च 2002 को कांग्रेस सरकार द्वारा अधिसूचना जारी की गई थी, जिसके बाद उन्हें आरक्षण प्रदान किया गया.’’
एनसीबीसी के अध्यक्ष ने एएनआई को बताया कि इस आरक्षण का आधार क्या है, इस बारे में स्पष्टीकरण मांगने के बावजूद, उन्हें कर्नाटक सरकार से उचित जवाब नहीं मिला है.
हंसराज अहीर ने कहा, ‘‘कर्नाटक में ओबीसी के लिए कुल 32 फीसदी आरक्षण है और एससी, एसटी के लिए अलग आरक्षण है. इसके तहत उन्होंने कैटेगरी प्रथम, प्रथम(बी), द्वितीय(बी), तृतीय जैसे विभाजन किए हैं.’’
‘‘उन्होंने अपने जवाब में कहा, ‘‘मुस्लिम और ईसाई जैसे समुदाय न तो जाति हैं और न ही धर्म. इसलिए, एक तरफ, वे मुसलमानों को ओबीसी श्रेणी में आरक्षण दे रहे हैं और फिर यह भी जवाब दे रहे हैं कि वे न तो उनकी जाति मानते हैं और न ही धर्म.’’
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