मुंबई
महाराष्ट्र की भाषा सलाहकार समिति ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह स्कूलों में त्रिभाषा नीति (Three-Language Policy) लागू करने के लिए गठित नरेंद्र जाधव समिति को भंग करे।
यह निर्णय समिति की नागपुर में मंगलवार को हुई बैठक में सर्वसम्मति से लिया गया। यह जानकारी मराठी भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष और प्रख्यात लेखक लक्ष्मीकांत देशमुख ने दी।
29 सदस्यों वाली यह सलाहकार समिति शिक्षाविदों और लेखकों का समूह है, जो मराठी भाषा से जुड़े मामलों में सरकार को सुझाव देती है।देशमुख ने कहा कि “डॉ. नरेंद्र जाधव एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हैं और उनका सम्मान किया जाता है, लेकिन वे न तो भाषा विशेषज्ञ हैं और न ही बाल मनोविज्ञानी।”
उन्होंने यह भी कहा कि जाधव द्वारा सभी हितधारकों से ऑनलाइन सुझाव लेने की बात व्यवहारिक नहीं है।गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को एक शासन निर्णय (GR) जारी कर अंग्रेजी और मराठी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर दिया था।
इस निर्णय का राज्यभर में तीखा विरोध हुआ, जिसके बाद सरकार ने 17 जून को संशोधित GR जारी कर हिंदी को वैकल्पिक भाषा घोषित कर दिया और इसके बाद त्रिभाषा नीति को अंतिम रूप देने के लिए नरेंद्र जाधव समिति का गठन किया गया।
देशमुख ने सवाल उठाते हुए कहा, “जब हिंदी को अनिवार्य बनाने वाला GR रद्द कर दिया गया, तो फिर नरेंद्र जाधव समिति की ज़रूरत ही क्या थी? भाषा नीति पर विचार के लिए पहले हमें (सलाहकार समिति) से राय ली जानी चाहिए थी, क्योंकि हम सरकार द्वारा नियुक्त समिति हैं।”
समिति ने जून में एक प्रस्ताव पारित कर पहले ही यह मांग की थी कि कक्षा 5 से पहले किसी भी तीसरी भाषा — चाहे वह हिंदी हो या कोई और — की पढ़ाई नहीं करवाई जाए।
देशमुख ने कहा, “महाराष्ट्र में प्राथमिकता मराठी भाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की होनी चाहिए। मराठी स्कूलों में अंग्रेज़ी की शुरुआत इसलिए की गई थी ताकि ड्रॉपआउट कम हों और मराठी माध्यम के स्कूल बंद न हों। वैसे भी, विद्यार्थी हिंदी की पढ़ाई 5वीं कक्षा से शुरू करते हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “6 साल के बच्चों पर तीन भाषाओं का बोझ डालने से उनका ध्यान विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और अन्य विषयों से हट जाएगा।”