अनीता
भारत की राजधानी दिल्ली केवल राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र ही नहीं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजनों का भी प्रमुख गढ़ है. इन्हीं आयोजनों में से एक है ’’दिल्ली का ऐतिहासिक रामलीला मैदान’’, जहाँ शताब्दियों से भव्य रामलीला का मंचन होता आ रहा है. यह मैदान केवल एक सांस्कृतिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सौहार्द्र का प्रतीक है. इस रामलीला में फिल्मी सितारों ने अभिनय कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है, वहीं देश के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों ने इसका उद्घाटन कर इसे राष्ट्रीय महत्व प्रदान किया. दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस रामलीला के आयोजन में ’’मुस्लिम समाज का योगदान’’ हमेशा उल्लेखनीय रहा है, जो इसे हिंदुस्तान की साझा संस्कृति की सबसे मजबूत मिसालों में शामिल करता है.
दिल्ली का यह मैदान मूल रूप से ब्रिटिश शासनकाल में ‘परेड ग्राउंड’ के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद यहाँ धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों की शुरुआत हुई और समय के साथ यह ’’रामलीला मैदान’’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया. हर वर्ष ’’शारदीय नवरात्रों’’ में यहाँ रामलीला का भव्य मंचन होता है और विजयदशमी के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों का दहन होता है. रामलीला मैदान केवल धार्मिक आयोजन का स्थल नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के बाद के राजनीतिक आंदोलनों का भी गवाह रहा है. 1966 में लाला कर्णचंद का बड़ा आंदोलन, 1975 में इमरजेंसी के विरोध में रैलियां और 2011 में अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, ये सभी इसी मैदान से जुड़े हैं. इस प्रकार यह मैदान राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टि से ऐतिहासिक महत्व रखता है.
रामलीला मंचन की परंपरा
दिल्ली के पुराने लोग बताते हैं कि दिल्ली के सम्राट राजा अनंगपाल और उनके नाती पृथ्वीराज चैहान के जमाने में भी रामलीला होती थी. रामलीला मंचन की परंपरा मुगल काल में भी जारी रही.
मुगलिया दौर में रामलीला
द हिंदू के एक लेख के मुताबिक यह भी कहा जात है कि बादशाह शाहजहाँ ने शाहजहांनााबाद बसाने के बाद (17वीं सदी में) रामलीला का आयोजन शुरू हुआ. बहादुर शाह जफर के दौर में “रावण के पुतलों का दहन” का भी उल्लेख मिलता है. हिंदुस्तान टाइम्स के एक लेख में इतिहासकार राणा सफवी बताती हैं, तुलसी दास की रामायण की चैपाइयों का फारसी और उर्दू में पाठ किया जाता था. रात में दसों दिन रामलीला का आयोजन होता था. यमुना तट पर रामचरितमानस के नाट्य मंचन को शाही संरक्षण प्राप्त था. 19वीं सदी के लेखक और विद्वान मौलवी जकी उल्लाह लिखते हैं कि शहर की सीमा से तीन मील दूर वजीराबाद छावनी में एक और मंचन आयोजित किया गया था, जिसके लिए पैदल सेना रेजिमेंट के हिंदू और मुस्लिम सैनिकों ने मिलकर चंदा इकट्ठा किया और व्यवस्था की.
‘चाँदनी चैक’ और ‘द मुगल सिटी अॉफ ओल्ड दिल्ली’ की लेखिका स्वप्ना लिडल के अनुसार, लाल किले के पीछे यमुना तट पर रामलीला शहरवासियों और शाही परिवार के लिए होती थी, जो वर्षों तक उसी स्थान पर चलती रही. 1857 के विद्रोह के बाद, इसका स्थान बदल दिया गया. पहले इसे तीस हजारी बाग में स्थानांतरित किया गया और बाद में इसे अजमेरी गेट के बाहर खेला जाने लगा. लोग लंका के भस्म हुए घरों की राख अपने साथ ले जाते थे, क्योंकि इसे पवित्र माना जाता था.
आधुनिक समय में रामलीला मैदान की रामलीला की शुरुआत 20वीं सदी के मध्य से हुई, जब इसे नियमित और भव्य रूप देने के लिए स्थायी समिति का गठन किया गया. पहले रामलीला का मंचन स्थानीय कलाकारों द्वारा साधारण मंच पर किया जाता था. परंतु समय के साथ आधुनिक प्रकाश व्यवस्था, ध्वनि तकनीक, डिजिटल पर्दों और विशेष प्रभावों के उपयोग ने इस आयोजन को और भी आकर्षक बना दिया.
फिल्मी सितारों का अभिनय
दिल्ली की रामलीला को लोकप्रिय बनाने में बॉलीवुड और थिएटर जगत के कई दिग्गज कलाकारों का योगदान रहा है. कई प्रसिद्ध फिल्मी सितारों ने यहाँ राम, सीता, रावण और हनुमान जैसे पात्र निभाए. हिंदी सिनेमा के ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार ने अपने शुरुआती दौर में रामलीला में भाग लिया था. टीवी पर रामायण में भगवान राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल ने भी यहाँ भगवान राम का अभिनय किया. तो दीपिका चिखलिया भी यहां मैया सीता का अभिनय कर चुकी हैं. हाल के वर्षों में फिल्मी और टीवी जगत की कई हस्तियां रामलीला मैदान की शोभा बढ़ाती रही हैं. इनमें मनोज तिवारी, रवि किशन जैसे अभिनेता-सांसद भी शामिल हैं, जिन्होंने किरदार निभाने के साथ सांस्कृतिक संदेश भी दिए.
राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों का सानिध्य
दिल्ली की रामलीला का राजनीतिक महत्व भी रहा है. भारत के कई राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों ने इस आयोजन का उद्घाटन किया या इसमें उपस्थिति दर्ज कराई. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस रामलीला को सांस्कृतिक धरोहर बताते हुए उद्घाटन किया था. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे भारतीय संस्कृति के जीवंत उदाहरण के रूप में सराहा. पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कई बार इस आयोजन में उपस्थित होकर बच्चों और युवाओं से रामायण के आदर्शों को अपनाने का आह्वान किया. इंदिरा गांधी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में रामलीला मैदान के दशहरा समारोह में शामिल हुईं. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी काव्यात्मक शैली में रामलीला के संदेशों को राष्ट्र निर्माण से जोड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कई बार दिल्ली की रामलीला का उद्घाटन कर चुके हैं.
मुस्लिम समाज की सक्रिय भागीदारी
दिल्ली की रामलीला का सबसे अद्भुत पहलू है कि रामलीला के पर्दे बनाने, रोशनी और सजावट में मुस्लिम कारीगरों की भूमिका अहम रही है. पारंपरिक झांकियों के रथ, पुतले और आतिशबाजी का बड़ा हिस्सा मुस्लिम कलाकारों और दस्तकारों द्वारा तैयार किया जाता है. ओखला और जामा मस्जिद क्षेत्र के कारीगर दशकों से रावण के पुतले बनाते आ रहे हैं. दिल्ली का रामलीला मैदान केवल एक धार्मिक आयोजन स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है. जहाँ एक ओर फिल्मी सितारों और नेताओं की उपस्थिति इसे भव्य बनाती है, वहीं मुस्लिम समाज का योगदान इसे ’’गंगा-जमुनी तहजीब की अनोखी मिसाल’’ बनाता है. रामलीला मैदान का हर आयोजन इस बात को पुष्ट करता है कि भारत की असली ताकत उसकी विविधता में निहित है.