10 साल से 'रावण 'दे रहा है कारीगरों को रोजगार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 23-09-2025
For the past 10 years, Raavan has been providing employment to artisans in Faridabad
For the past 10 years, Raavan has been providing employment to artisans in Faridabad

 

प्रेम खान, फरीदाबाद (हरियाणा)

हरियाणा के फरीदाबाद में एक छोटी सी कला ने न केवल दशहरे के पर्व को खास बनाया, बल्कि कई परिवारों के जीवन में रोशनी भी भर दी है. एक स्थानीय कारीगर की मेहनत और कला ने रोज़गार के नए रास्ते खोले हैं, जो अब एक परंपरा बन गई है. यह कहानी है संघर्ष, उम्मीद और सामूहिक प्रयास की, जो जीवन को नया आकार दे रही है.

जब दशहरे की तैयारियाँ ज़ोर पकड़ती हैं, तो फरीदाबाद की एक गली में रंग-बिरंगे रावण के पुतलों की कतारें लग जाती हैं. इन्हें बना रही हैं उषा – जो पिछले 10 वर्षों से इस पारंपरिक कला को जीवित रखे हुए हैं। यह सिर्फ उनका शौक नहीं, बल्कि उनके परिवार और कई अन्य कारीगरों के लिए रोज़गार का मजबूत जरिया भी है.

उषा ने आवाज द वॉयस को बताया कि रावण बनाने की यह कला करीब एक दशक पहले सीखी थी. इसके बाद उनके भाई अजय ने भी उनका साथ देना शुरू किया, और आज दोनों मिलकर 2 फुट से लेकर 45 फुट तक के विशाल पुतले तैयार करते हैं। ये पुतले विशेष रूप से दशहरे पर बेचे जाते हैं, और हर साल करीब 3 महीने पहले से ही इनके निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

वैसे तो रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है, लेकिन दशहरा के दौरान वह कई लोगों को रोजगार दे गया. इससे शहर के कई बेरोजगारों को कुछ दिन के जीविका का साधन मिल गया. दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले को मैदान में लगाने के दौरान सुबह से दर्जनों लोग मशक्कत करते नजर आए.
 
वहीं, दशहरे के दिन इन पुतले को ग्राउंड में खड़ा करने के लिए क्रेन मशीन सहित करीब 10-12 लोगों की जरूरत होती है. रावण आदि का पुतला बनाने वाले कारीगरों ने बताया कि वह काफी दिन से रावण के पुतले बना रहे हैं। बड़े पुतलों को बनाने काफी टाइम व मेहनत लगती है. दशहरे पर इनकी डिमांड होने की वजह से कुछ दिन के लिए काम-धंधे का इंतजाम हो जाता है.
 

कुछ दिन का रोजगार दे गया रावण

अजय बताते हैं "पहले बहुत ज़्यादा बिक्री होती थी, अब बाज़ार थोड़ा ठंडा है, लेकिन हमें भरोसा है कि जैसे-जैसे दशहरा नज़दीक आएगा, ऑर्डर बढ़ेंगे,"

एक रावण का पुतला तैयार करने में लगभग 3 से 4 दिन लगते हैं. ग्राहक की मांग के अनुसार पुतलों को डिजाइन किया जाता है – कोई शस्त्रों से लैस रावण चाहता है, तो कोई पारंपरिक राजसी रूप में.

उषा और उनके परिवार के लिए यह काम केवल सीजनल नहीं है. बाकी समय में वे चटाई और फेरी (स्थानीय हस्तकला) का काम करते हैं। लेकिन दशहरे के सीजन में उनका पूरा ध्यान रावण निर्माण पर होता है – और इस दौरान कई स्थानीय कारीगरों को भी अस्थायी रूप से रोज़गार मिलता है.

इस कला के ज़रिये न केवल दशहरा उत्सव को भव्य रूप मिलता है, बल्कि फरीदाबाद जैसे शहर में यह लोककला लोगों की रोज़ी-रोटी का अहम हिस्सा भी बन चुकी है.

"हर पुतला सिर्फ कागज़ और बांस का नहीं होता, उसमें हमारी मेहनत, उम्मीद और परंपरा भी जुड़ी होती है," उषा भावुक होकर कहती हैं.

जहां एक ओर बाज़ार में मशीन से बने रावण आने लगे हैं, वहीं उषा जैसे कलाकार यह सिद्ध कर रहे हैं कि हाथों से गढ़ी गई लोककला की चमक आज भी बरकरार है – बस उसे थोड़ा समर्थन और मंच चाहिए.