नई दिल्ली
लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का शीर्ष आतंकवादी सैफुल्ला खालिद, जो भारत में बेंगलुरु, नागपुर और रामपुर जैसे तीन बड़े आतंकी हमलों का साजिशकर्ता था, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मारा गया. खुफिया सूत्रों के मुताबिक, उसे अज्ञात हमलावरों ने सिंध के बदीन ज़िले के मटली शहर में गोली मार दी.
नेपाल में छद्म पहचान, पाकिस्तान में नया ठिकाना
सैफुल्ला खालिद लंबे समय तक नेपाल में "विनोद कुमार" नाम से फर्जी पहचान के तहत रह रहा था. वहां उसने एक स्थानीय महिला नग़मा बानो से शादी भी की थी. नेपाल में रहते हुए वह लश्कर की गतिविधियों को शांत तरीके से संचालित करता था—जिसमें भर्ती, फंडिंग और लॉजिस्टिक्स की जिम्मेदारी शामिल थी.
हाल ही में उसने नेपाल से पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मटली शहर में ठिकाना बना लिया था और वहीं से लश्कर-ए-तैयबा और उसकी मोर्चा संस्था जमात-उद-दावा के लिए कार्य कर रहा था.
तीन बड़े आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड
सैफुल्ला भारत में हुए तीन बड़े आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड था:
2005 बेंगलुरु इंडियन साइंस कांग्रेस हमला
2006 नागपुर में आरएसएस मुख्यालय पर हमला
2008 में यूपी के रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमला
इन हमलों में कई निर्दोष लोगों की जानें गई थीं और यह लश्कर की भारत में गतिविधियों के विस्तार की बड़ी मिसालें मानी जाती हैं.
लश्कर ने दी थी सुरक्षा, फिर भी मारा गया
सूत्रों के अनुसार, लश्कर ने उसे मटली में रहने के दौरान सीमित गतिविधि रखने और सुरक्षा घेरे में रहने का निर्देश दिया था. लेकिन रविवार सुबह जब वह अपने घर से बाहर निकला, तो एक चौराहे पर घात लगाकर बैठे हमलावरों ने उसे गोली मार दी.
कश्मीर में लश्कर के तीन और आतंकी ढेर
इसी बीच, पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर के शोपियां ज़िले में सुरक्षाबलों ने लश्कर के तीन और आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया. मारे गए आतंकियों में संगठन का ‘ऑपरेशंस कमांडर’ शाहिद कुट्टे भी शामिल था.
अन्य दो आतंकी थे:
अदनान शफी (शोपियां के वंदुना मेलहुरा क्षेत्र से)
अहसान उल हक शेख (पुलवामा के मुर्रन क्षेत्र से)
इन आतंकियों के पास से दो AK सीरीज़ की राइफलें, बड़ी मात्रा में गोला-बारूद, ग्रेनेड और युद्ध स्तर का अन्य सामान बरामद हुआ.शाहिद कुट्टे दक्षिण कश्मीर में आतंकी भर्ती गतिविधियों का नेतृत्व करता था और कई निर्दोषों की हत्या में शामिल था.
विश्लेषण
सैफुल्ला खालिद की हत्या पाकिस्तान में आतंकी संगठनों की अंदरूनी गुटबाज़ी, भारतीय खुफिया तंत्र की पैनी नज़र और अंतरराष्ट्रीय दबाव—तीनों का परिणाम हो सकती है. यह घटना भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से बड़ी सफलता है, क्योंकि दशकों तक भारत में खून बहाने वाला आतंकवादी अब खुद हिंसा का शिकार बन चुका है.