'मैं अलग हूं पर कम नहीं'— अनुपम खेर की 'तन्वी द ग्रेट' ने कान में दर्शकों का दिल जीता

Story by  अजीत राय | Published by  [email protected] | Date 19-05-2025
'I am different but not less'—Anupam Kher's 'Tanvi the Great' wins hearts of audiences at Cannes
'I am different but not less'—Anupam Kher's 'Tanvi the Great' wins hearts of audiences at Cannes

 

 कान, फ्रांस से अजित राय

भारतीय अभिनेता अनुपम खेर के निर्देशन में बनी हिन्दी फ़िल्म ' तन्वी द ग्रेट ' का यहां कान फिल्म समारोह के फिल्म बाजार के ओलंपिया थियेटर में  रात भव्य प्रीमियर हुआ.  इस फिल्म में अनुपम खेर, ईयान ग्लेन, बोमन ईरानी, पल्लवी जोशी, अरविंद स्वामी, करण टाकेर और शुभांगी दत्त ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं.

इस अवसर पर अनुपम खेर के साथ इस फिल्म के सभी मुख्य कलाकार उपस्थित थे. फिल्म के प्रीमियर के बाद अनुपम खेर, बोमन ईरानी, पल्लवी जोशी और शुभांगी दत्त ने दर्शकों से संवाद किया.  अनुपम खेर ने बताया कि उन्हें इस फिल्म की पटकथा लिखने में दो साल लगे.

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उन्होंने कहा कि इस फिल्म को बनाने का विचार तब आया जब वे अपने भाई की बेटी से मिले जो आटिज्म डिजार्डर से गुजर रही थी. यह एक ऐसी जन्मजात बीमारी है जो बच्चों का स्वाभाविक विकास नहीं होने देती. विश्व की जनसंख्या का करीब एक प्रतिशत इस बीमारी से पीड़ित हैं.

तन्वी ( शुभांगी दत्त) एक सत्रह अठारह साल की स्पेशल चाइल्ड है जो गायिका बनना चाहती है. उसे आटिज्म डिजार्डर है. उसके पिता कैप्टन समर प्रताप रैना ( करण टाकेर) की हार्दिक इच्छा है कि उनकी पोस्टिंग सियाचिन के अंतिम सैनिक पोस्ट बाना पोस्ट पर हो जाए जहां वे भारत के तिरंगे झंडे को सलामी दे सकें.

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उनकी पोस्टिंग वहां हो भी जाती है, पर मेजर कैलाश श्रीनिवासन ( अरविंद स्वामी) के साथ वहां जाते हुए उनका ट्रक एक माइन्स ब्लास्ट का शिकार हो जाता है और वे अपने साथी को बचाने में शहीद हो जाते हैं.

तन्वी की मां विद्या रैना ( पल्लवी जोशी) दिल्ली में एक आटिज्म डिजार्डर विशेषज्ञ हैं. अकेले वह तन्वी का पालन पोषण करती है. 

अचानक उन्हें आटिज्म डिजार्डर पर अमेरिका के वर्ल्ड आटिज्म फाउंडेशन की 9 महीने की फेलोशिप मिल जाती हैं जहां उन्हें फाउंडेशन के अध्यक्ष माइकल साइमन ( ईयान ग्लेन) के निर्देशन में शोध करना है.

अब समस्या है कि तन्वी को इतने दिनों के लिए अकेले कहां छोड़ा जाए जो खुद से अपने जूते का फीता भी नहीं बांध सकती. 

वे तन्वी को उसके दादा कर्नल प्रताप रैना ( अनुपम खेर) के पास ले जाती है जो अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद हिमालय की पहाड़ियों में स्थित एक सैनिक छावनी में रिटायर फौजी का एकाकी जीवन बिता रहे हैं.

तन्वी को वहां राजा साहब ( बोमन ईरानी) के संगीत विद्यालय में दाखिला दिला दिया जाता है. सबकुछ ठीक चल रहा होता है कि एक दिन अचानक अपने पिता के बंद पड़े कमरे में तन्वी को एक पेन ड्राइव मिलता है जिससे उसे पता चलता है कि उसके पिता सियाचिन के बाना पोस्ट पर तिरंगे को सलामी देने का अधूरा सपना छोड़कर कैसे मरे थे.

यहां से उसका जीवन बदलने लगता है. वह अपने शहीद पिता का अधूरा सपना पूरा करने के लिए भारतीय सेना में भर्ती होना चाहती है जो उसका खानदानी पेशा है. मुश्किल यह है कि आटिज्म डिजार्डर के लोगों को सेना में भर्ती करने का कानून हीं नहीं है. 

यहां से फिल्म की दो यात्राएं साथ-साथ चलती है. आटिज्म डिजार्डर की शिकार तन्वी भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए कठोर अभ्यास और संकल्प के साथ खुद को अपनी शारीरिक कमजोरियों से बाहर निकालती है तो दूसरी ओर अपने दादा के साथ नए रिश्ते की बुनियाद रखती है.

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दो अलग-अलग तरह के इंसान धीरे धीरे एक दूसरे को समझने की कोशिश करते हैं. यहीं फिल्म का सबसे खूबसूरत पक्ष है.  तन्वी  मेजर कैलाश श्रीनिवासन की ट्रेनिंग अकादमी में एसएसबी की परीक्षा के लिए दाखिला लेती है और उसे संगीत विद्यालय छोड़ना पड़ता है.

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यह वहीं मेजर है जिन्हें बचाते हुए उसके पिता शहीद हुए थे. तन्वी की निष्ठा, ईमानदारी और संकल्प से प्रभावित होकर भारतीय सेना उसे भर्ती तो नहीं करती पर एक नागरिक के रूप में अपने पिता का अधूरा सपना पूरा करने की अनुमति देती हैं.

पर अनुपम खेर की फिल्म इस कहानी के माध्यम से और भी बहुत सारे सवालों से टकराती है.फिल्म में एक संवाद बार बार आता है कि " आई एम डिफरेंट बट नाट लेस." ( मैं अलग हूं पर किसी से कम नहीं हूं.) यानि नार्मल का उलटा एब्नार्मल नहीं है, डिफरेंट है.

अमेरिका में तन्वी की मां विद्या रैना अपने शोध में बताती हैं कि ऐसे बच्चों को अभ्यास के साथ अच्छी देखभाल से सामान्य जीवन जीने लायक बनाया जा सकता है. फिल्म में एक ब्रिगेडियर शर्मा ( जैकी श्रॉफ) है जिनका सोशल इंफ्लूएंसर बेटा सेना की नौकरी को बेवकूफी और घाटे का सौदा मानता है.

अनुपम खेर की सफलता है कि उन्होंने भारतीय सेना के गौरवगान और महिमामंडन से बचते हुए फिल्म को मानवीय रिश्तों पर फोकस रखा है. भटकने नहीं दिया है. उन्होंने निर्देशक के रूप में गीतों का कल्पनाशील फिल्मांकन किया है.

एक गीत की कोरियोग्राफी बहुत उम्दा और आकर्षक है - " सेना की जय, जय हो जाए."  पटकथा में हिंदी भाषा के गलत उच्चारण से हास्य पैदा करने की कोशिश की गई है.

अनुपम खेर ने अनावश्यक सेट और तामझाम से परहेज़ किया है. खुद को हमेशा पटकथा पर फोकस किया है. तन्वी के पिता कैप्टन समर प्रताप रैना की स्मृति में घर के आंगन में एक पेड़ लगाया गया है जो फिल्म के चरित्रों को यादों के गलियारों में गुजरने का स्पेस और अवसर देता है.

लेखक अजीत राय अभिनेता अनुपम खेर के साथ कान में

इस हृदयस्पर्शी पटकथा को हिंसा और शोर से दूर रखा गया है. आर्मी की एसएसबी परीक्षा के फाइनल राउंड में तन्वी हार जरुर जाती है, पर वह एक नागरिक के रूप में अपने शहीद पिता का सपना पूरा करने में सफल होती है.

ट्रेनिंग के दौरान एक मार्मिक दृश्य में वह मेजर कैलाश श्रीनिवासन के आदेश की अवहेलना करके आपने संगीत गुरु राजा साहब की जान बचाती हैं. एकेडमी से बर्खास्त होने का दंड भी सहती है.

अनुपम खेर ने अपने अभिनेताओं से बहुत उम्दा काम करवाया है. यहां तक  अतिथि भूमिकाओं में भी दक्षिण भारत के अभिनेता नासिर ( ब्रिगेडियर के एन राव) और जैकी श्रॉफ ( ब्रिगेडियर जोशी) ने अच्छा काम किया है. 

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अनुपम खेर तो एक बेहतरीन अभिनेता हैं ही. पल्लवी जोशी भी प्रभावित करती है. लेकिन सबसे उम्दा काम शुभांगी दत्त ( तन्वी) ने किया है, जबकि यह उनकी पहली फिल्म है. 

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