किशनगंज मुस्लिम बहुल सीट है, मगर 'जीत की चाबी' किसी और के हाथों में

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 22-04-2024
किशनगंज मुस्लिम बहुल सीट है, मगर हिंदू वोटर के हाथों में है जीत की चाबी
किशनगंज मुस्लिम बहुल सीट है, मगर हिंदू वोटर के हाथों में है जीत की चाबी

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

सीमांचल का किशनगंज लोकसभा क्षेत्र ‘चिकन नेक’ का निगेहबां है. वही चिकन नेक, जिस पर चीन की हमेशा नजरे-बद रहती है, जो पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ता है. यह सीट राजनीतिक तौर पर हमेशा अहम रही है, तो इसके रणनीतिक महत्व को भी कम नहीं आंका जा सकता है. यह सीट मुस्लिम बहुल है, लेकिन जीत की चाबी हमेशा हिंदू मतदाताओं के हाथों में रही है. हिंदू मतदाता का झुकाव जिस ओर हो जाता है, उसी उम्मीदवार की नैया पार लग जाती है.

किशनगंज में कई महाभारतकालीन विरासतों के अवशेष हैं, जिनमें भीम तकिया और  भातडाला पोखर मुख्य हैं. इस क्षेत्र में कभी मुख्य रूप से जूट की खेती होती है, लेकिन यहां जूट प्रसंस्करण के लिए कोई बड़ा कारखाना न खुलने के कारण यहां जूट की खेती कम होती गई. अब यहां के किसान चाय, केला और अनानास की खेती करते हैं. यह बिहार का इकलौता जिला है, जहां चाय के बाग हैं.

किशनगंज में कुल 16 लाख मतदाता है, जिसमें 68 प्रतिशत मुस्लिम और लगभग 32 प्रतिशत हिंदू मतदाता हैं. इस संसदीय क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचधामन, अमौर और बैसी लगते हैं. यह लोकसभा सीट मुस्लिम बहुल होने के कारण लगभग सभी दल मुस्लिम प्रत्याशी ही मैदान में उतारते हैं. इसलिए हिंदू मतदाता जिस ओर मुड़ जाता है, उसकी फतह हो जाती है. अमौर व बायसी विधानसभा क्षेत्रों में ही सर्वाधिक हिंदू मतदाता हैं. 

इस बार किशनगंज में 12 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. यहां मुख्य मुकाबला जदयू के मुजाहिद आलम, कांग्रेस के मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है.

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने जदयू प्रत्याशी सैयद मोहम्मद अशरफ को 34,461 वोटों के अंतर पराजित किया था. मोहम्मद जावेद से पहले 2009 और 2014 के चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद असरारुल हक जीते थे.

तीनों मुख्य प्रत्याशियों के अपनी-अपनी खासियत और कमजोरियां हैं. कांग्रेस के मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान दोनों ही सुरजापुरी मुस्लिम हैं. इसलिए इनमें वोटों का बंटवारा होना तय है. मोहम्मद जावेद निवर्तमान सांसद हैं, तो अख्तरूल ईमान के नेतृत्व में एआईएमआईएम के उम्मीदवार पांच विधानसभा क्षेत्रों में जीत चुके हैं. जदयू के मुजाहिद आलम एनडीए के घटक भी हैं. इसलिए उन्हें हिंदू मतदाताओं का सहारा मिल सकता है. काबिलेगौर है कि 1999 में त्रिकोणीय संघर्ष के बीच यहां से भाजपा के सैयद शाहनवाज हुसैन चुनाव जीते थे.