Janmashtami at an altitude of 12,000 feet... Divine worship of Sri Krishna at Yula Kanda
आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, जन्माष्टमी, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर स्थित युल्ला कांडा मंदिर में मनाया जाता है, जिसे दुनिया के सबसे ऊँचे कृष्ण मंदिर के रूप में जाना जाता है। एक झील के किनारे 12,000 फीट (3,895 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर, विशेष रूप से जन्माष्टमी के दौरान, भक्तों और पर्वतारोहियों, दोनों को समान रूप से आकर्षित करता है। किन्नौरी टोपी अनुष्ठान जैसी स्थानीय परंपराएँ इस उत्सव का हिस्सा हैं।
इस बार जन्माष्टमी का पर्व 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित युला कांडा में धूमधाम से मनाया गया। यहां, भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य पूजा का आयोजन किया गया, जिसने न केवल श्रद्धालुओं का दिल छुआ, बल्कि यह एक अद्वितीय और ऐतिहासिक अनुभव बन गया।
युला कांडा, जो हिमालय की वादियों में स्थित है, वह स्थान जहां पर धार्मिक अनुष्ठान और पर्वों की महिमा सदियों से अडिग रही है। इस पर्व को मनाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु और स्थानीय लोग इकट्ठा हुए। पर्वतीय क्षेत्र की कठिनाइयों के बावजूद, भक्तों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए इस स्थान पर पहुंचने का साहस किया।
पर्व के दिन सुबह-सुबह मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की गई। फूलों से सजाए गए मंदिर में, भक्तों ने श्रीकृष्ण के सुंदर रूप की पूजा की और नृत्य-गान से उनका अभिवादन किया। इस दौरान यहां की शांतिपूर्ण और मनमोहक प्राकृतिक वातावरण ने पूजा को और भी अधिक दिव्य बना दिया।
स्थानीय पुजारियों ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को श्रद्धालुओं को बताया और भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम का महत्व समझाया। साथ ही, इस पर्व को मनाने के दौरान पर्वतीय संस्कृति के रंग भी देखने को मिले, जहां लोक गीतों और नृत्य ने पूरे माहौल को जीवंत कर दिया।
पर्व के समापन पर, सभी भक्तों ने एक-दूसरे को भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद के रूप में शुभकामनाएं दीं। इस आयोजन ने न केवल श्रद्धा को नया रूप दिया बल्कि यह पर्व पर्वतीय क्षेत्रों में धार्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का एक अच्छा उदाहरण बना।
युल्ला कांडा और जन्माष्टमी के बारे में अधिक जानकारी:
स्थान:
युल्ला कांडा हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में, एक झील के बीच में, ऊँचाई पर स्थित है।
ऐतिहासिक महत्व:
स्थानीय किंवदंती और महाभारत के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान करवाया था।
जन्माष्टमी उत्सव:
यह मंदिर जन्माष्टमी समारोहों का केंद्र बिंदु बन जाता है, जहाँ स्थानीय लोग और पर्यटक अनुष्ठानों और प्रार्थनाओं में भाग लेते हैं।
किन्नौरी टोपी अनुष्ठान:
एक अनोखी परंपरा के तहत श्रद्धालु झील के पानी में किन्नौरी टोपी डालते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर यह तैरकर पार हो जाए, तो यह सौभाग्य और आने वाला साल शांतिपूर्ण होता है।
ट्रैकिंग स्थल:
युल्ला कांडा भी एक लोकप्रिय ट्रैकिंग स्थल है, जहाँ से किन्नौर पर्वतमालाओं और घाटियों के मनोरम दृश्य दिखाई देते हैं।
घूमने का सबसे अच्छा समय:
ट्रैकिंग और जन्माष्टमी उत्सव का आनंद लेने के लिए सबसे अच्छा समय गर्मियों के महीने, मई से सितंबर तक है।