कोलकाता
जन्म से ही हाथों के बिना जन्मी शीतल देवी ने वर्ष 2025 में भारतीय तीरंदाजी को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। जम्मू के किश्तवाड़ की 18 वर्षीय शीतल ने पैरा तीरंदाजी में अपने अद्वितीय कौशल से दुनियाभर में ध्यान खींचा। उन्होंने दक्षिण कोरिया के ग्वांगजू में आयोजित विश्व पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप में महिला कंपाउंड ओपन स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा टीम स्पर्धा में रजत और मिश्रित टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने साल का शानदार प्रदर्शन किया।
शीतल ने राष्ट्रीय चयन ट्रायल में 60 से अधिक खिलाड़ियों को मात देकर कंपाउंड महिला रैंकिंग में तीसरा स्थान हासिल किया। उनकी सफलता ने पैरालंपिक कांस्य पदक विजेता के रूप में उनके करियर को और भी निखारा।
इस साल कंपाउंड तीरंदाजी को ओलंपिक में मान्यता मिलना भी महत्वपूर्ण रहा। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 2028 लॉस एंजेल्स खेलों में कंपाउंड मिश्रित टीम स्पर्धा शामिल करने की घोषणा की, जिससे भारत की विश्व स्तरीय टीम के लिए पदक की संभावनाएँ और बढ़ गई हैं।
दूसरी ओर, रिकर्व तीरंदाजों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। ढाका में एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप में भारत ने रिकर्व में दोनों व्यक्तिगत स्पर्धाओं में स्वर्ण जीते, लेकिन विश्व स्तर की प्रतियोगिताओं में रिकर्व खिलाड़ियों की निरंतरता नहीं रही। चार बार की ओलंपियन दीपिका कुमारी विश्व कप सर्किट में केवल एक कांस्य पदक जीत सकीं, जबकि युवा तीरंदाज गाथा खडके और शरवरी शेंडे ने विश्व कप में पदार्पण किया।
कंपाउंड में ऋषभ यादव, प्रथिका और ज्योति सुरेखा वेन्नम ने वर्ष भर लगातार भारत का नाम रोशन किया। ज्योति ने नानजिंग में विश्व कप फाइनल्स में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा।
हालांकि तीरंदाजी प्रीमियर लीग की शुरुआत हुई, लेकिन दक्षिण कोरिया की अनुपस्थिति और विदेशी कोच की कमी ने रिकर्व खिलाड़ियों की तैयारी को प्रभावित किया। एशियाई खेलों के नजदीक आने के बावजूद भारतीय संघ मुख्य कोच की नियुक्ति नहीं कर पाया।
संक्षेप में, 2025 में शीतल जैसी पैरालंपिक स्टार्स ने भारत का नाम रोशन किया, जबकि रिकर्व वर्ग को विश्व स्तर पर निरंतरता और मजबूत तैयारी की चुनौती का सामना करना पड़ा।