भारत उदय: विश्व पर भारत की डिजिटल छाप

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 18-09-2023
India Rising: The Digital Imprint of India on the World
India Rising: The Digital Imprint of India on the World

 

अजय लेले

हर कोई जानता है कि 21वीं सदी में डेटा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है. 'डेटा' शब्द का तात्पर्य अमेरिकी सरकार द्वारा एकत्र की गई वित्तीय, वाणिज्यिक, तकनीकी और रक्षा जानकारी से है.

इससे साइबर सुरक्षा और बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे क्षेत्रों में कई मुद्दे सामने आते हैं. इसीलिए भारत ने हमेशा 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' का इस्तेमाल बहुत जिम्मेदारी से और सभी की भलाई के लिए करने पर जोर दिया है.

हाल ही में भारत की अध्यक्षता में राजधानी दिल्ली में आयोजित 'जी-20' शिखर सम्मेलन कई मायनों में सकारात्मक रहा है. इनमें से एक जी-20 देशों के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की रूपरेखा है. (DPI पर सहमति) नई दिल्ली घोषणा में, G-20 देशों के नेताओं ने वर्तमान प्रणाली के विकल्प के रूप में विकास के लिए DPI प्रणाली तैयार करने के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया है.

इन नेताओं ने सामाजिक स्तर पर सुविधाएं प्रदान करने में 'डीपीआई' के माध्यम से होने वाली आसानी और लाभ को पहचाना है. इसी तरह, विश्व नेता आपसी सहयोग बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के नियमन पर मिलकर काम करने पर भी सहमत हुए हैं.

दरअसल, नई दिल्ली घोषणा की घोषणा से पहले इस मामले पर आम सहमति को लेकर कई संदेह उठाए गए थे. पिछले साल बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद, कई लोग इस घोषणा पर आम सहमति तक पहुंचने को लेकर संशय में थे.

रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर जी-20 समूह में नाटो सदस्य और चीन, जो रूस का सहयोगी है और रूस के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल है. लेकिन इसके बावजूद भारत के 'जी-20' शेरपा और उनके सहयोगियों की टीम घोषणापत्र पर सभी देशों के बीच आम सहमति बनाने में कामयाब रही.

ऐसा प्रतीत होता है कि शेरपा और उनके सहयोगियों की टीम ने घोषणा के सकारात्मक पहलुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया ताकि अन्य देश भी इस पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

इसी तरह वैश्विक स्तर पर वर्तमान और भविष्य में सकारात्मक बदलाव लाने वाले मुद्दों पर बहस कर आम सहमति बनाई गई. उनमें से एक बिंदु डीपीआई है.

यह निश्चित रूप से भारत के लिए एक बड़ी सफलता है. भारत, 'ग्लोबल साउथ' का देश होने के नाते, अब दुनिया के विकसित देशों को सीख दे रहा है कि डिजिटलीकरण के माध्यम से बड़े पैमाने पर समाज को कैसे फायदा हो सकता है. 'जी-20' के सदस्य देशों ने भी भारत की 'डीपीआई' अवधारणा को गंभीरता से लिया है.

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत पिछले कुछ दशकों से सॉफ्टवेयर विकास में अग्रणी देश के रूप में जाना जाता है. आज दुनिया की अधिकांश आईटी कंपनियों का नेतृत्व भारतीय मूल के नागरिकों के पास है.

इसी तरह, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में काम करने वाले भारतीय नागरिक विकसित देशों में बैंकिंग क्षेत्र से लेकर शिक्षा और रक्षा क्षेत्रों तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हाल के दिनों में भारत ने 'डीपीआई' के तीन बुनियादी पहलुओं में सफलता दिखाई है. एक है रियल-टाइम फास्ट पेमेंट यानी 'यूपीआई', दूसरा है डिजिटल आइडेंटिटी वगैरह. यानी 'आधार' और तीसरा, निजी जानकारी साझा करने के लिए एक मंच का निर्माण.

ऐसी स्थिति जिसमें सुरक्षा की दृष्टि से कोई समझौता नहीं किया गया हो, या दोनों प्रणालियों के बीच त्रुटियाँ या विसंगतियाँ हों. इसीलिए भारत वैश्विक डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण की सुविधा के लिए ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोजिटरी (जीडीपीआईआर) की अवधारणा को अपना रहा है. यानी वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के लिए आभासी रूप में बनाई गई जानकारी का भंडार.

विश्व नेता भी जानते हैं कि भारत के पास आवश्यक अनुभव है. स्वाभाविक रूप से, भारत के पास जी-20 देशों को देने के लिए बहुत कुछ है.

भारत ने 2016 में विमुद्रीकरण का अनुभव किया. विमुद्रीकरण की सफलता या इसके पीछे की नीति के बारे में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इस विमुद्रीकरण ने जो सबसे अधिक उजागर किया है या प्रकाश में लाया है वह डिजिटल वित्तीय लेनदेन है. भारत ने पिछले कुछ समय से सफलतापूर्वक डिजिटल बुनियादी ढांचा प्रदान किया है.

इनमें शामिल हैं: यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI), जन धन बैंक खाता, आधार आदि. इसी तरह, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) ने भारत के डिजिटल कॉमर्स क्षेत्र में क्रांति ला दी है. CoWIN जैसे ऐप के जरिए भारत ने कोरोना के खिलाफ टीकाकरण का सफल प्रदर्शन किया है.

इस उपलब्धि से दुनिया आज भी हैरत में है. बेशक, आम भारतीयों के लिए सफलता भी एक समस्या है. वे डिजिटल मीडिया को तेजी से अपनाने वाले हैं और उन्होंने इन मीडिया तत्वों को अपने जीवन में आत्मसात करके सफल मीडिया बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का क्षेत्र व्यापक है

नई दिल्ली घोषणापत्र में 'जीडीपीआईआर' को लेकर भारत की योजना का सभी देशों ने समर्थन भी किया है. भारत की राष्ट्रीय आर्थिक परिषद द्वारा प्रस्तावित 'वन फ्यूचर' समूह की अवधारणा में वैश्विक नेताओं की भी रुचि रही है.

इस अवधारणा के तहत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 'डीपीआई' प्रणाली के कार्यान्वयन के लिए तकनीकी सहयोग और पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जाएगा.

भारत का प्रस्ताव है कि 'डीपीआई' प्रणाली के माध्यम से, विश्वसनीयता बनाए रखते हुए और अंतरराष्ट्रीय कानून के ढांचे के भीतर देश के भीतर सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है. सभी देश जानते हैं कि दुनिया की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने में 'डेटा' महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

प्रौद्योगिकी की सहायता से वर्तमान डिजिटल अंतर को पाटा जा सकता है; इसी तरह, भारत का मानना है कि विकास को बढ़ावा दिया जाएगा और टिकाऊ और समावेशी विकास हासिल किया जाएगा.

भारत की अध्यक्षता के कार्यकाल के दौरान, 'जी-20' देशों के वित्त मंत्री इस बात पर सहमत हुए कि सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए 'डीपीआई' का प्रभावी ढंग से उपयोग कैसे किया जाए और अगले पांच वर्षों में 'डीपीपी' को कैसे लागू किया जाए.

विश्व बैंक के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र विकास परियोजना में 'डीपीआई' पर काम करने वाले कार्य समूह में भारत को भी विशेषज्ञ भागीदार के रूप में शामिल किया गया है.

भविष्य में इस अवधारणा को साकार करने के लिए भारत को विशेष प्रयास करने होंगे. 'DPI' की पूरी अवधारणा 'डेटा' के इर्द-गिर्द घूमती है, जो सिस्टम का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है.

सदस्य देशों को 'डेटा' साझा करने के लिए सहमत करना 'जी-20' शिखर सम्मेलन जैसे आयोजन का एक हिस्सा है, लेकिन वास्तव में इन देशों से 'डेटा' साझा करने की प्रक्रिया शुरू करना एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

यह सर्वविदित है कि 21वीं सदी में डेटा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है. यहां 'डेटा' में वित्तीय, वाणिज्यिक, तकनीकी और रक्षा जानकारी शामिल है.

इससे साइबर सुरक्षा और बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे क्षेत्रों में कई मुद्दे सामने आते हैं. इसीलिए भारत ने हमेशा 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' का इस्तेमाल बहुत जिम्मेदारी से और सभी की भलाई के लिए करने पर जोर दिया है.

नई दिल्ली घोषणा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास और इसके माध्यम से वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास और विस्तार का भी उल्लेख किया गया है.

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसमें कई सुधारों की गुंजाइश है और यह क्षेत्र अभी भी अपनी नींव मजबूत कर रहा है. बेशक, पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर भरोसा करना उचित नहीं माना जाता है.

हालाँकि, सौभाग्य से भारत में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में काम करने वाले तकनीकी रूप से कुशल जनशक्ति का पर्याप्त समूह है और ऐसा करने की क्षमता निजी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है.

अब जरूरत इस बात की है कि 'डीपीआई' क्षेत्र पर 'जी-20' देशों के साथ काम किया जाए और इस अवधारणा को सफल बनाया जाए. डिजिटल क्षेत्र में एक विश्वसनीय पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के भारत के प्रयास वैश्विक मंच पर भारत की मुहर लगाने में महत्वपूर्ण होंगे.

(लेखक एक रणनीतिक विश्लेषक हैं.)