इस मानसून में हिंदू कुश में भूस्खलन और बाढ़ का खतरा अधिक: रिपोर्ट

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 11-06-2025
Hindu Kush is at high risk of landslides and floods this monsoon: Report
Hindu Kush is at high risk of landslides and floods this monsoon: Report

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

 
औसत से अधिक बारिश के पूर्वानुमान के कारण इस साल मानसून में हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र में अचानक बाढ़ आने, भूस्खलन और हिमनद झील के फटने से बाढ़ आने का जोखिम अधिक है. एक अंतर-सरकारी संगठन के विशेषज्ञों ने बुधवार को यह जानकारी दी.
 
अंतरराष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (आईसीआईएमओडी) ने भी कहा कि मानसून के दौरान एचकेएच क्षेत्र में तापमान सामान्य से दो डिग्री सेल्सियस तक अधिक रहने का अनुमान है. आईसीआईएमओडी ने एक रिपोर्ट में कहा, ‘‘विभिन्न मौसम विज्ञान एजेंसी ने जून से सितंबर के बीच सामान्य से अधिक वर्षा का अनुमान जताया है जिससे पहाड़ी इलाकों में विनाशकारी बाढ़ आने और भूस्खलन का खतरा अधिक है.
 
इसमें कहा गया है कि एचकेएच में बढ़ते तापमान से हिमनद और बर्फ पिघलने की गति बढ़ सकती है जिससे नदी के प्रवाह में अल्पकालिक वृद्धि होने का अनुमान है और हिमनद झील के फटने से बाढ़ (जीएलओएफ) का खतरा बढ़ सकता है। गर्म तापमान बर्फ बनने की प्रक्रिया को भी धीमा करता है जिससे निचले इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए दीर्घकालिक जल आपूर्ति संबंधी खतरा पैदा होता है.  एचकेएच क्षेत्र मानसून, खासकर हिंद महासागर और दक्षिणी एशिया से जुड़ी प्रणालियों के प्रति बहुत संवेदनशील है.
 
जून से सितंबर के बीच होने वाली बारिश इस क्षेत्र के लिए पानी का मुख्य स्रोत है. इसका उन नदी प्रणालियों पर काफी प्रभाव पड़ता है जिस पर लगभग दो अरब लोग निर्भर हैं. मानसून इन नदियों में पानी भरने के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के कारण बाढ़, भूस्खलन, तूफान, लू, जंगल में आग, सूखा और जीएलओएफ जैसी जल-संबंधी आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है. उदाहरण के लिए, 1980 से 2024 के बीच इस क्षेत्र में बाढ़ की 72.5 प्रतिशत से अधिक घटनाएं मानसून में हुईं.
 
आईसीआईएमओडी के वरिष्ठ सलाहकार अरुण भक्त श्रेष्ठ ने कहा, ‘‘हमने जिन पूर्वानुमानों का अध्ययन किया है, उन सभी ने पूरे एचकेएच में गर्म मानसून और एचकेएच के प्रमुख हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना जताई है. उन्होंने कहा कि उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा से बाढ़, भूस्खलन और मलबे के प्रवाह जैसी जल-संबंधी आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है और हिमनद एवं बर्फ पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है. श्रेष्ठ ने कहा, ‘‘इस बीच, पानी की कमी से जूझ रहे अफगानिस्तान जैसे उन देशों में कम बारिश खाद्य और जल सुरक्षा संबंधी जोखिम पैदा कर सकती है जहां पहले से ही कुपोषण की समस्या असाधारण रूप से अधिक है.
 
आईसीआईएमओडी के आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्य प्रबंधक शाश्वत सान्याल ने कहा, ‘‘हमारे क्षेत्र में अत्यधिक जोखिम को देखते हुए हमें तत्काल प्रभाव-आधारित पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बड़े पैमाने पर अपनाने की आवश्यकता है तथा आपदा से निपटने की तैयारी बढ़ाने के लिए सरकार और अन्य सहयोगियों से समर्थन की आवश्यकता है.