गुजरात दंगा: सुप्रीम कोर्ट ने 6 आरोपियों को किया बरी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-03-2025
Gujarat riots: Supreme Court acquits 6 accused
Gujarat riots: Supreme Court acquits 6 accused

 

नई दिल्ली. साल 2002 में गुजरात में गोधरा कांड हुआ था. इस घटना के बाद पूरे राज्य में दंगे फैल गए थे. पुलिस ने इस हिंसा में कई लोगों को आरोपी बनाया था. इस हिंसा मामले में लोग सालों तक जेल में हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 6 आरोपियों को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इन आरोपियों को बरी कर दिया है. फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी मामले में सिर्फ मौके पर मौजूद होना या वहां से गिरफ्तार होना यह साबित करने के लिए काफी नहीं है कि वे गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे.

इस मामले की सुनवाई जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ कर रही थी. इस पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट के 2016 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें गोधरा कांड के बाद 2002 के दंगों के मामले में 6 लोगों को बरी करने के फैसले को पलट दिया गया था. जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सिर्फ मौके पर मौजूद होना या वहां से गिरफ्तार होना यह साबित करने के लिए काफी नहीं है कि वे (6 लोग) एक हजार से ज्यादा लोगों की गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे.

गुजरात में गोधरा कांड के बाद भीड़ ने कथित तौर पर वडोदरा गांव में एक कब्रिस्तान और एक मस्जिद को घेर लिया था. इसी मामले में धीरूभाई भाईलालभाई चौहान और 5 दूसरे को मुल्जिम बनाया गया था और सभी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. इस घटना में शामिल लोगों को एक साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.

वहीं, निचली अदालत ने सभी 19 मुल्जिमों को बरी कर दिया था, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने उनमें से 6 को दोषी करार दिया. मामले के विचाराधीन रहने के दौरान 1 आरोपी की मौत हो गई थी. अपीलकर्ताओं समेत 7 लोगों के नाम मुकदमा दर्ज थे. इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में निचली अदालत द्वारा उन्हें बरी करने के फैसले को बहाल रखा है.

सु्प्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘किसी भी तरह की दोषी भूमिका के अभाव में, मौके पर उनकी गिरफ्तारी 28 फरवरी, 2002 को वडोदरा में हुई घटना में उनकी संलिप्तता के बारे में निर्णायक नहीं है, खासकर तब जब उनके पास से कोई विध्वंसक हथियार या कोई आपत्तिजनक सामग्री बरामद नहीं हुई थी.’’

कोर्ट ने आगे कहा, ‘‘पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिससे लोग इधर-उधर भागने लगे. ऐसी झड़प में एक निर्दोष व्यक्ति भी अपराधी माना जाता है. इसलिए, मौके पर अपीलकर्ताओं की गिरफ्तारी उनके दोषी होने की गारंटी नहीं है.’’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामूहिक झड़पों में, अदालतों की यह सुनिश्चित करने की भारी जिम्मेदारी होती है कि कोई भी निर्दोष व्यक्ति दोषी न ठहराया जाए और उसकी स्वतंत्रता छीनी न जाए. ऐसे मामलों में न्यायालयों को सतर्क रहना चाहिए और ऐसे गवाहों की गवाही पर भरोसा करने से बचना चाहिए जो अभियुक्त या उसकी भूमिका का विशिष्ट संदर्भ दिए बिना सामान्य बयान देते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि अक्सर (विशेषकर जब अपराध का स्थान सार्वजनिक स्थान होता है) लोग उत्सुकता से अपने घरों से बाहर निकल आते हैं कि आसपास क्या हो रहा है. ऐसे लोग सिर्फ दर्शक से ज्यादा कुछ नहीं होते. हालांकि, गवाह को वे गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा लग सकते हैं.