पान की टपरी से लड़ाकू विमान के पुर्जों के निर्माता तक रंग लाई तंबोली परिवार की मेहनत

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] • 2 Years ago
हाजी नज़ीर तंबोली और उनके पुत्र (फोटोः शाहताज खान)
हाजी नज़ीर तंबोली और उनके पुत्र (फोटोः शाहताज खान)

 

शाहताज खान/ पुणे

बचपन से ही मशीनें उन्हें आकर्षित करती थीं. गरीबी ने भले ही उन्हें बड़ी बड़ी डिग्रियां हासिल न करने दी हों लेकिन अपनी मेहनत और सीखने की लगन ने उन्हें हुनर से मालामाल कर दिया. खुद नज़ीर तंबोली को यह पता था कि जीवन में उन्हें कुछ ख़ास करना था. वह लगातार सीखते रहे और आगे बढ़ते रहे. शुरुआत में दो रुपए दिहाड़ी पर काम करने वाले नज़ीर तंबोली आज तंबोली इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटिड कंपनी के मालिक हैं. हाजी नज़ीर तंबोली के पिता पुणे के स्वारगेट इलाक़े में एक छोटी-सी टपरी में पान बेचते थे.


हाजी नज़ीर तंबोली उस जमात से ताल्लुक रखते हैं जो तांबूल की बेल उगाने और तांबूल के पत्ते बेचने का काम करते हैं. तांबूल पान को मराठी में ‘विडयाचा पान’कहते हैं. यह पान पूजा के समय और शादियों में मानपत्र के तौर पर दिया जाता है. तांबूल का व्यवसाय करने वाले लोग तंबोली कहलाते हैं.


ऐसे ही परिवार में नज़ीर तंबोली का जन्म हुआ था. बेशक उनका कारोबार 500 वर्ग फुट से 40,000 स्क्वायर फुट पर फैल चुका है, पर उनकी शुरुआत बहुत कमजोर तरीके से हुई थी और अपने मेहनत के बूते उन्होंने अपनी मंजिल हासिल की.

नजीर तंबोली पुणे ज़िले के घोड़ेगांव में पैदा हुए थे. उनके वालिद काम की तलाश में पुणे आए थे और नजीर की शिक्षा वहीं के सरकारी स्कूल में हुई. नजीर ने सातवीं कक्षा के बाद शिवाजी मराठा स्कूल में दाखिला लिया. जहां टेक्निकल सब्जेक्ट के साथ पढ़ाई शुरू की. वहां खराद मशीन, वेल्डिंग और दूसरी मशीनों के बारे में पढ़ाया जाता था.

नजीर बताते हैं, “मुझे याद है कि हर जुम्मे के दिन होने वाली टेक्निकल स्किल की क्लास का मैं बेसब्री से इंतज़ार किया करता था. इसी दौरान मुझे टाइफाइड हो गया और मैं एक साल तक स्कूल नहीं जा सका. मेरी शिक्षा सिर्फ़ आठवीं कक्षा तक ही हो सकी. फ़ीस भरने के लिए 350 रुपए नहीं थे.”

कड़ी मेहनत का मुकामः हाजी नज़ीर तंबोली अपने कर्मचारियों के साथ नई मंजिलें हासिल कर रहे हैं


ऐसी स्थिति में उन्हें पढ़ाई छोड़कर काम शुरू करना पड़ा. 13 वर्ष की आयु में उन्होंने खुद जाकर धोले रोड आईटीआई में दाखिला ले लिया. वह बताते हैं, “मैं पार्वती दर्शन में रहता था और धोले रोड तकरीबन 5 किलोमीटर की दूरी पर था और मैं पैदल जाया करता था. कोर्स पूरा करने के बाद पूरी मेहनत, ईमानदारी और लगन के साथ काम शुरू किया.”

स्कूल से वापसी में कारखानों में चलती हुई मशीनों को देखने के लिए नजरी के क़दम ख़ुद ब ख़ुद रुक जाते थे.

नजीर कहते हैं, “मेरी दिलचस्पी शुरू से ही मशीनों में थी. बीमारी से उठने के बाद सबसे पहले मैं ने स्वारगेट पर पंडित इंजिनियरिंग में 2 रु. दिहाड़ी पर काम करना शुरू किया. इसी दौरान जैन विद्यालय, जो कि नाईट स्कूल था, वहां दाखिला लिया. बहुत मुश्किल समय था. दिन में फैक्ट्री में रहता. शाम पौने छह से सवा छह तक टाइपिंग की क्लास में जाता और फ़िर सात बजे से रात दस बजे तक नाईट स्कूल में पढ़ाई करता था.”

नजीर का कोर्स जब पूरा हो गया तो वह एक प्राईवेट कंपनी में काम करने लगे थे. लेकिन आगे बढ़ने का वक्त आ चुका था. वह कहते हैं, “मेरे तजुर्बे और बढ़िया काम को देखते हुए मुझे एक जर्मन कंपनी से दुगनी पगार और बहुत-सी सहूलियतों के साथ नौकरी का अच्छा प्रस्ताव मिला था. परन्तु तब तक मैं अपना कारोबार शुरू करने का निर्णय कर चुका था. मैं मानता हूं कि नौकरी और पगार एक नशा है जो इंसान से रिस्क उठाने की क्षमता छीन लेती है, और सुरक्षित जीवन का आदी बना देती है.”


1988 में नजीर ने वडगांव धायरी में 500 रु. किराए पर 500 वर्ग फुट जगह ली और 5,000 रु. की एक सैकेंड हैंड खराद मशीन खरीदी. उन्होंने एक मशीन के साथ अपने कारखाने की नींव रखी. नजीर दिन में नौकरी करते और रात में अपने कारखाने में काम करते थे.


वह बताते हैं, “आठ महीने तक नौकरी और अपना व्यवसाय जारी रखा. तब तक साइकिल के बाद लूना मॉपेड खरीद ली थी. अपनी मोपेड पर यहां से वहां भागता रहता था. जब कारखाना शुरू किया तो बहुत मुश्किल आईं. लेकिन मेरा यक़ीन था और आज भी है कि जितना बिखरूंगा, उतना निखरूंगा. मुश्किलों का सामना किया उस से मेरा तजुरबा बढ़ता चला गया. मैं समय के साथ साथ स्वयं में और अपने काम में भी बदलाव लाता चला गया. मैं कभी अल्लाह की जात से मायूस नहीं होता. यही कारण है कि मायूसी कभी मेरे रास्ते की रुकावट नहीं बनी.”

कामयाबी भरी राहः हाजी नज़ीर ने मेहनत के दम पर कारोबारी साम्राज्य खड़ा किया है


कारखाना तो खुल गया लेकिन काम लेने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी. हर रोज़ कई-कई कंपनियों के चक्कर लगाने पड़ते थे. वह कहते हैं, “मेरा उसूल है कि फर्स्ट इंप्रेशन इज द लास्ट इंप्रेशन. बस इस उसूल पर चलते हुए एक बार जिस कंपनी से काम मिला वहां से लगातार काम मिलता गया.”

पांच सौ रुपए के किराए पर शुरू किया उनका कारखाना आज 40,000 वर्गफुट पर फैल चुका है. पुरानी खराद मशीन की जगह 100 से भी अधिक मॉडर्न मशीनें टीईपीएल में मौजूद हैं. कारखाने के लिए पहले ग्राहक की तलाश में भटकने के बाद आज नजीर की कंपनी के ग्राहकों में 91 बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं.

अपने काम करे बारे में नजीर बताते हैं, “मेरी कंपनी भारत सरकार के सुरक्षा विभाग के लिए सुखोई 30 एयरक्राफ़्ट के इंजन के पार्टस, मशीनगन के क्रेडल, एयरोस्पेस, डिफेंस, हैवी इंजिनियरिंग, रेलवे के अलावा भारत फोर्ज लिमिटेड, सीमेन्स लिमिटेड,एल ऐंड टी, जीई, पाटिल इंडस्ट्रीज, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा के साथ काम कर रही है. मेरी कंपनी का तैयार सामान यूरोप, यूएसए, यूएई जैसे देशों में जाता है.”


उनकी कंपनी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है. नजीर कहते हैं, “ज़िंदगी आसान नहीं है. कुछ अच्छा हासिल करने के लिए फ़ोकस और सख़्त मेहनत, इसके अलावा सही मौके की तलाश, सही समय पर सही फ़ैसलाकरना जरूरी है. सबसे महत्वपूर्ण है गुणवत्ता और नवीनीकरण.यह किसी भी व्यवसाय की तरक्की के लिए बेहद जरूरी होते हैं. समय के साथ चलना है तो हर नई टेक्नोलॉजी का स्वागत करना और उसे सीखना. यही कुछ बातें हैं जिन पर मैं सख्ती के साथ अमल करता आ रहा हूं.”


बेशक, हाजी नज़ीर तंबोली की बातें उनकी उस लगन को दर्शाती हैं, जिसने उन्हें फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया है.