Court cannot fix time limit for Governor, President to assent to bills: Constitution Bench
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि अदालत राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर कोई समयसीमा नहीं थोप सकती, लेकिन राज्यपालों के पास विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोककर रखने की ‘‘असीम’’ शक्तियां नहीं हैं।
राष्ट्रपति द्वारा इस विषय पर परामर्श मांगे जाने पर, प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपनी सर्वसम्मति वाली राय में कहा कि राज्यपालों द्वारा ‘‘अनिश्चितकालीन विलंब’’ की सीमित न्यायिक समीक्षा का विकल्प खुला रहेगा।
पीठ ने यह भी कहा कि न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकार का उपयोग करके किसी विधेयक की स्वतः स्वीकृति (डीम्ड एसेंट) प्रदान नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना एक ‘‘अलग संवैधानिक प्राधिकार’’ की भूमिका को अपने हाथ में लेने जैसा होगा।
न्यायालय का 111 पन्नों का यह फैसला संघीय ढांचे और राज्यों के विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियों को लेकर नयी बहस छेड़ सकता है।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि राज्यपाल लंबे समय तक, बिना कोई वजह बताए और अनिश्चित काल तक (विधेयकों पर) निर्णय नहीं लेते, तो ऐसी ‘‘निष्क्रियता’’ की सीमित न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। हालांकि, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा लिये गए निर्णयों के कारण या तथ्यों की पड़ताल अदालतें नहीं कर सकतीं।