चारधाम ‘ऑल वेदर रोड’ को मौजूदा स्वरूप में जारी रखना खतरे का संकेत: विशेषज्ञों की चेतावनी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 14-08-2025
Continuation of Chardham 'All Weather Road' in its current form is a sign of danger: Experts warn
Continuation of Chardham 'All Weather Road' in its current form is a sign of danger: Experts warn

 

देहरादून

उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के दो सदस्यों ने चेतावनी दी है कि यदि उत्तराखंड में बहुचर्चित चारधाम ‘ऑल वेदर रोड’ चौड़ीकरण परियोजना को मौजूदा डिज़ाइन के साथ आगे बढ़ाया गया, तो धराली जैसी विनाशकारी आपदाएं दोबारा देखने को मिल सकती हैं।

वरिष्ठ भूविज्ञानी नवीन जुयाल और पर्यावरणविद् हेमंत ध्यानी ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को भेजे पत्र में कहा कि निचले और ऊपरी हिमालय में घाटी की ओर के ढलानों पर समान रूप से 10 मीटर चौड़ी सड़कें बनाने से कई नए कमजोर क्षेत्र पैदा हो गए हैं। उनका कहना है कि यह हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा है।

दोनों विशेषज्ञों ने लगभग दो साल पहले मंत्रालय को सौंपी गई अपनी वैकल्पिक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को अपनाने की सिफारिश की है, जिसमें लचीले और आपदा-रोधी डिज़ाइन का विवरण है। उनके अनुसार, इस मॉडल को भागीरथी पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (BESZ) में लागू किया जा सकता है, जिससे वृक्ष कटाई और ढलान में छेड़छाड़ न्यूनतम होगी और नुकसान कम होगा।

BESZ गोमुख से उत्तरकाशी तक 4179.59 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है और धराली इसी का हिस्सा है। परियोजना का कुछ हिस्सा यहीं से गुजरता है। जुयाल और ध्यानी, दोनों उच्चतम न्यायालय की समिति में सदस्य रहे हैं; हालांकि जुयाल अब उससे अलग हो चुके हैं।

पत्र में विशेषज्ञों ने चेताया कि नेताला बाईपास योजना बरसाती धाराओं से बने अस्थिर जमाव और प्राचीन वनों के बीच से गुजरती है, जिससे भूस्खलन और धंसाव का खतरा है। वहीं, झाला से जांगला तक प्रस्तावित 10 किमी मार्ग के लिए 6000 पेड़ों की कटाई हिमस्खलन के मलबे को अस्थिर कर सकती है।

उनकी वैकल्पिक योजना में ‘एलिवेटेड कॉरिडोर’ तकनीक और अधिक ऊँचाई वाले पुलों का सुझाव है, ताकि हिमस्खलन के दौरान पत्थरों के खतरे को टाला जा सके। हर्षिल और धराली में भी ऐसे पुल प्रस्तावित थे।

विशेषज्ञों ने बताया कि धराली में आई हालिया बाढ़, पर्यटन के अनियंत्रित विस्तार और कानूनी प्रावधानों की अनदेखी का नतीजा है। BESZ अधिसूचना के तहत नदियों और नालों के पास ढलानों पर निर्माण प्रतिबंधित है, लेकिन नियमों का उल्लंघन हुआ।

पाँच अगस्त को खीर गंगा नदी में आई बाढ़ ने गंगोत्री मार्ग पर स्थित धराली गाँव का लगभग आधा हिस्सा नष्ट कर दिया, दर्जनों होटल और मकान बह गए और 68 लोग लापता हो गए।