सीमाओं से परे देखभाल: इंसानियत की नई पहल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-11-2025
Caring Beyond Borders: A New Initiative for Humanity
Caring Beyond Borders: A New Initiative for Humanity

 

नई दिल्ली

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की राष्ट्रीय महिला विंग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार “सीमाओं से परे देखभाल: एक बेहतर समाज की ओर” ने देशभर के दर्शकों को सहानुभूति, मानवीय संबंध और इंसानियत के व्यापक संदेश से जोड़ दिया। विभिन्न क्षेत्रों के वक्ताओं ने आधुनिक समाज में बढ़ती संवेदनहीनता, सामाजिक दूरी और रिश्तों में विखंडन पर चर्चा की। वेबिनार का मुख्य संदेश था—“इंसानियत की कोई सीमा नहीं होती; दिलों को जोड़ना हर नागरिक की सामूहिक जिम्मेदारी है।”

इंसानी रिश्तों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता

राष्ट्रीय सचिव रहमतुन्निसा ए ने कहा कि समाज में पड़ोसी हक़, आपसी सहयोग और इंसानी जुड़ाव जैसी बुनियादी मान्यताएँ कमजोर पड़ रही हैं। उन्होंने संगठन की ‘पड़ोसियों के अधिकार’ मुहीम का जिक्र करते हुए बताया कि यह पहल लोगों के बीच बढ़ती दूरी को कम करने और सहानुभूति को पुनर्जीवित करने का प्रयास है। उन्होंने चेताया कि भावात्मक उदासीनता—चाहे परिवार में हो या समाज में—एक गंभीर संकट बन चुकी है।

आधुनिक जीवनशैली और भावात्मक दूरी

विजयवाड़ा जमाअत की सिटी प्रेसिडेंट कनिता सलमा ने बताया कि डिजिटल जुड़ाव और व्यस्त दिनचर्या ने इंसानों के बीच अनदेखी दीवारें खड़ी कर दी हैं। उन्होंने कहा,

“ऑनलाइन कनेक्शन भले अनगिनत हों, लेकिन लोग एक-दूसरे की जरूरतों और खामोश तकलीफ़ों को समझने में पीछे रह गए हैं।”
उन्होंने सभी से अपील की कि वे अपने आस-पास के लोगों की भावनाओं पर ध्यान दें और संवेदनशीलता को बढ़ावा दें।

वैश्विक दृष्टिकोण: दिलों में कोई सीमा नहीं

स्पेस किड्ज़ इंडिया की संस्थापक और CEO डॉ. श्रीमती केसन ने बताया कि एयरोस्पेस जैसी तकनीकी फील्ड में महिलाएँ अभी भी कम हैं और उन्हें आगे लाना जरूरी है। उन्होंने मिशन सैटेलाइट स्पेसक्राफ्ट का उदाहरण दिया, जिसमें 108 देशों के बच्चे बिना धर्म या जाति के भेदभाव के वैज्ञानिक परियोजनाओं पर सहयोग करते हैं।

“भौगोलिक सीमाएँ जमीनें बाँट सकती हैं, लेकिन दिल हमेशा असीम और खुले होने चाहिए।”

भाईचारा, समानता और मूलभूत अधिकार

शिक्षाविद एवं समाजसेविका फरीदा रहमतुल्ला खान ने कहा कि किसी भी समाज का पहला कर्तव्य है कि वह हाशिये पर रहने वालों को भोजन, पानी और आश्रय जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराए। उन्होंने पंडित नेहरू के “जाति और धर्म से परे एक भारत” के विज़न को याद करते हुए चेताया कि असमानता और उपेक्षा किसी भी राष्ट्र की प्रगति में सबसे बड़ी बाधाएँ हैं।

भावनात्मक गर्मजोशी और दया की ताकत

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डॉ. सुवर्णा फोंसेका ई एंटाओ ने कहा कि दया की कोई सीमा नहीं होती। एक मुस्कान, सरल संवाद या किसी की बात ध्यान से सुन लेना भी थके हुए दिल को सुकून दे सकता है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया:

“दिन में कम से कम एक घंटा दया के कामों के लिए निकालें। छोटी-छोटी नेकियां समाज बदल सकती हैं।”

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: बदलाव घर से शुरू

जीवन संरेखण कोच और TEDx वक्ता स्वाति तिवारी ने बताया कि सामाजिक संवेदनशीलता का आरंभ घर से होता है। अगर परिवारों में संवाद और समझ बढ़े, तो समाज स्वतः करुणामय और एकजुट बन जाता है।

दूरियाँ अब दिलों में हैं

गोवा की शिक्षा कार्यकर्ता मीनाज़ बानो ने कहा कि अब भौतिक दीवारों से ज्यादा दिलों में दूरी पैदा हो रही है। उन्होंने वैश्विक मानवीय संकटों का उदाहरण देते हुए कहा कि दया और हमदर्दी को भूगोल, धर्म या जाति से ऊपर उठाना चाहिए।

समापन

केंद्रीय सलाहकार कमेटी की सदस्य फाखरा तबस्सुम ने सभी वक्ताओं के रचनात्मक विचारों की सराहना की और धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम समाज में सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा देते हैं, क्योंकि इंसानियत की असली ताकत सीमाओं को नहीं पहचानती।