नई दिल्ली
सामरिक विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ने वाले संकरे लेकिन रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होर्मुज जलडमरूमध्य की आवाजाही बाधित होने से न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित होगी, बल्कि इसका असर वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर भी व्यापक रूप से देखा जाएगा।
ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्दो, नतांज और इस्फहान—पर अमेरिका द्वारा रविवार तड़के की गई बमबारी के बाद, तेहरान ने संकेत दिया है कि वह होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने जैसे कठोर कदम पर विचार कर सकता है। यह कदम विरोधियों पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, दुनिया भर में प्रतिदिन लगभग 30 प्रतिशत कच्चा तेल और एक-तिहाई तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) इसी जलडमरूमध्य के माध्यम से सप्लाई होती है। इसके बंद होने की स्थिति में वैश्विक आपूर्ति बाधित होगी, जिससे तेल की कीमतों में तेज़ उछाल आ सकता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण कुमार बेहरा ने 'पीटीआई-भाषा' से बातचीत में कहा, "होर्मुज जलडमरूमध्य की आवाजाही में किसी भी तरह का व्यवधान न केवल वैश्विक ऊर्जा बाजारों पर असर डालेगा, बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती खड़ी करेगा।"
बेहरा ने यह भी बताया कि भारत द्वारा इराक और सऊदी अरब से होने वाले तेल आयात पर इसका सीधा असर पड़ेगा।
भारतीय नौसेना के पूर्व प्रवक्ता कैप्टन डी.के. शर्मा (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ईरान द्वारा जलडमरूमध्य को अवरुद्ध करने की धमकी वैश्विक तेल व्यापार को गंभीर रूप से बाधित कर सकती है। उन्होंने कहा कि इससे शिपिंग बीमा प्रीमियम बढ़ सकता है और पोत परिवहन पर असर पड़ेगा।
उन्होंने आगाह किया कि यदि ईरान पलटवार करता है तो कच्चे तेल की कीमतें 80-90 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 100 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
शर्मा ने यह भी कहा कि इस क्षेत्र के देशों की मुद्राएं अस्थिर हो सकती हैं और निवेशक वैकल्पिक स्थिर बाजारों की ओर रुख कर सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के एक हालिया विश्लेषण में कहा गया है कि होर्मुज जलडमरूमध्य में ज़रा सी भी बाधा वैश्विक तेल बाजारों पर भारी असर डाल सकती है। एजेंसी ने कहा, "तेल उत्पादकों और उपभोक्ताओं—दोनों के लिए यह भू-राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितता का दौर है। ऐसे में आपूर्ति सुरक्षा वैश्विक ऊर्जा नीति का प्रमुख एजेंडा बनी हुई है।"
डॉ. बेहरा ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि ईरान वास्तव में जलडमरूमध्य को बंद करता है, तो उसे खुद भी आर्थिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं क्योंकि इससे उसके अपने तेल निर्यात पर भी गंभीर असर पड़ेगा।
गौरतलब है कि ईरानी अधिकारियों ने पहले भी कई बार होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की बात कही है। शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित ईरानी दूतावास में मिशन के उप प्रमुख मोहम्मद जावेद हुसैनी ने कहा था, "होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना हमारे पास एक विकल्प है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम तुरंत उस विकल्प को अपनाएंगे। यह अन्य पक्षों के व्यवहार पर निर्भर करेगा।"