पुणे
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि सरकार के पास परियोजनाओं के लिए धन की कोई कमी नहीं है, बल्कि असली समस्या नौकरशाही की जड़ सोच और "आउट ऑफ द बॉक्स" विचारों को नकारने की मानसिकता है।
सोमवार को पुणे में एक समारोह में गडकरी बोल रहे थे, जहां पूर्व नौकरशाह विजय केलकर को ‘पुण्यभूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
गडकरी ने कहा, “हमारे पास फंड की कोई कमी नहीं है। मैं हमेशा एक लाख करोड़, पचास हजार करोड़, दो लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं की बात करता हूं। आमतौर पर पत्रकार नेताओं के ऐसे बड़े दावों पर भरोसा नहीं करते। मैं उनसे कहता हूं कि मेरी बात रिकॉर्ड कर लीजिए, अगर काम नहीं हुआ तो ब्रेकिंग न्यूज़ चला दीजिए।”
उन्होंने कहा कि चिंता फंड की नहीं, बल्कि काम की रफ्तार को लेकर है।
गडकरी ने नौकरशाही की कार्यशैली पर तंज कसते हुए कहा, “गांवों में जब मवेशी चरने जाते हैं तो एक पंक्ति में चलते हैं और उस अनुशासन को कभी नहीं तोड़ते। कई बार मुझे लगता है कि हमारी नौकरशाही भी ऐसी ही है। कोई भी नया या अलग विचार स्वीकार नहीं किया जाता। लेकिन केलकर साहब इस सोच से अलग थे, उन्होंने नीतियों में लचीलापन स्वीकार किया।”
गडकरी ने बताया कि जब वे विजय केलकर से मिले थे, तब वे वित्त आयोग के अध्यक्ष थे। उन्होंने केलकर को बताया कि 406 परियोजनाएं, जिनकी लागत 3.85 लाख करोड़ रुपये थी, रुकी हुई थीं और इससे बैंकों को 3 लाख करोड़ रुपये के एनपीए का खतरा था।
गडकरी ने कहा, “उन्होंने मुझसे कारण पूछा। मैंने साफ कहा कि इसका एक ही कारण है — अफसरशाही। फिर हमने कुछ परियोजनाएं रद्द कीं और कुछ में सुधार किया। इसके बाद परियोजनाएं दोबारा शुरू हुईं और बैंकों को 3 लाख करोड़ के एनपीए से बचा लिया गया।”
गडकरी ने केलकर की तारीफ करते हुए कहा, “उन्होंने हर विभाग में शानदार काम किया, लेकिन बतौर वित्त सचिव जो नीतियां उन्होंने तैयार कीं, उनका देश के भविष्य पर दूरगामी असर पड़ा।”
गडकरी ने यह भी याद किया कि 2009 में जब प्रणब मुखर्जी केंद्रीय वित्त मंत्री थे, तब केलकर वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए आम सहमति बनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने जोर दिया कि यह देश के हित में है, इसलिए इसे लागू करना जरूरी है।
इस अवसर पर विजय केलकर ने भी कहा, “सामाजिक और आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का काम राजनीतिज्ञ ही करते हैं। मेरे अनुसार, वही असली नीति-निर्माता (policy entrepreneurs) हैं क्योंकि वही फैसले लेते हैं।”