रावण के वंश से चलता है अकबर का परिवार

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 05-10-2022
रावण के वंश से चलता है अकबर का वंश
रावण के वंश से चलता है अकबर का वंश

 

दयाराम वशिष्ठ / फरीदाबाद (हरियाणा)

नवरात्र आगमन के साथ ही रामलीला मंचन व रावण दहन आकर्षण का केंद्र होते हैं. इनमें सभी की नजरें विशालकाय रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले व उनके दहन कार्यक्रमों पर टिकी रहती हैं. एक ओर देश में धर्म के नाम पर आए दिन आपसी भाईचारा बिगाड़ने की खबरें सुनने को मिलती हैं, वही दूसरी ओर बहुत कम लोग जानते हैं कि फरीदाबाद के बल्लबगढ़, सेक्टर 3 समेत कई स्थानों पर रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के पुतलों का निर्माण पिछले 30 सालों से अलीगढ़ का एक मुस्लिम परिवार कर रहा है.

यूपी में बुलंदशहर के  समीपबर्ती गांव अकबरपुर के रहने वाले बुजुर्ग अकबर का यह परिवार हिन्दू परंपरा से जुड़ा हुआ है. भले ही यह परिवार कुरान पढ़ता है, लेकिन इनके मन में रामायण के पात्र राम, लक्ष्मण, रावण, मेघनाथ व कुंभकरण की छवि भी पूरी तरह बसी हुई है

पुस्तैनी काम को अब संभाल रहे हैं बेटे व पोते

दशहरा पर इन पुतलों के दहन की परंपरा है. अकबर के 50 वर्षीय बेटे इसत्याक ने पिता अकबर से 20 साल की उम्र में ही अपने पुश्तैनी काम को सीखना शुरू किया. पहले पिता अकबर पुतलों का निर्माण करते थे, अब पोते व बेटों ने यह काम संभाला हुआ है. इस कार्य से अकबर का परिवार न केवल आपसी भाईचारे और सौहार्द की तस्वीर पेश कर रहे हैं, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब की भी मिसाल कायम कर रहे हैं. रामलीला के समय में ही इन पुतलों का निर्माण कार्य होता है. इसलिए बाकी दिनों में अकबर के बेटे और उसका परिवार शादी-ब्याह में आतिशबाजी व अन्य कार्य करके परिवार का पालन पोषण करता है. अकबर के 6 बेटे हैं, दो बेटे पुतले व अन्य 4 बेटे अलग अलग काम धंधा करते हैं.

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इसत्याक  


दशानन के सभी मुख रोशनी से चमकेंगे

विजयादशमी पर बड़े स्तर पर दो साल के बाद दशानन के पुतले का दहन होगा. नवयुवक दशहरा समिति के प्रधान अमित मदान, उपाध्यक्ष सुभाष बरेजा ने बताया कि कोरोना के चलते गत वर्ष केवल 25 फुट ऊंचे रावण पुतला का दहन किया गया था, लेकिन इस बार रावण के 75 फुट ऊंचा पुतला बनाया गया हैं. दशानन के सभी मुख रोशनी से चमकेंगे, जिसका दहन के वक्त दर्शकों को नजारा काफी सुंदर दिखाई देगा. दहन होने वाले रावण, मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतलों को लगाने के बाद बारीकी से निरीक्षण किया जायेगा, ताकि दहन के वक्त किसी तरह की सुरक्षा में चूक न रहे.

65 फुट होगा इस बार रावण का पुतला

इस बार रावण के पुतले की ऊंचाई 65 फीट, मेघनाद की 60 फीट और कुंभकर्ण के 55 फीट पुतलों के निर्माण में 7 सहयोगी के साथ 2 कारीगरों ने  पुतलों का निर्माण किया है. दशहरा के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इस दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले दहन करते हैं. पुतले बनाने के लिए कारीगर काफी पहले से ही काम पर जुट जाते हैं. मुस्लिम परिवार हिंदुओं के इस पवित्र पर्व दशहरा में रंग भरने का काम कर रहा है. ये मुस्लिम परिवार बीते 30 सालों से यानि कई पीढ़ियों से पुतला बनाने का काम कर रहा है. जो हिंदू-मुस्लिम की एकता और आपसी सौहार्द का संदेश दे रहे हैं. कारीगर इसत्याग ने कहा कि मुस्लिम दशहरा को हिन्दुओं का ही नहीं, अपना भी त्योहार मानते हैं. इनका कहना है कि लम्बे आरसे से उनके पुरखे इस त्योहार से जुड़े रहे हैं. रावण के पुतले बनाकर उनके घरों में रोटी का इंतजाम होता रहा है. ऐसे में वे खुद रामायण से जुड़े हुए हैं. ऐसे में दशहरा उनका भी उतना ही त्योहार है, जितना कि हिन्दुओं का.

रावण के पुतले बनाकर जोड़ने में जुटे कारीगर

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अलीगढ़ के इन मुसलमानों का अरसे से रावण बनाकर रोजी-रोटी चलती आयी है. लिहाजा दशहरा से कई दिन पहले से ये लोग, रावण और मेघनाद के पुतले बनाना शुरू कर देते हैं.

इस बार भी नवरात्रों से पहले ही विजय दशमी को लेकर मुस्लिम कारीगर रावण दहन को लेकर पुतला बनाने में जुटे हुए हैं. विजय दशमी यानी दशहरा के त्योहार को हिन्दू बड़े धूमधाम से मनाते हैं. साथ ही इस त्योहार को लेकर यह मान्यता भी चली आ रही है कि बुराई पर अच्छाई की जीत को लेकर दशहरा का त्योहार मनाया जाता है.

इसी मान्यता को लेकर मुस्लिम कारीगर इससे अपना त्योहार बताते हुए वर्षों से रावण के पुतले को बना रहे हैं. बुधवार को फरीदाबाद में बल्लभगढ़, एनआईटी के दशहरा मैदान मैदान में इस रावण के पुतले का दहन यानी जलाया जाएगा.

हापुड़ के बांस से बनाए गए पुतले

फरीदाबाद में जो पुतले बनाए गए हैं, उनमें बांस हापुड़ से लाए गए हैं. सभी पुतलों को पंजाबी धर्मशाला में बनाया गया है. यहां से मंगलवार को ढोल-नगाड़ों के बीच दशहरा मैदान तक लाया गया है. जहां पुतलों को जोड़ने का काम शुरू कर दिया गया है. इन्हें पूरी तरह से तैयार करके विजय दशमी पर गुरुवार को बल्लबगढ़ के दशहरा मैदान में दहन किया जाएगा. पुतला बनाने का काम पूरा हो चुका हैं. इसके लिए बांस, पेपर और रस्सी की मदद से ढांचा तैयार किया जा रहा है.