A common constipation medication may help halt kidney disease, a new study suggests.
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
किडनी से जुड़ी गंभीर बीमारी क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के इलाज को लेकर वैज्ञानिकों को एक चौंकाने वाला संकेत मिला है। जापान के तोहोकू यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने पाया है कि आमतौर पर कब्ज के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा ल्यूबिप्रोस्टोन किडनी की कार्यक्षमता में होने वाली गिरावट को धीमा कर सकती है। यह पहली बार है जब किसी कब्ज की दवा को सीकेडी में किडनी फंक्शन को सुरक्षित रखने से जोड़ा गया है।
प्रोफेसर ताकाआकी आबे के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में यह समझने की कोशिश की गई कि कब्ज और किडनी की बीमारी के बीच क्या संबंध है। शोधकर्ताओं ने पाया कि सीकेडी के मरीजों में कब्ज एक आम समस्या है, जो आंतों के माइक्रोबायोटा को बिगाड़ देती है। इससे किडनी पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने यह परिकल्पना रखी कि अगर कब्ज का इलाज किया जाए, तो किडनी की सेहत में भी सुधार हो सकता है।
इस विचार को परखने के लिए जापान के नौ चिकित्सा केंद्रों में एक मल्टीसेंटर फेज-2 क्लीनिकल ट्रायल किया गया, जिसे ल्यूबी-सीकेडी ट्रायल नाम दिया गया। इसमें मध्यम स्तर की सीकेडी से जूझ रहे 150 मरीजों को शामिल किया गया। अध्ययन में देखा गया कि जिन मरीजों को 8 माइक्रोग्राम या 16 माइक्रोग्राम ल्यूबिप्रोस्टोन दी गई, उनमें प्लेसीबो लेने वालों की तुलना में किडनी फंक्शन में गिरावट की रफ्तार कम रही। इसका आकलन ईजीएफआर नामक मानक जांच के जरिए किया गया।
आगे की जांच में सामने आया कि यह दवा आंतों में लाभकारी बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ाती है, जिससे स्पर्मिडीन नामक यौगिक का उत्पादन होता है। स्पर्मिडीन माइटोकॉन्ड्रिया की कार्यक्षमता को बेहतर बनाता है, जो किडनी को अतिरिक्त नुकसान से बचाने में मदद करता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगला कदम बड़े स्तर पर फेज-3 ट्रायल करना और ऐसे बायोमार्कर पहचानना है, जिससे यह पता चल सके कि किन मरीजों को इस इलाज से सबसे ज्यादा फायदा होगा। ‘साइंस एडवांसेज़’ जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन से सीकेडी के इलाज में एक नई और व्यक्तिगत रणनीति की उम्मीद जगी है।