कोविड टीके से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 26-06-2021
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

 

आवाज विशेष । कोरोना वायरस

प्रस्तुतिः मंजीत ठाकुर

देश में जल्द ही जायडस कैडिला की दुनिया की पहली डीएनए-प्लासमिड वैक्सीन उपलब्ध होगी जो भारत-निर्मित ही है. राष्ट्रीय टीकाकरण परामर्श समूह (एटीएजीआई) के कोविड-19कार्य समूह के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र कुमार अरोड़ा के मुताबिक, दो अन्य वैक्सीनें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की नोवावैक्स और जॉनसन-एंड-जॉनसन भी जल्द मिलने की संभावना है. जुलाई के तीसरे सप्ताह तक भारत बायोटेक और एसआइआइ की उत्पादन क्षमता में भी भारी इजाफा हो जाएगा. इससे देश में वैक्सीन की आपूर्ति में बढ़ोतरी होगी. सरकार को उम्मीद है कि जल्द ही एक महीने में 30-35करोड़ डोज हासिल होने लगेंगे. और तब देश एक दिन में एक करोड़ लोगों को टीका लगाने में सक्षम हो जाएगा.

ऐसे ही कुछ अहम सवाल हैं जिसका जवाब डॉ. नरेन्द्र कुमार अरोड़ा ने दिया है.  

नई वैक्सीनें कितनी असरदार?

जब हम कहते हैं कि अमुक वैक्सीन 80फीसद असरदार है, तो इसका मतलब यह है कि वैक्सीन कोविड-19रोग की संभावना को 80फीसद कम कर देती है. संक्रमण और रोग में फर्क होता है. अगर किसी व्यक्ति को कोविड का संक्रमण है, लेकिन कोई लक्षण नहीं हैं, तो वह व्यक्ति सिर्फ संक्रमित है. बहरहाल, यदि व्यक्ति में संक्रमण के कारण लक्षण भी नजर आ रहे हैं, तो वह व्यक्ति कोविड रोग से ग्रस्त माना जायेगा.

दुनिया की हर वैक्सीन कोविड रोग से बचाती हैं. टीका लगवाने के बाद गंभीर रूप से बीमार होने की बहुत कम आशंका होती है; जबकि मृत्यु की आशंका नगण्य हो जाती है. अगर वैक्सीन की ताकत 80प्रतिशत है, तब टीका लगवाने वाले 20प्रतिशत लोगों को हल्का कोविड हो सकता है. भारत में जो वैक्सीनें उपलब्ध हैं, वे कोरोना वायरस के फैलाव को कम करने में सक्षम हैं. अगर 60से 70प्रतिशत लोगों को टीके लगा दिये जायें, तो वायरस के फैलाव को रोका जा सकता है.

 

कोविड वैक्सीन के बारे में गलतफहमियां

ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर लोग कोविड को गंभीरता से नहीं लेते और वे इसे सामान्य बुखार ही समझते हैं. कोविड भले कई मामलों में हल्का-फुल्का हो, लेकिन जब वह गंभीर रूप ले लेता है, तो उससे जान भी जा सकती है. भारत में उपलब्ध कोविड-19वैक्सीनें पूरी तरह सुरक्षित हैं.

जहां तक टीके के बुरे असर (साइड-इफेक्ट) का सवाल है, तो सभी वैक्सीनों में हल्का-फुल्का खराब असर पड़ता है. इसमें हल्का बुखार, थकान, सूई लगाने वाली जगह पर दर्द आदि, जो एक-दो दिन में ठीक हो जाता है.

 

टीका लगवाने के बाद बुखार न आए तो वैक्सीन काम नहीं कर रही?

कोविड टीका लगवाने के बाद ज्यादातर लोगों में कोई बुरा असर नजर नहीं आता, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वैक्सीन असरदार नहीं है. सिर्फ 20से 30प्रतिशत लोगों को टीका लगवाने के बाद बुखार आ सकता है. कुछ लोगों को पहली डोज लेने के बाद बुखार आ जाता है और दूसरी डोज के बाद कुछ नहीं होता. इसी तरह कुछ लोगों को पहली डोज के बाद कुछ नहीं होता, लेकिन दूसरी डोज के बाद बुखार आ जाता है. यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है और इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना खासा मुश्किल है.

कुछ ऐसे मामले भी सामने आये हैं, जहां लोगों को दोनों खुराकें लगवाने के बाद भी कोविड-19का संक्रमण हो गया. इसलिए कुछ लोग वैक्सीन के असरदार होने पर सवाल उठा रहे हैं.

वैक्सीन की दोनों खुराकें लेने के बाद भी संक्रमण हो सकता है. लेकिन ऐसे मामलों में रोग निश्चित रूप से हल्का होगा और गंभीर रूप से बीमार होने की संभावना लगभग नहीं होगी. इसके अलावा, ऐसी स्थिति से बचने के लिये लोगों को आज भी कहा जाता है कि टीका लगवाने के बाद भी कोविड उपयुक्त व्यवहार करें.

 

शरीर में एंटी-बॉडीज कब तक कायम रहती हैं? क्या कुछ समय बाद बूस्टर डोज लेनी होगी?

टीका लगवाने के बाद शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, जिसका पता निश्चित रूप से एंटी-बॉडीज से लग जाता है. एंटी-बॉडीज का पता लगाया जा सकता है. इसके अलावा न दिखाई देने वाली रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होती है. इसे टी-सेल्स के रूप में जाना जाता है, जिनके पास याद रखने की ताकत होती है. आगे जब भी वायरस शरीर में घुसने की कोशिश करता है, तो पूरा शरीर चौकस हो जाता है और उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर देता है. लिहाजा, शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का एकमात्र सबूत एंटी-बॉडी नहीं है. इसलिये टीका लगवाने के बाद एंटी-बॉडी टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है.

दूसरी बात यह कि कोविड-19एक नया रोग है, जो अभी महज डेढ़ साल पहले सामने आया है. वैक्सीन को आये हुये भी छह महीने ही हुये हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि अन्य वैक्सीनों की तरह ही, यहां भी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम से कम छह महीने से एक साल तक कायम रहेगी. इसके अलावा, टी-सेल्स जैसे कुछ घटक हैं, जिनकी नाप-जोख नहीं हो सकती. यह देखा जाना है कि टीका लगवाने के बाद लोग कितने समय तक गंभीर रूप से बीमार होने और मृत्यु से बचे रहते हैं. लेकिन अभी तो टीके लगवाने वाले सभी लोग छह महीने से एक साल तक तो सुरक्षित हैं.

 

किसी खास कंपनी की वैक्सीन लगवा लें, तो क्या उसके बाद वही वैक्सीन लगवानी होगी? अगर बाद में बूस्टर डोज लेनी पड़े, क्या तब भी उसी कंपनी की वैक्सीन लेनी होगी?

कंपनियों के बजाय हम प्लेटफॉर्म की बात करते हैं. मानव इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक ही रोग के लिये वैक्सीन बनाने में अलग-अलग प्रक्रियाओं और प्लेटफार्मों का इस्तेमाल किया गया हो.

इन वैक्सीनों की निर्माण प्रक्रिया अलग-अलग है, इसलिये शरीर पर भी उनका असर एक सा नहीं होगा. अलग-अलग किस्म की वैक्सीन की दो डोज लेने की प्रक्रिया या बूस्टर डोज के तौर पर कोई दूसरी वैक्सीन लेने को पारस्परिक अदला-बदली कहते हैं. ऐसा किया जा सकता है या नहीं, यह निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सवाल है. इसका जवाब खोजने का काम चल रहा है.

हम ऐसे देशों में शामिल हैं, जहां अलग-अलग तरह की कोविड-19 वैक्सीनें दी जा रही हैं. इस तरह की पारस्परिक अदला-बदली को तीन कारणों से स्वीकार किया जा सकता है या उसे मान्यता दी जा सकती हैः

1) रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने या बढ़ाने के लिए,

2) टीके की आपूर्ति आसान 

3) सुरक्षा सुनिश्चित होती है. लेकिन यह पारस्परिक अदला-बदली का आग्रह इसलिये नहीं होना चाहिए कि टीकों की कमी आ गई है, क्योंकि टीकाकरण शुद्ध रूप से वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत आता है.

 

कुछ देशों में वैक्सीन के आपसी मिलान पर अनुसंधान हो रहा है. क्या भारत में भी ऐसा कोई अनुसंधान किया जा रहा है?

इस तरह का अनुसंधान जरूरी है और भारत में भी जल्द ऐसे अनुसंधानों को शुरू करने के कदम उठाये जा रहे हैं. यह चंद हफ्तो में शुरू हो जायेगा.

 

बच्चों का टीका कब तक आएगा?

दो से 18 वर्ष के बच्चों पर कोवैक्सीन का परीक्षण शुरू हो गया है. बच्चों पर परीक्षण देश के कई केंद्रों में चल रहा है. इसके नतीजे इस साल सितंबर से अक्टूबर तक हमारे पास आ जायेंगे. बच्चों को भी संक्रमण हो सकता है, लेकिन वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ते. बहरहाल, बच्चों से वायरस दूसरों तक पहुंच सकता है. लिहाजा, बच्चों को भी टीका लगाया जाना चाहिये.

 

क्या वैक्सीन से प्रजनन क्षमता पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है?

जब पोलियो वैक्सीन आई थी और भारत तथा दुनिया के अन्य भागों में दी जा रही थी, तब उस समय भी ऐसी अफवाह फैली थी. उस समय भी यह गलतफहमी पैदा की गई थी कि जिन बच्चों को पोलियो वैक्सीन दी जा रही है, आगे चलकर उन बच्चों की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इस तरह की गलत सूचना एंटी-वैक्सीन लॉबी फैलाती है.

हमें यह जानना चाहिये कि सभी वैक्सीनों को कड़े वैज्ञानिक अनुसंधान से गुजरना पड़ता है. किसी भी वैक्सीन में इस तरह का कोई बुरा असर नहीं होता. इस तरह का कुप्रचार लोगों में गलतफहमी पैदा करता है.