आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क में मौजूद एक अहम रसायन की पहचान की है, जो बचपन में झेले गए मानसिक आघात को अवसाद और आत्मघाती प्रवृत्ति से जोड़ता है। अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी और कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट्स द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि एसजीके1 नामक एक स्ट्रेस-रिस्पॉन्सिव प्रोटीन उन लोगों में ज्यादा सक्रिय होता है, जिन्होंने बचपन में शोषण, उपेक्षा या कठिन परिस्थितियों का सामना किया हो।
शोधकर्ताओं के अनुसार, एसजीके1 का स्तर उन लोगों के दिमाग में काफी अधिक पाया गया, जिन्होंने आत्महत्या की थी, खासकर उन मामलों में जहां बचपन में गंभीर मानसिक आघात मौजूद था। कुछ मामलों में यह स्तर अन्य आत्महत्या पीड़ितों की तुलना में लगभग दोगुना तक पाया गया। यही नहीं, जिन बच्चों में ऐसे आनुवंशिक बदलाव पाए गए जो एसजीके1 के उत्पादन को बढ़ाते हैं, उनमें किशोरावस्था में अवसाद विकसित होने का खतरा ज्यादा देखा गया।
अध्ययन के प्रमुख लेखक और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के क्लिनिकल न्यूरोबायोलॉजी के सहायक प्रोफेसर क्रिस्टोफ एन्कर का कहना है कि अमेरिका में अवसाद से पीड़ित लगभग 60 प्रतिशत वयस्कों और आत्महत्या का प्रयास करने वाले करीब दो-तिहाई लोगों ने बचपन में किसी न किसी तरह का आघात झेला होता है। ऐसे मामलों में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाएं, जैसे एसएसआरआई, अपेक्षाकृत कम असरदार साबित होती हैं।